वाराणसी : निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मचारियों का धरना, किसान-कारीगर भी जल्द होंगे शामिल
वाराणसी। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के नेतृत्व में बिजली के निजीकरण के विरोध में भिखारीपुर स्थित प्रबंध निदेशक कार्यालय पर जोरदार प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारी भी शामिल हुए। यह आंदोलन देशव्यापी विरोध का हिस्सा था, जिसमें पूरे भारत के 27 लाख बिजली कर्मचारियों ने हिस्सा लिया।
निजीकरण से आम जनता को नुकसान
सभा को संबोधित करते हुए आर.पी.के. वाही ने कहा कि बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा आम लोगों की बुनियादी जरूरतें हैं, जिन्हें सरकारी नियंत्रण में ही रहना चाहिए। निजी कंपनियां मुनाफे के लिए बिजली क्षेत्र में आ रही हैं, न कि जनकल्याण के लिए। उन्होंने चेतावनी दी कि निजीकरण से बिजली की कीमतें बढ़ेंगी, जिसका सबसे ज्यादा असर गरीबों और किसानों पर पड़ेगा।
किसानों का समर्थन
संयुक्त किसान मोर्चा के नेता अफलातून और किसान मजदूर परिषद के अध्यक्ष चौधरी राजेंद्र ने कहा कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम ने 25 लाख प्रीपेड स्मार्ट मीटर खरीद लिए हैं, जो निजी कंपनियों को मुनाफा देने का रास्ता खोल रहे हैं। उन्होंने उड़ीसा का उदाहरण दिया, जहां किसानों ने टाटा पावर के मीटर उखाड़कर निजीकरण का विरोध किया था। उन्होंने ऐलान किया कि उत्तर प्रदेश के किसान भी बिजली निजीकरण के खिलाफ हर आंदोलन में कर्मचारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे। यदि निजीकरण का टेंडर निकाला गया, तो बिजली कर्मचारी बिना नोटिस के हड़ताल और जेल भरो आंदोलन शुरू करेंगे, जिसमें वाराणसी सहित पूरे प्रदेश के किसान जेलों को भरने के लिए तैयार हैं।
निजीकरण के पीछे गलत नीतियां
ई. नीरज बिंद ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार गलत आंकड़ों के आधार पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण कर रही है। पिछले सात महीनों से बिजली कर्मचारी लगातार विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार ने उनसे एक बार भी बात नहीं की। ई. एस.के. सिंह ने बताया कि गलत पावर परचेज एग्रीमेंट के कारण बिजली कंपनियों को हर साल 6,761 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इसके अलावा, निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदने से 10,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ता है। सरकारी विभागों पर 14,400 करोड़ रुपये का बिजली बिल बकाया है। किसानों को मुफ्त बिजली और गरीबों को सस्ती बिजली देने की सब्सिडी (22,000 करोड़ रुपये) को सरकार घाटे के रूप में पेश कर निजीकरण को बढ़ावा दे रही है।
मिलीभगत का आरोप
राजेश सिंह ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन और कुछ बड़े अधिकारी चुनिंदा निजी कंपनियों के साथ मिलकर लाखों करोड़ की बिजली संपत्तियों को सस्ते में बेचना चाहते हैं। निजीकरण के बाद पूर्वांचल और दक्षिणांचल के गरीब उपभोक्ताओं की सब्सिडी खत्म हो जाएगी, जिससे उन्हें 10-12 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदनी पड़ेगी। इससे गरीब जनता को बिजली के बिना रहना पड़ सकता है।
प्रदेशव्यापी समर्थन
मदन श्रीवास्तव ने बताया कि देश के 27 लाख बिजली कर्मचारियों ने उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों के समर्थन में सभी जिलों और परियोजनाओं पर भोजन अवकाश के दौरान सड़कों पर उतरकर विरोध किया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारियों का उत्पीड़न हुआ, तो देशभर के कर्मचारी सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे, जिसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
सभा का संचालन
सभा की अध्यक्षता ई. मायाशंकर तिवारी ने की, और संचालन विजय नारायण हिटलर ने किया। सभा को ओ.पी. सिंह, रविंद्र यादव, विजय सिंह, प्रमोद कुमार, रामकुमार झा, धर्मेंद्र यादव, पंकज यादव, रंजीत कुमार, अमित श्रीवास्तव, उदयभान दुबे, मनोज सोनकर, नवीन कुमार, कृष्णमोहन, रंजीत पटेल, जयप्रकाश और अन्य ने भी संबोधित किया।