वाराणसी कचहरी ब्लास्ट की बरसी : आज भी ताजा हैं 17 साल पुराने जख्म, तीन वकील समेत आधा दर्जन ने गंवाई थी जान
वाराणसी। 23 नवंबर 2007 को वाराणसी कचहरी में हुए दो सीरियल ब्लास्ट के जख्म आज भी ताजा हैं। इन धमाकों में तीन अधिवक्ताओं सहित आधा दर्जन लोगों की जान चली गई और पचासों घायल हो गए। लेकिन, घटना के 17 साल बाद भी सुरक्षा एजेंसियां मुख्य गुनहगारों को पकड़ने में नाकाम हैं।
धमाकों के बाद की राजनीति
2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी। उन्होंने इस आतंकी घटना के बाद एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (एटीएस) का गठन किया। बड़े-बड़े दावे किए गए, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। तब से यूपी में कई सरकारें आईं और गईं, पर वाराणसी कचहरी ब्लास्ट के आरोपियों को पकड़ने में सभी सरकारें विफल रहीं। हालांकि इस घटना में 10 आतंकियों के नाम सामने आए थे। इनमें से आतंकी संगठन हूजी के कमांडर हम्मास मारा जा चुका है जबकि अन्य की तलाश आज भी जारी है। आतंकियों ने कचहरी परिसर की ढुलमुल सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाया था। बिना जांच के वे बड़ी आसानी से साइकिल में बम प्लांट करके प्रवेश कर गए थे।
प्रत्यक्षदर्शियों का दर्द और 2007 का वह काला दिन
पूर्व बार एसोसिएशन के महामंत्री नित्यानंद राय ने उस दिन के भयावह मंजर को याद करते हुए बताया कि शुक्रवार का दिन था। कचहरी में कामकाज सामान्य था, लेकिन 12 कक्षीय नए भवन के सामने गहमागहमी ज्यादा थी। उस समय अवधेश राय हत्याकांड में विधायक अजय राय की गवाही होनी थी। उसी दौरान पहला धमाका हुआ, जिसमें अधिवक्ता भोला सिंह और अन्य की जान चली गई। कुछ ही समय बाद कलेक्टरेट परिसर में हनुमान मंदिर के सामने दूसरा धमाका हुआ, जिसमें ब्रह्म प्रकाश शर्मा और बुद्धिराज पटेल की जान चली गई।
धमाकों का संदिग्ध मकसद: गवाहों को डराने की साजिश?
कई सूत्रों का मानना है कि यह धमाके अवधेश राय हत्याकांड के गवाहों को डराने के लिए किए गए हो सकते हैं। हालांकि, गुनहगारों को 2023 में सजा सुनाई गई, लेकिन इस ब्लास्ट ने ट्रायल को 16 साल तक विलंबित कर दिया।
घटना से उठते सवाल और अबतक नहीं मिला न्याय
इस मामले में एजेंसियों की विफलता ने न्याय प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं। घटना से जुड़े मुख्य गुनहगारों का अब तक कोई सुराग न मिलना सुरक्षा एजेंसियों और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।