वाराणसी : स्कूलों के विलय के आदेश के खिलाफ साझा संस्कृति मंच का विरोध, बोले, 1.35 लाख शिक्षक-कर्मचारियों की जाएगी नौकरी, जनविरोधी निर्णय वापस ले सरकार

प्रदेश सरकार के हजारों सरकारी स्कूलों के विलय के निर्णय के खिलाफ वाराणसी के शास्त्री घाट, कचहरी में जोरदार प्रदर्शन हुआ। सैकड़ों लोगों ने साझा संस्कृति मंच और जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय यूपी के संयुक्त तत्वावधान में एकत्र होकर इस जनविरोधी निर्णय को वापस लेने की मांग की। प्रदर्शन के दौरान मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी के माध्यम से सौंपा गया।
 

वाराणसी। प्रदेश सरकार के हजारों सरकारी स्कूलों के विलय के निर्णय के खिलाफ वाराणसी के शास्त्री घाट, कचहरी में जोरदार प्रदर्शन हुआ। सैकड़ों लोगों ने साझा संस्कृति मंच और जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय यूपी के संयुक्त तत्वावधान में एकत्र होकर इस जनविरोधी निर्णय को वापस लेने की मांग की। प्रदर्शन के दौरान मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी के माध्यम से सौंपा गया।

इस दौरान "राष्ट्रपति का बेटा हो या चपरासी की संतान, सबकी शिक्षा एक समान" जैसे नारे लगाए और कचहरी सड़क पर मार्च निकाला। सभा में शिक्षा विरोधी सरकारी नीतियों की कड़ी आलोचना की गई। लोगों ने बताया कि योगी सरकार ने 5,000 सरकारी स्कूल बंद करने का फैसला लिया है, जबकि 2014 से 2024 तक पूरे भारत में 90,000 सरकारी स्कूल बंद किए गए, जिनमें से 25,000 उत्तर प्रदेश के थे। 2022 से 2024 के बीच 55 लाख बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया।


वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि स्कूलों के विलय से 27,000 स्कूल प्रभावित होंगे, जिससे 1,35,000 शिक्षकों, 27,000 प्रधानाध्यापकों, शिक्षामित्रों और रसोइयों की नौकरियां खत्म हो जाएंगी। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इन स्कूलों के बच्चे नजदीकी स्कूलों में जा पाएंगे या निजी स्कूलों की महंगी फीस के जाल में फंस जाएंगे, खासकर लड़कियों की शिक्षा पर इसका क्या असर होगा।

प्रो. प्रतिमा गौंड ने कहा कि सरकार अशिक्षा और असमानता को बढ़ावा दे रही है, जबकि पिछले दशकों के संघर्षों से समाज ने इस दलदल से निकलने की कोशिश की थी। उन्होंने बताया कि पिछले 10 वर्षों में 50,000 महंगे निजी स्कूल खुले हैं। जागृति राही ने 1990 के दशक में शुरू हुए उदारीकरण और 2020 की नई शिक्षा नीति (एनईपी) को निजीकरण की गति बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों का उद्देश्य हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देना था, लेकिन निजी स्कूलों ने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया।

कुसुम वर्मा ने शिक्षा के अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में 25% गरीब बच्चों को दाखिला मिलने के बावजूद सरकारी स्कूलों के खाली होने की बात कही। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार ने महंगे निजी स्कूलों को खोलने की अनुमति क्यों दी।
 

ज्ञापन में प्रमुख मांगें

1.    सरकारी स्कूलों की बंदी/विलय को तुरंत रोका जाए।
2.    एनईपी के तहत शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च किया जाए।
3.    वैज्ञानिक सोच वाली गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, किताबें, बैग, छात्रवृत्ति और यूनिफॉर्म नियमित उपलब्ध कराए जाएं।
4.    मिड-डे मील की गुणवत्ता सुनिश्चित की जाए और स्कूल कर्मचारियों की नौकरियां स्थायी की जाएं।
5.    शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी हो।
6.    स्कूलों में आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा की जवाबदेही तय की जाए।

प्रदर्शन और मार्च में नन्दलाल मास्टर, सतीश सिंह, वल्लभाचार्य पांडेय, प्रो. महेश विक्रम, जागृति राही, कुसुम वर्मा, प्रो. प्रतिमा गौंड, प्रेम नट, एकता शेखर, विनय शंकर राय, धनंजय, महेंद्र, अमित, राजकुमार गुप्ता, नीरज, राजेश, रामजन्म, अफलातून, लक्ष्मण, सुमन, वंदना, अनूप, सोनी, अनामिका, आरोही, आर्या सहित सैकड़ों लोग और संगठन शामिल रहे।