भगवान शिव के तीसरे नेत्र के रूप में काशी में स्थापित हैं त्रिलोचन महादेव, दर्शन मात्र से होता है समस्त कष्टों का नाश

 
वाराणसी। काशी का कण-कण शंकर है। अयोध्या के तर्ज पर यहां भी घर-घर मंदिर है। हालांकि इसके बारे में एक तथ्य यह भी है कि मुगल आक्रांताओं ने जब काशी के मंदिरों पर आक्रमण किया, तो लोगों ने उनके डर से मंदिरों को घरों में छुपा दिया। तब से मंदिर वहीं स्थापित हैं। 

काशी के प्राचीन शिव मंदिरों में त्रिलोचन महादेव का अलग ही स्थान है। यह मंदिर मच्छोदरी के समीप गायघाट के आगे त्रिलोचन बाजार में स्थित है। इस मंदिर का वर्णन काशी खंड में भी मिलता है। काशी खंड के मुताबिक, त्रिलोचन महादेव का मूल स्थान विरजा क्षेत्र में है। जहां से प्रतीक रूप में इनका प्रादुर्भाव वाराणसी में भी हुआ। इनका नाम लिंग पुराण में नहीं है। जिससे कुछ लोग इनकी प्राचीनता में संदेह करते हैं। परंतु यह शंका निर्मूल है। क्योंकि 12वीं शताब्दी में यह स्थान बड़े महत्व का माना जाता था। 

वैसे पुराणों में शिवलिंगों में ओंकारेश्वर का प्रमुख स्थान है, किंतु त्रिलोचन के दर्शन का महात्म्य उनसे भी बढ़ कर कहा गया है। इनके स्मरण मात्र से पापों का नाश होता है। इनके दर्शन से संसार के सभी शिवलिंगों के दर्शन का फल मिलता है। अंत में मुक्ति की प्राप्ति होती है। हर अष्टमी तथा चतुर्दशी को इनके दर्शन का विशेष महात्म्य है। त्रिलोचन के दर्शन से पहले उनके दक्षिण गंगा में वर्तमान में पिलपिला तीर्थ में स्नान करने का विधान है। पिलपिला तीर्थ स्वत: ही अत्यन्त पुनीत व पुण्य देने वाला माना गया है। त्रिलोचन मंदिर में मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे छोटे मंदिर हैं। साथ ही शिवलिंग भी प्रतिष्ठित है। इसमें राम पंचायतन का मंदिर मूर्तिकला की दृष्टि से सबसे आकर्षक है। 

मंदिर में सन 1907 से लेकर 1990 तक के बीच की अवधि में इसका जीर्णोद्धार करने वालों के नाम शिलापट्ट पर अंकित हैं। मंदिर के गर्भगृह के कुंड में पार्वती की प्रतिमा के चारों तरफ रजतपत्र लगाया गया है। त्रिलोचन महादेव का प्रमाण काशी रहस्य, शिव रहस्य व शिव पुराण व पद्मपुराण में भी मिलता है। इनके दर्शन मात्र से समस्त दु:ख, कष्ट व संकट दूर होते हैं। वैसे तो इस मंदिर में रोजाना भारी संख्या में लोग दर्शन पूजन के लिए आते हैं, लेकिन सावन मास में यहां आने वालों की संख्या बढ़ जाती है। 

यहां पर सावन के अलावा अन्य अवसरों पर कई शृंगार भी होते है। यहां पर जल विहार की झांकी भी सजायी जाती है। सावन मास में यहां पर यादव बंधु आकर बाबा का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर परिसर में हनुमानजी, दुर्गाजी, कालीजी, विष्णुजी के शिवालय भी है। जहां पर भक्त जाकर मत्था टेकते हैं। त्रिलोचन महादेव को भगवान शंकर का तीसरा नेत्र भी माना गया है।