वाराणसी के इस गांव में है 24 स्वतंत्रता सेनानियों का घर, यहां की मिट्टी में भी घुला है देशभक्ति का राग

 
-    फूलपुर थाने पर तिरंगा फहराने गये स्वतंत्रता सेनानियों पर चली थी गोलियां

-    वाराणसी, चंदौली और जौनपुर में एक साथ छिड़ा था आंदोलन

-    महिला क्रांतिकारियों ने भी बढ़-चढ़कर लड़ाई में लिया था भाग

वाराणसी। भगवान शिव की नगरी काशी मंदिरों का शहर है, तो यहां की मिट्टी में आजादी की लहर भी है। भारत छोड़ो आंदोलन हो या स्वतंत्रता संग्राम का कोई आंदोलन, हर बार काशी ने जंग-ए-आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। काशी में एक ऐसा भी गांव है, जहां 24 स्वतंत्रता सेनानियों का परिवार है। 

अगस्त क्रांति के दौरान काशी के इस गांव के लोगों ने जंग-ए-आजादी में अपना बखूबी योगदान दिया था। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के आह्वान पर पूरे देश में क्रान्ति छिड़ गई थी। 9 अगस्त से पूरे देश में लोग जगह-जगह आंदोलन कर सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने लगे थे। ऐसे में वाराणसी और चंदौली ने भी आन्दोलन कर अपनी भूमिका निभाई। तब चंदौली भी बनारस का हिस्सा हुआ करता था। 

वाराणसी शहर से लगभग 40 किमी दूर एक ऐसा गांव है, जिसका नाम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ने के लिए स्वर्ण अक्षरों में याद किया जाता है। गांव के लोगों का कहना है कि आजादी की आहट के बाद पूर्वांचल के स्वतंत्रता सेनानियों ने भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस सूची में वाराणसी जिले के करखियांव गांव के स्वतंत्रता सेनानियों का नाम भी शामिल है। इस सूची में कुछ महिलाएं भी हैं।

करखियांव में पांच बार प्रधान रहे विक्रमादित्य सिंह ने बताया कि उनकी रिश्तेदारी चंदौली (तब बनारस) जनपद के हिंगुतर गांव में थी। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने बंबई अधिवेशन ने करो या मरो का नारा दिया था। इसके बाद पूरे देश में आजादी की लड़ाई का बिगुल बज गया। क्रांतिकारी जगह-जगह सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने लगे। इसी कड़ी में हिंगुतर व आसपास के कई जगहों नौजवान चंदौली के धानापुर और सैयदराजा थाने पर भी तिरंगा फहराने पहुंचे। इस दौरान जानकारी मिलने के बाद अंग्रेजी हुकूमत जमाना हो गई थी और पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ा दी गई थी। 

आजादी के परवाने जब थाने पर तिरंगा फहराने पहुंचे तो पुलिस कर्मियों द्वारा गोली चलाई गई। इस दौरान गोली लगने से 3 क्रांतिकारी हीरा सिंह, रघुनाथ सिंह और मंहगू सिंह शहीद हो गए। पूरे इलाके को पुलिसकर्मियों ने घेरा तो घर से भागे. पूर्व प्रधान विक्रमादित्य सिंह बताते हैं कि उसके बाद पुलिस के चंगुल से बचकर कुछ स्वतंत्रता सेनानी करखियांव आ गए। आजादी का बिगुल बज चुका था। 

करखियांव के लोगों को आजादी की लड़ाई में कूदने का संदेश देने के बाद रिश्तेदार जौनपुर जिले समेत आसपास के अन्य गांवों में भी गए। स्वतंत्रता सेनानियों का संदेश मिलने के बाद गांव में गुप्त रूप से ग्रामीणों की बैठक बुलाई गई और फूलपुर थाने पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई गई। इधर ब्रिटिश हुकूमत का अत्याचार बढ़ता जा रहा था जिसके चलते रात में ही लोगों ने खालिसपुर से जौनपुर के त्रिलोचन के बीच कई जगह रेलवे लाइन क्षतिग्रस्त कर दी। इसके अलावा रेलवे स्टेशन में भी तोड़फोड़ की गई। टेलीफोन लाइन काट दी गई। ब्रिटिश हुकूमत को क्षति पहुंचाने के लिए ग्रामीणों ने काफी कुछ किया। विक्रमादित्य सिंह बताते हैं कि उनके दादा वासुदेव सिंह की अगुवाई में गांव के रहने वाले सभी जातियों को लोग एकत्र हो गए और आजादी में अपना योगदान दिया। 

फूलपुर थाने पर फहराया तिरंगा 

विक्रमादित्य सिंह बताते हैं कि पुलिस और ब्रिटिश हुकूमत से बचकर गांव में अक्सर बैठक होने लगी थी। उसके बाद 11 अगस्त 1942 को गांव के लोगों द्वारा फूलपुर थाने पर तिरंगा फहराया। मामले की जानकारी होने के बाद गांव में भारी संख्या में पुलिस भेज दी गई। पुलिस के आने से पहले ही ग्रामीण गांव छोड़कर खेतों में शरण ले लिए थे। पुलिस की छापेमारी बढ़ी तो कुछ ग्रामीण बॉर्डर पार करते हुए जौनपुर चले गए। हालांकि 18 अगस्त 1942 को पुलिस ने नौ लोगों को पकड़ लिया। उसके बाद उन्हें 15-15 बेंत मारने और 7 साल की कठोर कारावास हुई।

20 अगस्‍त को उन्हें मीराशाह में भीड़ के बीच 15-15 बेंत मारी गई। सार्वजनिक स्थान पर बेंत से पिटाई का मुख्य उद्देश्य था कि ग्रामीणों में दहशत बनी रहे। उसके बाद उन सभी को जेल भेज दिया गया। दस्तावेज बताते हैं कि वाराणसी के केंद्रीय कारागार में सभी लोगों को भेजा गया था। इस दौरान वाराणसी के सत्र न्यायालय में मुकदमा भी चला और 8 से 9 महीने तक जेल में रहने के बाद 1943 में उन्हें रिहा किया गया। महिलाओं ने भी दिया पूरा साथ करखियांव के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में सुरसती देवी पत्नी रामनारायण सिंह, कलावती देवी पत्नी बंसराज, नौरंगी देवी पत्नी नारायण सिंह, गंगातली देवी पत्नी भगवती सिंह आदि महिलाओं का भी नाम शामिल है। 

क्रांतिकारी महिलाओं के बारे में ग्रामीणों ने बताया कि अगस्त 1942 में आजादी की जंग का ऐलान हो जाने के बाद फूलपुर थाने पर तिरंगा फहराए जाने और रेलवे लाइन, टेलीफोन वायर को क्षतिग्रस्त किए जाने के बाद गांव में अक्सर पुलिस धावा बोल देती थी। ऐसे में देश के आजाद होने तक ग्रामीणों को भाग कर ही अपना जीवन बिताना पड़ा। इस दौरान ग्रामीण खेतों में रहते थे और घर की महिलाएं खाना बनाने के बाद उन्हें खेत में खाना देने जाती थी। कोई ऐसी महिलाएं भी थी जो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थीं। 

गांव के स्वतंत्रता सेनानियों की लिस्ट 

श्री अवध नारायण पुत्र जयश्री सिंह 
श्री जयश्री सिंह पुत्र कन्हई सिंह 
श्री महेश सिंह पुत्र जयनन्दन सिंह 
श्री वाली सिंह पुत्र जयनन्दन सिंह 
श्री नारायण मिश्र पुत्र शिव सुरत 
श्री वासदेव मिश्र पुत्र झिलमिल मिश्र 
श्री आद्या नारायण पुत्र जंगी 
श्री खिद्दीर उर्फ जगरदेव पुत्र शिवदास 
श्री वावूनन्दन पुत्र गोवर्धन धोषी 
श्री चरित्तर पुत्र मिल्लू जोगिया 
श्री रामकृपाल मौर्य पुत्र शिवनन्दन 
श्री लुप्पुर मौर्य पुत्र रामसुरत मौर्य 
श्री रामनारायण उर्फ छिनौती सिंह पुत्र महेश सिंह 
श्रीमती सुस्सती देवी पत्नी रामनारायण उर्फ छिनौठी सिंह 
श्री भगवंता यादव पुत्र बहादुर यादव 
श्रीमती भगवती देवी पुत्र दुक्खी सिंह 
श्री वासदेव सिंह पुत्र कन्‍हई सिंह 
श्री वंशराज सिंह पुत्र देवकी सिंह 
श्रीमती कलावती देवी पत्नी वंशराज 
श्री श्रीनारायण पुत्र विश्वनाथ सिंह 
श्रीमती नौरंगी देवी पत्नी नारायण सिंह 
श्रीमती गंगातली पत्नी श्री भगवती सिंह 
श्री रामकरन यादव पुत्र सहदेव 
श्री विपत पुत्र जगनन्दन पाल