बीएचयू में मनाई गई फ्रिंगर प्रिंटिंग के जनक डॉ. लालजी सिंह की जयंती, मरणोपरांत पद्मविभूषण देने की मांग
वाराणसी। बीएचयू के ज्ञान लैब में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के जनक और पूर्व कुलपति डॉ. लालजी सिंह की 78वीं जयंती पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वैज्ञानिकों, शोध छात्रों और शिक्षकों ने डॉ. सिंह के विज्ञान में अभूतपूर्व योगदान को याद करते हुए उन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित करने की मांग की।
मुख्य वक्ता बीएचयू पत्रकारिता विभाग के डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र ने कहा कि डॉ. सिंह का डीएनए फिंगरप्रिंटिंग पर कार्य विज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव लाया। उनका काम केवल तकनीकी नहीं, बल्कि मानवता को विज्ञान से जोड़ने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार से मांग की कि उन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित किया जाए।
डॉ. लालजी सिंह का बीएचयू से गहरा संबंध रहा। 2011 से 2014 तक वे विश्वविद्यालय के 25वें कुलपति रहे और इस दौरान उन्होंने केवल एक रुपये वेतन लिया। उनके नेतृत्व में कई नए शोध केंद्र स्थापित हुए और विज्ञान संस्थान को आधुनिक संसाधनों से समृद्ध किया गया। डॉ. सिंह की अमेरिका से आई शोध छात्रा डॉ. साक्षी सिंह ने बताया कि उन्होंने 25 वर्ष पहले ही पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जो आज विश्वभर में चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग हो रहा है।
हिंदी विभाग के डॉ. विवेकानंद ने कहा कि डॉ. सिंह ने विज्ञान और भारतीय ज्ञान परंपरा के बीच संतुलन स्थापित कर भारत की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती दी। वहीं, डॉ. मनीष मीणा और शोध छात्र रौनक ने डॉ. सिंह के जीवन को प्रेरणास्रोत बताया और उनके जीवन वृत्त को प्राथमिक शिक्षा में शामिल करने की मांग की।
जौनपुर जिले के कलवारी गांव में 5 जुलाई 1947 को जन्मे डॉ. सिंह ने बीएचयू से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एडिनबर्ग और कोलकाता में शोध कार्य किया और बाद में हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) से जुड़े, जहां 1998 से 2009 तक निदेशक रहे। कार्यक्रम का संचालन वैज्ञानिक प्रज्ञा वर्मा ने किया। अंत में प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. सिंह की जयंती युवा वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।