चाइना के फैंसी आइटम को टक्कर दे रही काशी के कुम्हारों की कला, लुभाएंगे मिट्टी के खूबसूरत दीये 

हर साल दीवाली पर चाइना के सजावटी सामानों से बाजार भरे पड़े रहते थे, लेकिन इस बार वाराणसी समेत पूर्वांचल के बाजार में चाइना के फैंसी सजावटी सामानों के सामने अपने देसी कुम्हारों के बनाए गए मिट्टी के सामानों की धूम है। लोग बड़ी संख्या में इस ईको फ्रेंडली मिट्टी के खूबसूरत और चटक रंग के सजावटी दीये लेने के लिए विवश हो जाएंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री का भी आह्वान है वोकल फार लोकल का। इसको देखते हुए इस बार दीपावली पर लोग दीयों का प्रयोग ज्यादा करते हुए नजर आएंगे। कुम्हारों को इसकी आशा है। 
 

संवाददाता राजेश अग्रहरि की रिपोर्ट 
 
वाराणसी।
हर साल दीवाली पर चाइना के सजावटी सामानों से बाजार भरे पड़े रहते थे, लेकिन इस बार वाराणसी समेत पूर्वांचल के बाजार में चाइना के फैंसी सजावटी सामानों के सामने अपने देसी कुम्हारों के बनाए गए मिट्टी के सामानों की धूम है। लोग बड़ी संख्या में इस ईको फ्रेंडली मिट्टी के खूबसूरत और चटक रंग के सजावटी दीये लेने के लिए विवश हो जाएंगे, क्योंकि प्रधानमंत्री का भी आह्वान है वोकल फार लोकल का। इसको देखते हुए इस बार दीपावली पर लोग दीयों का प्रयोग ज्यादा करते हुए नजर आएंगे। कुम्हारों को इसकी आशा है। 

वाराणसी के फुलवरिया ग्राम सभा में कुम्हारपुरा मोहल्ला, जहां लोग पहले प्रत्येक घरों में मिट्टी के बर्तन और त्योहारों के हिसाब से दीये बनाने का कार्य करते हैं। फुलवरिया के इस कुम्हारपुरा में अब लोगों के पास इलेक्ट्रिक चाक मशीन है, जिस पर लोग ज्यादा से ज्यादा दीये बनाने का कार्य कर रहे हैं। इलेक्ट्रिक चाक पर काम करने वाली नीलू देवी ने बताया कि हम लोग इस पर ज्यादा आसानी से काम कर लेते हैं और 1 दिन में लगभग 1000 कुल्हड़ तैयार कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि इधर कुछ दिनों से बीमारी के चलते दीपावली की तैयारी में थोड़ा विलंब हो गया। जो कार्य डेढ़ से दो महीना पहले शुरू करते थे, वह विगत एक महीना से शुरू कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दीया मार्केट में 50 से 60 रुपया कसोरा, तीन से चार रुपये पीस घंटी, 5 से 6 रुपये पीस घड़िया, दो से तीन रुपये पीस और छोटी वाली दीया 30 से 40 सैकड़ा के हिसाब से बिक जाता है। कुछ लोग अभी भी पुराने चाक पर काम करते हुए नजर आए। उनका कहना था कि हमको इसी पर काम करने पर आसानी होती है। बताया कि मिट्टी अब जल्दी उपलब्ध नहीं हो पाती है। हम लोग मंगाते हैं। वह लगभग 3500 से लेकर 4000 रुपये प्रति ट्राली के हिसाब से मिलती है। उसे अनुपात में अगर देखा जाए तो हम लोग को बहुत ज्यादा फायदा इसमें नहीं हो पाता है। 

हाथ से चलने वाले चाक पर काम करते हुए छोटे लाल प्रजापति ने बताया कि हमारा हाथ इसी पर ठीक से बैठा हुआ है। हमें इसी पर काम करने पर आसानी होती है। हालांकि, हमारे पास इलेक्ट्रिक चाक भी है, लेकिन यह ज्यादा उपयोगी लगता है। उन्होंने बताया कि मिट्टी को लाते हैं हम लोग उसके बाद भिगोते हैं और उसके बाद हम लोग दीया बनाने का कार्य करते हैं। बीमारी के चलते इस बार हम लोग थोड़े पीछे हो गए हैं। हम लोग चाहते हैं कि सभी वाराणसी के लोग हम लोगों के हाथों से बने दीयों का प्रयोग करें, ताकि त्योहार पर हमारे घर में भी रोशनी हो सके। फुलवरिया के कुम्हारपूरा के स्थानीय निवासी राधेश्याम प्रजापति ने बताया कि एक समय यहां पर बड़ी संख्या में दीये बनाने कार्य किया जाता था, लेकिन कुछ वर्षों से इसमें गिरावट आई है इसका कारण है की मिट्टी सही समय से और सही रेट में न मिलाना। 

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