स्मार्ट सिटी के साइनेज पर्यटकों को बता रहे गंगा घाटों का अधूरा इतिहास, नहीं मिल पा रही ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत की जानकारी

स्मार्ट सिटी की ओर से गंगा घाटों पर लगाए गए साइनेज बोर्ड पर्यटकों को अधूरा इतिहास बता रहे हैं। जो गंगा घाट तुलसी, कबीर के साथ ही तमाम ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक विरासतों को इतिहास समेटे हुए हैं, उनकी पहचान नाग नथैया आयोजन व अन्य तरीकों से दर्शायी जा रही है। ऐसे में दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी का इतिहास जानने की ललक से यहां आने वाले पर्यटकों को पूरी जानकारी नहीं मिल पा रही है।   
 

वाराणसी। स्मार्ट सिटी की ओर से गंगा घाटों पर लगाए गए साइनेज बोर्ड पर्यटकों को अधूरा इतिहास बता रहे हैं। जो गंगा घाट तुलसी, कबीर के साथ ही तमाम ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व धार्मिक विरासतों को इतिहास समेटे हुए हैं, उनकी पहचान नाग नथैया आयोजन व अन्य तरीकों से दर्शायी जा रही है। ऐसे में दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी का इतिहास जानने की ललक से यहां आने वाले पर्यटकों को पूरी जानकारी नहीं मिल पा रही है।   


तुलसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस की रचना की थी। स्मार्ट सिटी उसकी पहचान नाग नथैया के आयोजन से करा रहा है। ऐसे ही सदियों के गौरवशाली इतिहास को समेटे गंगा घाटों पर स्मार्ट सिटी ने आधी अधूरी जानकारी वाले साइनेज लगाए हैं। असि घाट पर कल्चर इंस्टलेशन के जरिए करीब चार करोड़ रुपये से खर्च कर स्कल्पचर लगाया गया है, लेकिन उसपर अधूरी जानकारी दी गई। इसके कारण देश-दुनिया से आने वाले सैलानियों को काशी के घाटों की पूरी जानकारी नहीं मिल पा रही है। दरअसल, काशी के घाट पूरी दुनिया में मशहूर हैं। उन्हें देखने के लिए देश-विदेश से सैलानी काशी आते हैं। घाटों पर भ्रमण करते हैं। पर्यटकों को काशी और गंगा घाटों के इतिहास की जानकारी देने के लिए स्मार्ट सिटी की ओर से साइनेज लगाए गए हैं, लेकिन साइनेज पर अधूरी जानकारी अंकित है। 


असि घाट के तीर्थ पुरोहित बलराम मिश्र ने बताया कि मां दुर्गा जब शुम्भ और निशुम्भ का वध करके अपना खड्ग फेंका जो प्रयागराज के फूलपुर स्थान पर जाकर गिरा। वहां से दो जल धाराएं निकली। बाएं से वरुणा और दाहिने से असि नदी निकली, जो गंगा में आकर मिली। इस नाम से वाराणसी नाम पड़ा और तुलसी घाट की पहचान नाग नथैया से दिखाया गया है जो कि इससे पूर्व इसकी महत्ता है। तुलसी घाट पर गोस्वामी तुलसीदास ने मानस की रचना की थी। इसके बाद उस स्थान का नाम तुलसी घाट पड़ा।