तुलसी की पांडुलिपि से मुगलों द्वारा जारी सीताराम के सिक्के, भारत कला भवन की प्रदर्शनी में रामायण के विभिन्न पहलुओं से होंगे रूबरू

 

वाराणसी। अयोध्या में श्री रामलला मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले भारत कला भवन के केंद्रीय कक्ष में ‘रामायण’ पर आधारित एक अस्थायी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी में संग्रहालय के संग्रहीत कलाकृतियों में से रामायण से सम्वन्धित विशिष्ट कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। राम भारतीय युवाओं के आदर्श हैं, इस प्रदर्शनी के माध्यम से आम जनमानस को राम के आदर्शों को उद्‌घाटित करने का प्रयास किया गया है। 

प्रदर्शनी का उद्घाटन वीडीए उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग ने किया। रामायण पर आधारित इस प्रदर्शनी की यात्रा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ की पाण्डुलिपि से प्रारम्भ होती है, जिसे तुलसीदास जी ने सन् 1486 ई० में विश्व प्रसिद्ध शहर बनारस के तुलसीघाट पर लिखा था। रामायण भारतीय साहित्य परम्परा में एक महाकाव्य है। इस महाकाव्य के कई काण्ड हैं- जिनमें बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड आदि प्रमुख हैं। प्रदर्शनी में गुप्तकाल (5वीं शताब्दी) से लेकर आधुनिक काल तक के रामायण से जुड़ी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। 

इसके अलावा वाराणसी से प्राप्त सेतु निर्माण को दर्शाती पत्थर की मूर्ति, सारस पक्षी की हत्या को दर्शाता लघु चित्र, जिसने ऋषि वाल्मीकी की कल्पना को रामायण जैसी महाकाव्य के रूप में लिखने को प्रेरित किया। इसके साथ ही साथ मुगल शासक अकबर द्वारा राम-सीया पर जारी रजत सिक्के की प्रतिकृति भी प्रदर्शित की गई है, जिसे अकबर द्वारा शासनकाल के 50वें वर्ष में जारी किया गया था। इसके पश्चात प्रदर्शनी राम के जीवन के विविध पक्षों से आम जनमानस को अवगत कराती है।

इस प्रदर्शनी के द्वारा उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत के रामायण से सम्बन्धित कलाकृतियों के द्वारा गम के विशिष्ट सन्र्दभों को उदघाटित करने का प्रयास किया गया है। इनमें विशिष्ट रूप से दक्षिण भारत के तंजौर शैली में निर्मित राम-रावण के मध्य युद्ध वाली कलाकृति प्रमुख हैं। उत्तर भारत की राम से सम्बन्धित विशिष्ट कलाकृतियों में पट्नीमल रामायण प्रमुख है। यह कलाकृति जयपुर-अवध शती (मिश्रित) में बनी हुई है पटुनीमल बनारस के समृद्ध व्यापारी थे जिन्हें बनारस दरबार द्वारा संरक्षण दिया गया था।

इस प्रदर्शनी के अन्तर्गत ‘राम के वैदिक सन्दर्भ’ एक विमर्श पर ऑनलाइन व्याख्यान प्रो० दीनबन्धु पाण्डेय मू०पू० विभागाध्यक्ष, कला इतिहास एवं पर्यटन प्रबन्धशास्त्र विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा दिया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रायें, शिक्षक-गण एवं भारत कला भवन के सभी कर्मचारी गण उपस्थित रहे।
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