हिंदू नववर्ष पर शंकराचार्य ने सनातनियों को दिया संदेश, पंचांग व दिनदर्शिका का किया लोकार्पण
वाराणसी। नव संवत्सर के अवसर काशी के शङ्कराचार्य घाट स्थित श्रीविद्यामठ में ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने सनातनी पंचांग व शंकराचार्य दिनदर्शिका का लोकार्पण किया। इस दौरान उन्होंने सनातनियों के नाम संदेश जारी काल की महत्ता बताई। साथ ही नवसंवत्सर की शुभकामनाएं भी दीं।
उन्होंने कहा कि काल अनन्त है। उसकी कलना बस स्वयं को सन्तोष देना है। अपने सन्तोष के लिए हमने काल के काल्पनिक विभाजन किए हैं। इकाइयां बनाई हैं। हम गिनकर बताते हैं कि हम कितने पुराने हैं। हालांकि हमारे दर्शन की दृष्टि में नवीनता और पुरातनता जैसी कोई वस्तु वास्तविक नहीं है। वर्तमान संसार में अपने को पुरातन कहकर अपने को श्रेष्ठ संपादित करने वालों को हम बताना चाहते हैं कि यह संवत्सर जिसका आज शुभारम्भ हो रहा है। वह वर्तमान सृष्टि के 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 126वां है। इतने दिनों से हम प्रतिदिन अपनी सन्ध्या और पूजा के संकल्प में कालगणना करते आ रहे हैं। दिन के हिसाब से गिनें तो 7 खरब 4 अरब 11 करोड़ 86 लाख 45 हजार दिन होते हैं। इतनी पुरानी सभ्यता और संस्कृति का दावा भी हमारा है और इतिहास भूगोल भी हमारा ही है। इतने पुराने को मिलने वाली हर नवीनता बहुत ही आकर्षक होती है इसीलिए हमारा नव वर्ष हमें अपार हर्ष प्रदान करता है। आप सबको नव संवत्सर की शुभकामनाएं।
इस संवत्सर का आरम्भ पिंगल नाम से होगा। 11 दिन बाद कालकृत आकर लगभग पूरे वर्ष रहेगा और अन्त में फाल्गुन मास की अमावस्या को सिद्धार्थ संवत् के रूप में परिवर्तित हो जाएगा । इस कालकृत संवत्सर को जो बार्हस्पत्य मान के अनुसार वर्तमान 60 संवत्सरों वाले चक्र में 52वां संवत्सर है; हमने इसे गौ संवत्सर के रूप में पहचानने और व्यवहार करने का आह्वान आप सबसे किया है। उद्देश्य है कि इसी संवत्सर में हम सनातनियों को एकजुट होकर गौ माता को राष्ट्र माता की पदवी पर बिठाते हुए उनकी हत्या को दण्डनीय अपराध की श्रेणी में लाने वाला कानून बनवाना है और स्वयं के स्तर पर रामा गाय की डीएनए टेस्ट के द्वारा पहचान सुस्थिर कर सम्मानपूर्ण संरक्षण संवर्धन पर ध्यान देना है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राजन्मभूमि व राममन्दिर का फैसला हिन्दुओं के पक्ष में कराने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता डा श्री पीएन मिश्रा उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन साध्वी पूर्णाम्बा दीदी ने किया। संयोजन देवी शारदाम्बा, ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द, ब्रह्मचारी परमात्मानन्द ने किया।
कार्यक्रम में ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानन्द, डॉ गिरीश चन्द्र तिवारी, रवि त्रिवेदी, हजारी कीर्ति नारायण शुक्ला, हजारी सौरभ शुक्ला, अभय शंकर तिवारी, डॉ साकेत शुक्ला, रंजन शर्मा, शैलेन्द्र योगी, रमेश उपाध्याय, सतीश अग्रहरी, सुनील शुक्ला, संतोष चौबे, डा लता पाण्डेय, माधुरी पाण्डेय, चांदनी चौबे, आर्यन सुमन पाण्डेय, अमित तिवारी आदि रहे।