संकट मोचन संगीत समारोह : छह दिवसीय संगीत महाकुंभ का हुआ समापन, अंतिम निशा में गूंज उठा स्वर मंत्रों का जाप
वाराणसी। संकट मोचन संगीत समारोह (Sankat mochan sangeet samaroh) की छठवीं निशा गायन-वादन की स्वर लहरियों से गुंजायमान रही। कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से संकट मोचन दरबार में हाजिरी लगाई। वहीं अपने स्वरों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ पं. जसराज (pandit Jasraj) के सुयोग्य शिष्य पं. नीरज पारिख (pt, Neeraj parikh) के गायन से हुआ। उन्होंने अपनी पत्नी उमा पारिख के साथ राग बिहाग (Rah-bihag) की अवतारणा की। एकताल निबद्ध बडा ख्याल के बाद तीन ताल निबद्ध छोटा ख्याल से बिहाग को विराम दिया। वहीं एक भजन से अपने गायन को पूर्ण विराम दिया। गायन में पंडित जी की छाप स्पष्ट सुनने को मिली। उनके साथ तबले पर अंशुल प्रताप सिंह, संवादिनी पर मोहित साहनी, व गौरी बनर्जी ने सारंगी पर गायन के अनुकूल सहभागिता किया।
दूसरी प्रस्तुति मुबंई से आए युवा बांसुरी वादक एस. आकाश (S. Akash) ने दी। राग आभोगी कान्हडा में आलापचारी के पश्चात झपताल में विलम्बित बंदिश एकताल में द्रुत बंदिश से वादन के बाद तीनताल में जिस लय पर झाला बजाया, वह अद्धभुत रहा। इनके साथ तबले पर इशान घोष ने लाजवाब संगत कर वादन को प्रभावी बना दिया।
तीसरी प्रस्तुति संकट मोचन संगीत समारोह का एक ऐतिहासिक कार्यक्रम बन गया। वैसे तो प्रतिवर्ष एक न एक इतिहास बनता है, लेकिन यह कार्यक्रम इतिहास के पन्ने में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। मंच पर गुंदेचा बंधु, उमाकांत गुंदेचा, अनन्त रमाकांत गुंदेचा पखावज पर महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र, पं. अखिलेश गुंदेचा ने जुगलबंदी की। इन लोगों की चौबन्दी, श्रोताओं को नाकाबंदी कर दिया। इन लोगों को हिलने तक का मौका नहीं दिया। एक अविस्मरणीय पल के साक्षी बने संगीत रसिक।
चौथी प्रस्तुति प्रसिद्ध पाश्र्वगायिका कविता कृष्णमूर्ति (Kavita Krishnamoorthi) ने अपनी सुमधुर आवाज की जलवा बिखेर कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ग्ध कर दिया। आपने गायन की शुरुआत से कर कुछ फिल्मी गानों से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। आपके साथ साथी कलाकारों ने अच्छी सहभागिता निभाकर प्रस्तुति को प्रभावशाली बनाया।
पांचवीं प्रस्तुति विश्वविख्यात वायलिन वादक पद्मश्री डा. एल सुब्रमण्यम (L. Subramanyam) ने वायलिन (violin) वादन कर श्रोताओं को आनंदित कर दिया। वैसे तो आप कर्नाटक शैली (Karnataka) में वादन करते हैं, बावजूद इनके वादन की ख्याति विश्व में है तो काशीवासी कैसे अछूता रहे। रागत हंसध्वनि की एक रचना से वादन शुरूकर और भी कई रागों की रचना से वादन को विराम दिया। साथी कलाकारों पं. येल्ला वेंकटेश्वर (Pandit Yella Venkateshwara) मृदंगम और पं. तन्मय बोस (Tanmay bosh) ने तबले पर जोरदार संगत कर पूरे माहौल को भक्तिमय कर दिया।
छठवीं प्रस्तुति देश की वरिष्ठ महिला गायिका विदुषी कंकनाबनर्जी ने गायन के क्रम में पहले राग अहीर भैरव की अवतारणा की। आपने झुमरा व तीन ताल में बंदिश के पश्चात एक रामधुन से गायन को विराम दिया। गायन में किराना घराने की छाप सुनने को मिली। उनके साथ तबले पर सुभाष कांति दास, संवादिनी पर मोहित साहनी व सारंगी पर गौरी बनर्जी ने कुशल भागीदारी निभायी।
सातवीं प्रस्तुति विश्वविख्यात सितार वादक पं. पूर्वायन चटर्जी ने सितार के तारों को झंकृत करते हुए राग मियां की तोडी की अवतारणा की। इसके पश्चात राग चारुकेशी में एक गत से वादन को विराम दिया। उनके वादन से मंदिर परिसर झंकृत हो गया। बनारस घराने के विख्यात तबला वादक पं. संजू सहाय ने अपनी ख्याति के अनुरूप सहभागिता की।
अंतिम प्रस्तुति में पं. भीमसेन जोशी (Pandit Bhimshen joshi) के सुयोग्य शिष्य पं. हरिश तिवारी ने राग ललित में ख्याल गायकी के पश्चात भजन से विराम खींचा। इनके गायन से श्रोता तृप्त हो गए। तबले पर पं. विनोद लेले व संवादिनी पर पं. धर्मनाथ मिश्र ने सहभागिता किया। इसके साथ ही 101वां श्री संकट मोचन संगीत समारोह व्योमेश शुक्ला, साधना श्रीवास्तव, चंद्रिमा राय व जगदीश्वरी के संचालन में संपन्न हुआ।