संकट मोचन संगीत समारोह : पं. हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी वादन से हुआ आगाज, सुर, लय और ताल का दिखा अद्भुत संगम 

काशी नगरी केवल धर्म और संस्कृति के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध संगीत परंपरा के लिए भी विश्वविख्यात है। इसी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए संकट मोचन मंदिर में बुधवार से 102वां संकट मोचन संगीत समारोह आरंभ हुआ। यह आयोजन न केवल काशी का बल्कि पूरे भारत का एक प्रतिष्ठित सांगीतिक उत्सव है, जिसकी गूंज सात समंदर पार तक सुनाई देती है।
 

वाराणसी। काशी नगरी केवल धर्म और संस्कृति के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध संगीत परंपरा के लिए भी विश्वविख्यात है। इसी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हुए संकट मोचन मंदिर में बुधवार से 102वां संकट मोचन संगीत समारोह आरंभ हुआ। यह आयोजन न केवल काशी का बल्कि पूरे भारत का एक प्रतिष्ठित सांगीतिक उत्सव है, जिसकी गूंज सात समंदर पार तक सुनाई देती है।

संगीत समारोह की शुरुआत पद्म विभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के सुरमयी बांसुरी वादन से हुई। 86 वर्षीय पंडित चौरसिया के साथ तीन और कलाकार मंच पर मौजूद रहे। खास बात यह रही कि मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वंभरनाथ मिश्र ने विशेष अनुरोध पर पखावज बजाकर उनका साथ दिया। इस अवसर पर मंदिर परिसर में मौजूद कला विधिका प्रदर्शनी ने भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया।

पहली रात जननी मुरली ने भरतनाट्यम प्रस्तुत किया, वहीं पंडित राहुल शर्मा ने संतूर पर मधुर धुनें छेड़ीं। देर रात तक पंडित विकास महाराज सहित कई नामचीन कलाकारों की प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। संगीत समारोह 16 से 21 अप्रैल तक चलेगा, जिसमें कुल 45 प्रस्तुतियां प्रस्तावित हैं। इस वर्ष 12 पद्म पुरस्कार प्राप्त कलाकार और 16 नवोदित कलाकार भी अपनी प्रस्तुति देंगे। महंत विश्वंभरनाथ मिश्र ने बताया कि यह आयोजन सिर्फ एक सांगीतिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि काशी की जीवंत परंपरा का प्रतीक है, जिसे पीढ़ियों से सहेजा गया है।

संगीत समारोह की शुरुआत 1923 में एकदिवसीय आयोजन के रूप में हुई थी। 1965 में पंडित जसराज के बड़े भाई पंडित मनीराम पहले बाहरी कलाकार थे जिन्होंने इसमें भाग लिया। 1979 में पहली बार संकट मोचन मंच पर पंडित राजन मिश्र और उनके भाई पंडित साजन मिश्र की जोड़ी उतरी थी। दोनों भाइयों ने 2019 तक इस मंच को अपनी प्रस्तुति से गौरवान्वित किया। 2021 में कोरोना काल में पंडित राजन मिश्र का निधन हो गया।

यह मंच धार्मिकता से परे केवल संगीत को समर्पित रहा है। 1978 में कोलकाता की कंगन बनर्जी यहां प्रस्तुति देने वाली पहली महिला कलाकार बनीं। 1966 में पंडित गोपाल मिश्रा और पंडित कृष्ण महाराज की जुगलबंदी इतनी प्रभावशाली थी कि मंच पर ट्यूबलाइट तक टूट गई थी। गुलाम अली, अनूप जलोटा सहित देश-विदेश के कई नामचीन कलाकार इस मंच पर प्रस्तुति दे चुके हैं। यह अनूठा आयोजन संगीत और श्रद्धा का ऐसा संगम है, जहां लोग हनुमान जी के दर्शन के साथ संगीत साधना में लीन हो जाते हैं।