Ravidas Jayanti 2025: संत रविदास की जन्मस्थली है भक्ति, समानता और आध्यात्मिकता का पवित्र केंद्र, देश ही नहीं विदेशों से भी आते हैं श्रद्धालु

 
वाराणसी। काशी के सीर गोवर्धनपुर में स्थित संत रविदास मंदिर न केवल रविदासिया संप्रदाय के अनुयायियों के लिए बल्कि विभिन्न समुदायों के भक्तों के लिए भी एक तीर्थ स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है। यह स्थान भक्ति आंदोलन के महान संत और ‘संत शिरोमणि’ की उपाधि से विभूषित गुरु रविदास की जन्मस्थली है। इस मंदिर की भव्य वास्तुकला इसे और भी विशिष्ट बनाती है। गुरुद्वारे से प्रेरित इस भव्य मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा गुंबद और 31 छोटे स्वर्ण जड़ित गुंबद स्थापित हैं, जो इसकी भव्यता को दर्शाते हैं।

मंदिर के अंदर स्थित कक्ष को संत रविदास के तपस्या स्थल के रूप में जाना जाता है। इस पवित्र स्थान के एक कोने में एक प्राचीन सितार भी रखा हुआ है, जिसे संत रविदास प्रवचन देते समय बजाया करते थे। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल उनके विचारों से प्रेरित होते हैं, बल्कि इस स्थान की आध्यात्मिक ऊर्जा का भी अनुभव करते हैं। संत रविदास की जयंती पर यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और इस पवित्र स्थान पर मत्था टेकते हैं।

जाति-वर्ग से परे मानवता का संदेश

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के समाजशास्त्र विभाग में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विमल कुमार लहरी के अनुसार, इस मंदिर में आने के बाद लोगों की जाति, धर्म और वर्ग की भावना समाप्त हो जाती है। यहां हर भक्त के मन में ‘मैं’ की भावना समाप्त होकर ‘हम’ की भावना जागृत होती है। संत रविदास के विचारों में सामाजिक समरसता और समानता को विशेष स्थान प्राप्त है। वे मानते थे कि व्यक्ति की पहचान उसकी जाति या कुल से नहीं, बल्कि उसके कर्मों से होती है।

मंदिर की स्थापना और इसका ऐतिहासिक महत्व

संत रविदास मंदिर की स्थापना का श्रेय स्वामी सरवण जी महाराज को जाता है, जिन्होंने 14 जून 1965 को स्वामी हरिदास के कर-कमलों से इसकी नींव रखवाई थी। इसके निर्माण की जिम्मेदारी स्वामी गरीब दास को सौंपी गई थी। मंदिर में संत रविदास की प्रतिमा की स्थापना 22 फरवरी 1974 को एक भव्य संत सम्मेलन के दौरान की गई थी।

इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित करने और संत रविदास की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने लंगर हॉल के सामने एक संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव रखा है। इस संग्रहालय में संत रविदास के जीवन, शिक्षाओं और रचनाओं को भौतिक एवं आभासी रूप में प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके विचारों से प्रेरित हो सकें।

सामाजिक भेदभाव और जातीय विषमताओं के कट्टर विरोधी थे संत रविदास

संत रविदास सामाजिक भेदभाव और जातीय विषमताओं के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से एक समतामूलक समाज की परिकल्पना की, जहां हर व्यक्ति समान हो। उनका प्रसिद्ध दोहा “ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिलै सबन को अन्न। छोट-बड़ों सब सम बसैं, रविदास रहें प्रसन्न।।” इस बात का प्रमाण है कि वे एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे, जहां भेदभाव न हो और हर व्यक्ति समान रूप से खुशहाल जीवन व्यतीत कर सके।

उनकी विचारधारा ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ के रूप में भी विख्यात है, जो आडंबरों से मुक्त, स्वच्छ और सरल जीवन की ओर प्रेरित करती है। संत रविदास ने ‘बेगमपुरा’ नामक एक ऐसे आदर्श नगर की कल्पना की, जहां दुख, भेदभाव और अन्याय न हो। उनका यह दृष्टिकोण आज भी समाज में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रासंगिक है।

गुरु नानक और कबीर से भी था संबंध

संत रविदास गुरु नानक और कबीर के समकालीन थे। विभिन्न ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि गुरु नानक और संत रविदास के बीच तीन बार मुलाकात हुई थी। वहीं, कबीर के साथ उनकी कई आध्यात्मिक चर्चाएं हुईं। कबीर संत रविदास से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें ‘संतों का संत’ कहा था। संत रविदास, स्वामी रामानंद के 12 प्रमुख शिष्यों में से एक थे और उनके 40 भजन गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहीत किए गए हैं।

अनुयायियों के लिए है प्रमुख तीर्थ स्थल

आज संत रविदास के अनुयायी उनकी शिक्षाओं को आगे बढ़ा रहे हैं। भारत ही नहीं, बल्कि विश्वभर में उनके विचारों को मानने वाले मठ, आश्रम और मंदिर स्थापित कर चुके हैं। संत रविदास का जन्म स्थान रविदासिया धर्म के अनुयायियों के साथ-साथ आध्यात्मिक खोज में लगे लोगों के लिए भी एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

पंजाब समेत अन्य राज्यों और विदेशों से आते हैं श्रद्धालु

हर साल गुरु रविदास जयंती के अवसर पर इस मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है। इस मौके पर पंजाब, देश के अन्य राज्यों और विदेशों से हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भारतीय रेलवे ‘स्पेशल बेगमपुरा एक्सप्रेस’ नामक विशेष ट्रेन का संचालन करती है, जो जालंधर से वाराणसी तक जाती है।

मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए हर समय लंगर की व्यवस्था रहती है, जहां सभी जाति-धर्म के लोग एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं। यहां आने वाले यात्रियों के ठहरने की उत्तम व्यवस्था भी उपलब्ध है।