Ramnagar ki ramlila-2023 : श्रीराम का खड़ाऊ लेकर अयोध्या लौटे भरत, राज सिंहासन पर प्रतिस्थापित हुई चरण पादुका, खुद गए नंदीग्राम  

आखिर श्रीराम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे ही। पिता के वचन की लाज उनको रखना तो था ही, सूर्यवंश की रीति नीति भी निभानी थी। सूर्यवंश की रीति नीति यही कहती है कि वचन के लिए प्राण दे देना ही उत्तम है। उधर त्याग के प्रतिमूर्ति बन चुके भरत कहां पीछे रहते। राम के बिना उन्हें अयोध्या सुहाती नहीं थी तो मांग लिया श्रीराम का खड़ाऊं और उसे लाकर अयोध्या के सिंहासन पर प्रतिस्थापित कर चले गए नंदीग्राम निवास करने। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के पंद्रहवें दिन इन्हीं प्रसंगों का मंचन किया गया। 
 

संवाददाता डा. राकेश सिंह 
वाराणसी।
आखिर श्रीराम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे ही। पिता के वचन की लाज उनको रखना तो था ही, सूर्यवंश की रीति नीति भी निभानी थी। सूर्यवंश की रीति नीति यही कहती है कि वचन के लिए प्राण दे देना ही उत्तम है। उधर त्याग के प्रतिमूर्ति बन चुके भरत कहां पीछे रहते। राम के बिना उन्हें अयोध्या सुहाती नहीं थी तो मांग लिया श्रीराम का खड़ाऊं और उसे लाकर अयोध्या के सिंहासन पर प्रतिस्थापित कर चले गए नंदीग्राम निवास करने। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के पंद्रहवें दिन इन्हीं प्रसंगों का मंचन किया गया। 

प्रसंग के मुताबिक अभी सब इस विमर्श में व्यस्त थे कि आखिर होगा क्या। श्रीराम भरत का प्रस्ताव मानेंगे या नहीं। श्रीराम भरत को समझाते हुए कहते हैं कि रघुकुल की रीति तो तुम जानते ही हो। वचन निभाने से बढ़कर कुछ भी नहीं है। फिर तुमको भी सिर्फ एक अवधि भर की कठिनाई है। राम के समझाने पर भरत मान तो जाते हैं लेकिन श्रीराम से उनकी खड़ाऊं मांग लेते हैं। भरत अयोध्या लौटने के लिए तैयार हो गए। अयोध्या लौटने से पूर्व भरत चित्रकूट के पावन स्थलों को देखने की इच्छा व्यक्त करते हैं। अत्रि मुनि के कहने पर भरत ने पहाड़ के समीप स्थित एक कूप में श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए लाए गए सभी तीर्थों का जल रख दिया। मुनि ने उसको भरत कूप नाम दिया। जिसकी महिमा राम ने सब को बताते हुए कहा कि इस कूप के जल के सेवन से मनुष्य रोग व्याधि मुक्त रहेगी। 

चित्रकूट परिक्रमा के पश्चात भरत ने राम से कहा कि हमारी इच्छा पूरी हुई, अब आप आज्ञा दीजिए। श्रीराम फिर उनको समझाते हैं और अपना खड़ाऊं उतार कर भरत को देते हैं जिसे अपने सिर पर रख भरत अयोध्या वापस चल पड़े। सभी को विदा करके राम अपनी कुटिया में जाते हैं। यहां चित्रकूट में राम सीता और लक्ष्मण की आरती हुई। वहां से लीला प्रेमी भरत जी के साथ अयोध्या वापस लौटे जहां भरत ने अयोध्या के राज सिंहासन पर श्रीराम की खड़ाऊं विधि विधान के साथ स्थापित की और शत्रुघ्न को अयोध्या की जिम्मेदारी सौंपकर नंदीग्राम चले गए। वे वहां पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। नंदीग्राम में भरत जी की आरती के साथ लीला को विश्राम दिया गया।