Ramnagar ki Ramlila 2024 : युद्ध में मारा गया अत्याचारी रावण, जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा लीला क्षेत्र, निकला विजय जुलूस
वाराणसी। अतंत वह घड़ी आ ही गई, जिसका समय और काल को इंतजार था। जिस पल का देवताओं को इंतज़ार था। जिसके लिए श्री राम वन आए थे और जिस पल का उनकी अर्धागिनी सीता को इंतज़ार था। रावण के अहंकार ने तो उसका सर्वस्व छीन ही लिया था। रोने वाला भी कोई नही बचा था। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला में शनिवार को रावण बध के प्रसंग का मंचन किया गया।
रावण अपने सारथी को डांटता है कि तुमने मेरा रणभूमि छुड़ाया। वह युद्ध करता है और कई तरह का माया दिखाता है। यह सब देख विभीषण श्रीराम को रावण की नाभि में तीर मारने को कहते हैं। श्रीराम उसके नाभि में तीर मारते हैं और रावण का अंत हो जाता है। विभीषण रावण की मृत्यु पर विलाप करते हैं। श्रीराम विभीषण से शोक छोड़ रावण की अंत्येष्टि करने को कहते हैं। विभीषण रावण को मुखाग्नि देते हैं। रावण का शरीर धू-धू कर जलता है और राख हो जाता है। उसकी आत्मा उसका शरीर छोड़ दूसरे लोक चली जाती है। रावण के खानदान से सिर्फ विभीषण ही बचे थे। वहीं कुछ परिजन भी रहते हैं, जो विभीषण के साथ आग लेकर रावण के पुतले के पांच चक्कर लगाते हैं। विभीषण फिर रावण को मुखाग्नि देते हैं। रावण के अंत के साथ ही लीला क्षेत्र जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठता है और पूरा माहौल राममय हो जाता है।
शान से निकला कुंवर अनंत नारायण का विजय जुलूस
श्रीराम के रावण पर विजय के उपलक्ष्य में काशीराज परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह का शाही विजय जुलूस शनिवार की शाम पूरे शाही और परंपरागत अंदाज में निकला। जुलूस में सबसे आगे बनारस स्टेट का झंडा लेकर दुर्ग के मुसाहिब चल रहे थे। उनके पीछे डंका वादक घुड़सवार, घुड़सवार पुलिस का दल चल रहा था। इसके बाद कुंवर परंपरागत राजसी वेशभूषा में हाथी पर सवार होकर ठीक चार बजकर उन्नीस मिनट पर किले से बाहर निकले। उनके बाहर निकलते ही किले के ऊपरी बुर्ज पर खड़े ताशा वादकों ने ताशा बजाया। कुंवर के बाहर निकलते ही दुर्ग के बाहर खड़े लोगों ने हर-हर महादेव के उद्घघोष के साथ उनका अभिवादन किया। कुंवर ने भी हाथ जोड़कर उनका अभिवादन स्वीकार किया।
कुंवर का शाही काफिला लंका रामलीला मैदान के लिए चल पड़ा। लगभग तीन किलोमीटर के रास्ते में दोनों ओर खड़े लोग उनका अभिवादन करते रहे। बटाऊबीर पहुंचकर उन्होंने शमी वृक्ष का पूजन किया और शांति के प्रतीक कबूतर उड़ाए। इसके बाद धीरे-धीरे उनका काफिला लंका पहुंचा। वहां पहुंचकर कुंवर ने रणभूमि की परिक्रमा की और दुर्ग में लौट आए। यहां दरबार हाल में दरबार लगाया गया जहां दुर्ग के मुसाहिबो ने कुंवर को नजर पेश की। मुसाहिबों ने रुमाल में एक रुपये का सिक्का और पान का बीड़ा रखकर कुंवर को पेश किया। इसके पूर्व अनंतनारायण दुर्ग के झंडा गेट पर दोपहर ढाई बजे शस्त्र पूजन पर बैठे। झंडा गेट पर आते ही पीएसी के जवानों ने कुंवर को सलामी दी। इसके अलावा दुर्ग के बैंड दल ने भी सलामी धुन बजाई। ब्राह्मणों के दल ने पूरे विधि विधान से पूजा संपन्न संपन्न कराया। शस्त्र पूजा के बाद कुंवर ने दुर्ग में स्थित मां काली के अलावा अपने कुल देवी देवताओं के दर्शन पूजन किए।