Ramnagar ki Ramleela: 11वें दिन भरत का कैकेई से सवाल और शत्रुघ्न का मंथरा पर क्रोध, भरत ने निषादराज से की भेंट
वाराणसी। काशी के रामनगर की रामलीला विश्व प्रसिद्ध है। यह रामलीला जितनी अनूठी है, उतने ही खास इसे देखने वाले भक्त हैं, जो बीते कई दशकों से इस अद्भुत लीला को देखने यहां आते हैं। आधुनिकता के दौर से अलग आज भी पेट्रोमैक्स की रोशनी में बिना स्टेज और साउंड सिस्टम के यहां रामलीला का मंचन होता है।
शुक्रवार को रामनगर की रामलीला का 11 वां दिन था। भक्तों की भारी भीड़ पहुंची थी। सभी लीला शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। तभी लीलास्थल पर तेज आवाज गूंजती है "चुप रहो सावधान" और यही आवाज है लीला के शुरू होने की हजारों की भीड़ एक दम शांत होकर लीला सुनने लगते हैं।
रामनगर की रामलीला में सोमवार को 11वें दिन के प्रसंग के मुताबिक भरत ननिहाल से लौटे, तो कैकेई से अयोध्या का हाल पूछने लगे। कैकेई ने बताया कि सब मैंने ठीक कर दिया है। बस एक काम विधाता ने बिगाड़ दिया। महाराज दशरथ सुरधाम चले गए। भरत कैकेई पर फट पड़े। जब पता चला कि यह सारा खेल मंथरा का है तो शत्रुघ्न उसकी चोटी पकड़ कर जमीन पर पटक देते हैं।
कौशल्या ने उन्हें समझाया कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। गुरु वशिष्ठ ने भी समझाया। वह परिजनों को लेकर श्रीराम को मनाने वन की ओर चल पड़े। भरत को आते देख निषाद राज का दूत सेना के साथ भरत के आने की सूचना देता है, तो वह अपना धनुष बाण मंगा लेते हैं। लेकिन भरत से मिलकर उनका भ्रम दूर हो जाता है। निषाद राज भरत के साथ सबको लेकर गंगा दर्शन कराते हैं। भरत गंगा पार कर उस रास्ते सिर नवाते आगे बढ़े जिधर से राम गुजरे थे। सभी भारद्वाज मुनि के आश्रम पहुंचते हैं। भोजन के बाद सभी वहीं विश्राम करते हैं। यहीं आरती के साथ लीला को विराम दिया गया।