Ramnagar ki Ramleela: 10वें दिन पिता-पुत्र और पति-पत्नी के आदर्श रिश्तों का जीवंत मंचन, केवट ने पखारे प्रभु के पांव, दर्शक हुए भाव-विभोर

 

वाराणसी। विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में गुरुवार को श्रद्धालुओं ने पिता-पुत्र और पति-पत्नी के आदर्श संबंधों का सजीव अनुभव किया, जो उन्हें भाव-विभोर कर गया। श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता की जय-जयकार से समूचा क्षेत्र गूंज उठा। रामलीला के दसवें दिन वन गमन, निषादराज से मिलन और श्री लक्ष्मण द्वारा दिए गए गीता उपदेश का मंचन किया गया, जिसने दर्शकों को रामायण के महत्वपूर्ण प्रसंगों से रूबरू कराया। 

दशवें दिन भी रामलीला में पिता-पुत्र और पति-पत्नी के संबंधों की मर्यादा को बड़े ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया। इस दिन का मुख्य आकर्षण था श्रीराम का अपने पिता के वचनों को निभाने के लिए वन गमन और निषादराज से भावपूर्ण मिलन। जब प्रभु श्रीराम वन की ओर प्रस्थान करते हैं, तो देवगण यह देखकर प्रसन्न होते हैं कि अब राक्षसों के आतंक का अंत निकट आ रहा है। 

केवट ने पखारे प्रभु श्रीराम के चरण

रामलीला के इस मंचन का एक और प्रमुख दृश्य था केवट और श्रीराम का प्रसंग। केवट, जो एक साधारण नाविक था, ने सुन रखा था कि श्रीराम के चरणों के स्पर्श से पत्थर भी स्त्री बन गया था। इस डर से, उसने श्रीराम को अपनी नाव में तब तक बिठाने से इनकार कर दिया जब तक कि उनके चरण धो नहीं दिए जाते। उसने प्रभु श्रीराम के चरण धोकर चरणामृत लिया और फिर उन्हें अपनी नाव में बिठाया। इस दृश्य ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

गंगा नदी पार करते समय केवट का समर्पण देखने लायक था। जब श्रीराम ने उतराई के रूप में केवट को अंगूठी (मुंदरी) देने का प्रस्ताव रखा, तो केवट ने विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया और चार दिन और सेवा का अवसर मांगा। श्रीराम की इस यात्रा में निषादराज भी उनके साथ आकर सेवा करने का अवसर प्राप्त करते हैं। 

चित्रकूट और त्रिवेणी स्नान का प्रसंग

रामलीला के दसवें दिन के मंचन में श्रीराम का चित्रकूट पहुंचने का दृश्य भी जीवंत रूप से प्रस्तुत किया गया। गंगा और यमुना पार कर वे प्रयाग पहुंचते हैं, जहां त्रिवेणी संगम पर स्नान करते हैं। इसके बाद वे भारद्वाज मुनि के आश्रम में रात्रि विश्राम करते हैं। इस प्रसंग ने दर्शकों को रामायण के उन महत्वपूर्ण क्षणों से जोड़ा, जो श्रीराम की वन यात्रा का अभिन्न हिस्सा हैं। 

अगली सुबह, मुनि के शिष्य श्रीराम और उनके साथियों को यमुना तट तक पहुंचाते हैं, जहां से वे यमुना नदी पार करते हैं। यात्रा के दौरान श्री लक्ष्मण गांववासियों से वाल्मीकि आश्रम का पता पूछते हैं। वहां पहुंचने पर श्रीराम कुटिया बनाने के लिए उचित स्थान की जानकारी प्राप्त करते हैं।

समर्पण और मर्यादा का संदेश

रामनगर की रामलीला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह जीवन में मर्यादा, समर्पण और आदर्श रिश्तों का जीवंत उदाहरण भी प्रस्तुत करती है। पिता के वचनों को निभाने का श्रीराम का संकल्प, पत्नी के प्रति उनके प्रेम और भाई लक्ष्मण का अटूट विश्वास, सभी दर्शकों को प्रेरित करता है। इस अद्भुत रामलीला ने श्रद्धालुओं को रामायण के संदेशों से जोड़ा और उन्हें आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा दी।