गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है काशी के फुलवरिया की रामलीला: मुस्लिम पढ़ते हैं मानस की चौपाई, कभी निजामुद्दीन बनते थे हनुमान, अब उतारते हैं पात्रों की आरती
वाराणसी। एक ओर जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में धार्मिक तनाव और हिंसा की घटनाएं सुर्खियां बटोर रही हैं, तब काशी का फुलवरिया क्षेत्र सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की अद्भुत मिसाल पेश कर रहा है। यहां नवरात्र के दौरान होने वाली रामलीला न सिर्फ धार्मिक बल्कि सामाजिक सौहार्द का भी प्रतीक बन चुकी है। इस रामलीला में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग न केवल एक साथ मिलकर इसका आयोजन करते हैं, बल्कि मुस्लिम बुजुर्ग निजामुद्दीन द्वारा प्रभु श्री राम की आरती के साथ मंचन की शुरुआत होती है, जो गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है।
हिंदू-मुस्लिम युवक मिलकर करते हैं रामलीला का मंचन
फुलवरिया की यह रामलीला इसलिए खास है क्योंकि इसे हिंदू और मुस्लिम युवाओं द्वारा मिलकर प्रस्तुत किया जाता है। यहां के कलाकार स्थानीय होते हैं और मंचन के साथ-साथ रामचरितमानस का पाठ भी गांव के ही लोग करते हैं। बाहरी कलाकारों को बुलाने की परंपरा नहीं है। इस रामलीला का आयोजन नव चेतना कला और विकास समिति द्वारा किया जाता है, जिसकी शुरुआत 1992 में गांव के हिंदू और मुस्लिम समुदाय ने मिलकर की थी। यह सांस्कृतिक आयोजन पिछले 32 वर्षों से दोनों समुदायों के सहयोग से निर्बाध रूप से चलता आ रहा है, और हर साल हजारों दर्शक इसे देखने आते हैं।
निजामुद्दीन पेश करते हैं रामलीला के मंच पर सांप्रदायिक एकता की तस्वीर
फुलवरिया के 60 वर्षीय निजामुद्दीन, जो कभी हनुमान की भूमिका निभा चुके हैं, अब रामलीला के हर दिन की शुरुआत प्रभु श्री राम और अन्य पात्रों की आरती से करते हैं। उनका कहना है कि रामलीला का हिस्सा बनना उनके जीवन का अहम हिस्सा है, और पिछले 32 वर्षों से यह परंपरा उनके लिए अधूरी नहीं रहनी चाहिए। उनके अनुसार, रामलीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है।
रामलीला समिति के संस्थापक, डॉक्टर शिव कुमार गुप्ता ने बताया कि इस आयोजन में हर साल गांव के हिंदू और मुस्लिम युवाओं का योगदान रहता है। उनके प्रयासों से यह आयोजन सफल होता है और इसके मंचन को देखने के लिए वाराणसी शहर से भी लोग खिंचे चले आते हैं।