काशी के भिखारी बन गए प्रभु जी, भीख मांगना छोड़ सीख रहे हुनर, सम्मान के साथ करेंगे जीविकोपार्जन
- रंग ला रही डा. निरंजन की पहल, अपना घर आश्रम संस्था से संवार रहे जीवन
- भिखारियों के रहने, भोजन-पानी समेत ट्रेनिंग की है व्यवस्था
- आश्रम में तरह-तरह के हुनर सीखकर आत्मनिर्भर बन रहे भिखारी
वाराणसी। सड़कों पर दर दर भटकने वाले भिखारी अब काशी में प्रभुजी बन गए हैं। उन्हें बाकायदा आत्मनिर्भर बनने का गुण सीखया जा रहा है। इस नए हुनर के जरिए वे अपना जीविकोपार्जन भी कर रहे हैं। डा. निरंजन की अपना घर आश्रम की पहल अब रंग ला रही है। उनके आश्रम में अब तक दर्जनों भिखारियों का जीवन बदल चुका है।
डॉक्टर निरंजन अपना घर नाम की संस्था का संचालन करते हैं, जहां पर दर्जनों की संख्या में सड़क किनारे घूमने व भिक्षा मांगने वाले बेसहारा भिखारी को शरण दी जाती है। उन्हें सामान्य जीवन जीना सिखाया जाता है। इसके तहत अब इन भिखारी को प्रभुजी बनाकर बकायदा स्वावलंबी बनाया जा रहा है। भिखारी अगरबत्ती बनाना,साबुन बनाना, दोना पत्तल व अन्य सामानों को बनाना सीख रहे हैं। खास बात यह है कि इसमें महिला व पुरुष दोनों शामिल हैं।
काशी में भिखारी बन रहे आत्मनिर्भर
इस बारे में संस्था के संचालक डॉक्टर निरंजन बताते हैं कि, हम सड़क पर घूमने वाले बेसहारा भिक्षा मांगने वाले लोगों का रेस्क्यू कर आश्रम में लाते है। उनके रहने खाने सभी तरीके की व्यवस्था की जाती है। आश्रम में आने के बाद हम उनका नाम प्रभु जी रखते हैं। यहां आने पर सबसे पहले उनका इलाज किया जाता है। स्वस्थ होने के बाद यदि वह लोग अपने घर का पता बता देते हैं तो उन्हें अपने घर भेज दिया जाता है, यदि नहीं बताते नहीं जाना चाहते तो उन्हें यहीं रखा जाता है और उनके जीवन को बेहतर करने के लिए उनके कौशल विकास को बेहतर करने का प्रयास किया जाता है। इसके तहत ये लोग अगरबत्तियां साबुन, दोना पत्तल बनाने का काम, करते हैं और यह सभी बेहद बेहतरीन क्वालिटी के होते हैं।
बनती हैं चार तरह की अगरबत्तियां
उन्होंने बताया कि, अगरबत्तियों में चार तरीके की अगरबत्ती बनाई जाती हैं, जो फुल व लकड़ी के जरिए तैयार की जाती हैं। इसमें रोज, बेलपत्र, सैंडल, केवड़ा शामिल है। इसके साथ ही जो साबुन बनाए जाते हैं वह भी पूरी तरीके से प्राकृतिक होते हैं। इनमें ग्लिसरीन का बेस होता है उसमें हल्दी, नीम, गुलाब शामिल होता है। साथ ही घरों से हम लोग निष्प्रयोग अखबारों को लेकर के महिला प्रभु जी के जरिए पैकेट बनवाकर इनको दावों की दुकानों पर वितरित किया जाता है। हर दिन दोपहर 12 से 4 भी तक सभी लोग इस काम में लगे रहते हैं।
वे बताते हैं कि हमारा उद्देश्य है कि कल को यदि ये लोग अपने घर जाते हैं या अलग से अपना जीवन यापन करना चाहते हैं तो उनके पास हुनर हो जिसके जरिए यह अपने जीवन और अपने परिवार को बेहतर बना सकें। उन्होने बताया कि, इनके द्वारा बनाए गए सभी सामानों में भिखारी मुक्त शहर का संदेश भी दिया जाता है और हमारे लोगों से अपील रहती है कि यदि आपको भिखारी दिखे तो आप उसे भीख देने के बजाय उसे पके हुए भोजन दें, क्योंकि यदि हम भीख देना बंद कर देंगे तो धीरे-धीरे भिखारी समाप्त हो जाएंगे।
1700 से ज्यादा भिखारियों का किया है रेस्क्यू
डा. निरंजन ने बताया कि यहां साबुन और सामान को हम बेचते नहीं है बल्कि सहयोग के लिए अधिकतम 30 और 25 रुपये में इसे सहायता के लिए लोगों को दिया जाता है, जिसकी बाकायदा दान की रसीद बनाई जाती है। हमारे यहां 1700 से ज्यादा प्रभु जी हैं, जिनमें पुरुष महिलाएं शामिल है। 700 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू कर हम घरों तक पहुंचा चुके हैं। आश्रम में रहकर आत्मनिर्भर बनने वाले भिखारी बताते हैं कि, अब उनका जीवन पहले से बेहतर है। पहले वह ट्रेन में सड़कों पर घूम करके भीख मांगते थे और इधर-उधर अपना गुजारा कर लेते थे, लेकिन आश्रम में आने के बाद अब वह आत्मनिर्भर बन रहे हैं और बाकायदा नया हुनर सीख रहे हैं।