वाराणसी में बुलडोजर की कार्रवाई पर गरमाई सियासत, सपा सांसद ने प्रशासनिक कार्रवाई पर उठाए सवाल, संस्कृति को नष्ट करने वाला कदम बताया
वाराणसी। लंका थाना क्षेत्र में दो दिन पहले देर रात करीब 10 बजे बुलडोजर कार्रवाई ने शहर की सांस्कृतिक विरासत को हिलाकर रख दिया। इस कार्रवाई में 70 साल पुरानी मशहूर "पहलवान लस्सी" और 120 साल पुरानी "चाची की कचौड़ी" की दुकान समेत 35 दुकानों को जमींदोज कर दिया गया। इसको लेकर अब सियासत गरमा गई है। सपा सांसद वीरेंद्र सिंह ने स्थल का निरीक्षण किया। उन्होंने प्रशासनिक कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए इसे विरासत को नष्ट करने वाला कदम बताया।
सांसद ने स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने इस कार्रवाई को काशी की सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काशी के विचार, विरासत और परंपरा को नहीं समझ सकते क्योंकि वे गुजरात के रहने वाले हैं। वे काशी की आत्मा से जुड़े नहीं हैं। उन्हें नहीं पता कि बनारस की आत्मा कहां बसती है।"
उन्होंने आगे कहा कि काशी विद्यापीठ के छात्र के रूप में वे भी इन दुकानों पर कचौड़ी और लस्सी का आनंद लेते थे। "ये दुकानें सिर्फ खाने की जगह नहीं, बल्कि काशी की संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा हैं। कचौड़ी गली, खेतों के पान की दुकान और घाटों की महत्ता को समझने की जरूरत है। प्रधानमंत्री को स्थानीय लोगों से काशी की आत्मा के बारे में जानना चाहिए।"
इस दौरान अजय फौजी ने भी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री गरीबी हटाने की बात करते हैं, लेकिन यहां गरीबों को ही उजाड़ा जा रहा है। इन 35 दुकानों में छोटे दुकानदार शामिल थे, जिनका जीवन यापन इन्हीं दुकानों से होता था। मोदी जी कहते हैं कि वे चाय बेचकर प्रधानमंत्री बने, लेकिन यहां चाय बेचने वाले गरीबों की दुकानें क्यों तोड़ी गईं?" फौजी ने यह भी आरोप लगाया कि प्रभावित दुकानदारों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया, जिससे उनकी आजीविका संकट में पड़ गई है। उन्होंने कहा कि यह कार्रवाई काशी की पौराणिकता को नष्ट करने का प्रयास है।
वहीं प्रशासन का कहना है कि सड़क चौड़ीकरण के लिए यह कार्रवाई जरूरी थी और दुकानदारों को पहले नोटिस दिया गया था। हालांकि, स्थानीय लोगों का दावा है कि नोटिस का समय अपर्याप्त था और मुआवजे की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी।
"पहलवान लस्सी" और "चाची की कचौड़ी" न केवल स्थानीय लोगों, बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों और बीएचयू के छात्रों के लिए भी आकर्षण का केंद्र थीं। इन दुकानों के ध्वस्त होने से लोगों में उदासी और गुस्सा है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, "ये दुकानें हमारी यादों का हिस्सा थीं। विकास जरूरी है, लेकिन क्या इसके लिए हमारी विरासत को मिटाना जरूरी था?"