ज्ञानवापी मुक्ति के लिए शुरू की पंचकोसी यात्रा, श्रद्धालु बोले, काशी के कंकर-कंकर में शंकर 

ज्ञानवापी मुक्ति के लिए श्री लाट भैरव काशी यात्रा मंडल के सदस्यों ने पंचकोसी यात्रा शुरू की। मणिकर्णिका के चक्रपुष्करिणी कुंड पर संकल्प के दौरान सभी ने सामूहिक रूप से ज्ञानवापी में भगवान आदिविश्वेश्वर का दर्शन शीघ्र भक्तों को प्राप्त होने की कामना की। 24 घंटे तक चलने वाली यात्रा को लेकर भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिला। भक्त नाचते-गाते व शिव की भक्ति में लीन दिख रहे हैं। 
 

वाराणसी। ज्ञानवापी मुक्ति के लिए श्री लाट भैरव काशी यात्रा मंडल के सदस्यों ने पंचकोसी यात्रा शुरू की। मणिकर्णिका के चक्रपुष्करिणी कुंड पर संकल्प के दौरान सभी ने सामूहिक रूप से ज्ञानवापी में भगवान आदिविश्वेश्वर का दर्शन शीघ्र भक्तों को प्राप्त होने की कामना की। 24 घंटे तक चलने वाली यात्रा को लेकर भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिला। भक्त नाचते-गाते व शिव की भक्ति में लीन दिख रहे हैं। 

श्री लाट भैरव काशी यात्रा मण्डल के सदस्यों ने भी फाल्गुन कृष्ण पक्ष के प्रदोष काल मे ज्ञानवापी मुक्ति के संकल्प संग यात्रा प्रारम्भ की। भाल पर भष्म की त्रिपुंड लगाए, नंगे पांव, मार्ग पर्यंत डमरू नाद, हर हर महादेव शम्भू काशी विश्वनाथ गङ्गे आदि शिव भजनों का गान करते हुए प्रत्येक श्रद्धालु आस्था के रंग में सराबोर अपने गंतव्य स्थान की ओर चला जा रहा था। सम्पूर्ण यात्रा मार्ग में महोत्सव का स्वरूप देखने को मिला। इस दौरान हर हर महादेव का गगनभेदी उद्घोष गूंज रहा था। वहीं कुछ भक्त मौन धारण कर सांसों की माला में शिव को रमाए, कहीं शिवभक्तों की टोली डीजे की धुन पर नाचेत-गाते नजर आ रहे थे। जगह-जगह यात्रियों के लिए सहायता शिविर व सेवा कैम्प लगाएं गए थे। यात्री अपने आवश्यकतानुसार दवा, दूध, जल, फलाहार, भांग-ठंडई इत्यादि का सेवन करते उमंग में चल रहे थे। एकदिवसीय इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु लगभग 80 किलोमीटर का रास्ता तय करते हुए प्रथम पड़ाव कंदवा स्थित कर्दमेश्वर महादेव, द्वितीय भीमचण्डी स्थित नरकडी अवतार महादेव, तृतीय रामेश्वर महादेव, चतुर्थ स्थान पंच शिवाला (पांचों पंडव), पांचवा और अंतिम पड़ाव कपिलधारा स्थित वृषभद्जेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन कर जौ विनायक दर्शन करतें हैं। पुनः मणिकर्णिका घाट पर संकल्प पूर्ण करते हैं। 

यात्रा कर रहे शिवम अग्रहरि ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि अद्भुत अनुभूति कराने वाली इस यात्रा में हर कोई शिवस्वरूप माना जाता है। इस निमित्त यात्रा हर व्यक्ति एक दूसरे को भोले नाम से ही संबोधित करते हैं। महात्म्य बताते हुए केवल कुशवाहा कहतें है कि यह यात्रा काशी के कंकड़-कंकड़ में शंकर का सुखद एहसास कराती है। यात्रा के माध्यम से शिव को अत्यंत प्रिय पौराणिक नगरी अविमुक्त क्षेत्र काशी की समग्र परिक्रमा करना परम् सौभाग्य की बात है। यात्रा में उत्कर्ष कुशवाहा, रितेश कुशवाहा, रविशंकर, कुशवाहा, हिमांशु, सुमित, दिनेश, पवन, शिवप्रसाद, बबलू, सत्यम, सूरज, आशीष कुशवाहा आदि शामिल रहे।