माँ कूष्माण्डा श्रृंगार एवं संगीत समारोह के पांचवे दिन भजनों की गूंज, मनोज तिवारी की प्रस्तुति ने मोहा मन, मां का हुआ पंचमेवा श्रृंगार
वाराणसी। माँ कूष्माण्डा दुर्गा संगीत समारोह के पांचवें दिन का आयोजन लोक संगीत को समर्पित रहा, जहां देवी के भजनों से वातावरण भक्तिमय हो उठा। इस मौके पर काशी के भजन मंडलियों ने झांझ-मजीरे के साथ माँ की महिमा का गुणगान किया, जबकि प्रसिद्ध लोक गायक मनोज तिवारी और रागिनी सोपोरी ने देर रात तक अपने सुरों से माँ कूष्माण्डा का अभिषेक किया।
कार्यक्रम की शुरुआत त्रिदेव मंदिर सेवक परिवार के भजनों से हुई। सबसे पहले 'गाइये गणपति जग वंदन' से भजन की शुरुआत हुई, फिर सामूहिक हनुमान चालीसा का पाठ किया गया। इसके बाद 'दरबार तेरा मइया जन्नत का नजारा है' और 'आएंगी शेरोवाली माँ दिल से पुकार कर देखो' जैसे भजनों ने मंदिर प्रांगण को भक्तिमय बना दिया। इस मंडली में अनूप सराफ, राधेगोविन्द केजरीवाल मुख्य गायक रहे, जबकि पंकज राय (तबला), पप्पू (पैड), रंजन (कीबोर्ड) और मनीष तिवारी (ढोलक) ने संगत की।
इसके बाद, दिल्ली से आईं भजन गायिका रागिनी सोपोरी ने पंजाबी और कश्मीरी शैली में भजन प्रस्तुत किए, जिससे वहां मौजूद हर भक्त झूमने लगा। उन्होंने 'जय माँ दुर्गा अष्ट भवानी' और कबीर के साखी-शबद से मंदिर को गुंजायमान किया। उनकी संगत में तबला पर आनंद मिश्रा, ढोलक पर चंचल सिंह नामधारी, संवादिनी पर मोहित साहनी, बाँसुरी पर सुधीर गौतम और साइड रिदम पर संजय रहे।
तीसरी प्रस्तुति काशी के भजन गायक अमलेश शुक्ला 'अमन' की रही। उन्होंने 'दुर्गा मैया का सजा दरबार' और 'माँ के दरबार नगाड़ा बजा' जैसे भजनों की मधुर प्रस्तुति दी। उनके साथ आस्था शुक्ला ने सहगायन करते हुए 'लाल चूड़ियां चढ़ाऊँ' और पचरा गीत 'लाले रंग मंदिर पर है' से समापन किया। उनके साथ आर्गन पर रंजन दादा, तबले पर सुधांशु, ढोलक पर भोलागुरु, और पैड पर विवेक की संगत रही। समारोह के दौरान कलाकारों का सम्मान महंत राजनाथ दुबे और विकास दुबे द्वारा किया गया। आयोजन की व्यवस्था में चंदन दुबे और किशन दुबे प्रमुख रहे।
माँ कूष्माण्डा का पंचमेवा श्रृंगार
श्रृंगार महोत्सव के पांचवें दिन माँ कूष्माण्डा को पंचमेवा श्रृंगार से सजाया गया। माँ को विशेष बनारसी साड़ी पहनाई गई और एडी व माणिक रत्नों से जड़ित हार से अलंकृत किया गया। जलबेरा, जूही और गुलाब के मालाओं से माँ का श्रृंगार कर, पंचमेवा की माला से उन्हें विशेष रूप से सजाया गया। इस अवसर पर माँ के मंडप को हरे पान के पत्तों से सजाया गया। माँ को पांच कुंतल हलवा, बूंदिया और खीर का भोग अर्पित किया गया, जिसे भक्तों में वितरित भी किया गया। पंडित संजय दुबे ने माँ का पंचामृत स्नान और फलोदक स्नान कराया, जबकि आरती चंचल दुबे ने उतारी।