काशी में स्वयंभू माने जाते हैं ओंकारेश्वर महादेव, कभी यहां था तारक कुंड, दर्शन से मिलता है यज्ञ के बराबर का फल
इस मंदिर की सबसे बड़ी ख़ास बात यह है कि यह मंदिर एक टीले पर स्थित है। जहां पर पहुंचने के लिए नीचे से ऊपर तक पक्की सीढ़ियां बनायी गई है। पहले सीढ़िया नहीं थीं। वैसे तो यहां हर दिन दर्शन-पूजन होता है लेकिन सावन मास में इनका महत्व और भी बढ़ जाता है।
ओंकारेश्वर के हैं तीन स्वरूप
ओंकारेश्वर के तीन स्वरूप हैं। इनमें प्रथम अकार, द्वितीय ऊंकार व तृतीय -मकार है। ये तीनों स्वरूप यहां पर विराजमान हैं। नाद और बिंदू लुप्त हैं। नाद का अर्थ है श्वांस व बिंदू हैं प्राणी में पांचों मिल कर ओंकार की रचना है। कभी यहां पर तारक कुंड हुआ करता था जहां पर अब कालोनी बन गई है। इस मंदिर के सामने मकारेश्वर महादेव का मंदिर है।
ओंकारेश्वर महादेव मंदिर में वैसे तो अक्सर ही शृंगार होता है लेकिन सावन मास में बाबा का विशेष शृंगार किया जाता है। कोयला बाजार स्थित ओंकारेश्वर महादेव स्वयंभू शिवलिंग माने जाते हैं। मान्यता है कि यहां के दर्शन पूजन से एक लाख रुद्र जप करने का फल मिलता है। इस बात को स्वयं भगवान शिव ने कहा है कि जो ओंकारेश्वर के उपासक हैं, उनको कदापि मनुष्य नहीं समझना चाहिअ। वह मोक्षगामी जीव युक्त साक्षात रूद्र हैं। भगवान शिव सहस्त्र युग तक तपस्या करने वाले ब्रह्म पर प्रसन्न होकर ओंकार रुप में स्वयंभू प्रगट हुए और उन्हें वर प्रदान कर इसी महालिंग में लीन हो गये।
ओंकारेश्वर के महात्म्य से हैं अनभिज्ञ
ओंकारेश्वर के महात्म्य से बहुत लोग अनभिज्ञ हैं। पुराणों में उल्लेखित हैं कि ब्रह्माण्ड में जितने भी तीर्थ हैं वे सभी वैशाख की शुक्ल चतुर्दशी को ओंकारेश्वर के दर्शन को काशी आते हैं। ओंकारेश्वर के असंख्य सेवक इसी पार्थिव शरीर में दिव्य रुप से होकर परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। समस्त ब्रह्माण्ड में अविमुक्त क्षेत्र सबसे प्रधान है। उसके मत्स्योदरी के तीर पर स्थित ओंकारेश्वर का स्थान और भी श्रेष्ठ है। काशी खण्ड में स्पष्ट वर्णित है कि मत्स्योदरी तीर्थ में स्नान करने से ओंकारेश्वर का दर्शन करने वाले को पुर्नजन्म की यातना नहीं भुगतनी पड़ती है।