विकास की दरकार : बनारस में यहां के लोग आज भी लकड़ी के पुल से करते हैं आवागमन

वरुणा नदी किनारे बसे करीब आठ गांव आज भी सड़क और पुल की सुविधा से महरूम हैं। यह क्षेत्र कैंट रेलवे स्टेशन से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन यहां की लगभग 25,000 से 30,000 की आबादी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर है। नदी पार करने के लिए कोई पुल नहीं होने के कारण ग्रामीणों को रोजमर्रा के कामों के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। ग्रामीण हर साल चंदा लगाकर 4 लाख इकट्ठा करते हैं और लकड़ी का पुल बनवाते हैं। 
 

- ग्रामीण हर साल चंदा लगाकर बनवाते हैं वरूणा पर लकड़ी का पुल
- बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं 30 हजार आबादी
- कई बार गुहार के बावजूद नहीं हुई कोई पहल, खुद चंदा लगाकर बनवाते हैं पुल  

 

वाराणसी। वरुणा नदी किनारे बसे फुलवरियां समेत करीब आठ गांव आज भी सड़क और पुल की सुविधा से महरूम हैं। यह क्षेत्र कैंट रेलवे स्टेशन से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन यहां की लगभग 25,000 से 30,000 की आबादी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर है। नदी पार करने के लिए कोई पुल नहीं होने के कारण ग्रामीणों को रोजमर्रा के कामों के लिए लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। ग्रामीण हर साल चंदा लगाकर पैसा इकट्ठा करते हैं और लकड़ी का पुल बनवाते हैं। 
 

सरकार ने एक पुल का निर्माण तो करवाया है, लेकिन वह गांव से आठ किलोमीटर दूर स्थित है। इससे ग्रामीणों की समस्या सुलझने के बजाय और बढ़ गई है। दर्जनों बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने और आवेदन देने के बावजूद ग्रामीणों को केवल आश्वासन ही मिला है। जब सरकारी प्रयास विफल हो गए, तो अब ग्रामीण खुद चंदा इकट्ठा करके श्रमदान से लकड़ी का पुल बना रहे हैं।

स्कूल और इलाज के लिए लंबा सफर
गांव की अनुराधा, जो एक छात्रा हैं, बताती हैं कि पुल न होने के कारण उनकी पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है। अनुराधा कहती हैं, "हमने कई बार जनप्रतिनिधियों से मांग की कि हमें कम से कम एक पीपा पुल ही बना दिया जाए। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। स्कूल जाना बेहद मुश्किल है, और कई लड़कियां अब स्कूल छोड़ चुकी हैं।"

गांव की महिलाओं का कहना है कि पुल की कमी के कारण इलाज, रोजी-रोटी और अन्य जरूरतों के लिए भी उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एक महिला ने कहा, "10 मिनट का रास्ता हमें डेढ़ घंटे में तय करना पड़ता है। हमारी बच्चियां स्कूल नहीं जा पातीं, और इलाज के लिए महिलाओं को नदी पार करने में दिक्कत होती है। गरीबी में यह समस्या हमारी मुश्किलें और बढ़ा देती है।"

चंदा और श्रमदान से बना रहे पुल
गांव के युवकों ने बताया कि हर साल चंदा इकट्ठा करके लकड़ी का पुल तैयार किया जाता है, जिस पर करीब चार लाख रुपये का खर्च आता है। यह पुल तीन-चार महीने तक चलता है, लेकिन बारिश और नदी में पानी बढ़ने पर यह टूट जाता है। एक युवक ने कहा, "हम पढ़ाई करने वाले छात्र हैं। अगर यहां पक्का पुल बन जाए, तो हमें और हमारे गांव के लोगों को इतनी दिक्कतें नहीं उठानी पड़ेंगी।" ग्रामीणों ने सरकार से अपील की है कि उनकी समस्या का समाधान जल्द किया जाए, ताकि महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सुरक्षित और आसानी से आ-जा सकें।

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