Nag Panchami 2025 : रहस्यों से भरा है काशी का नागकूप, कूप के अंदर हैं सात कुंड, नागलोक जाने का यही है मार्ग

काशी के जैतपुरा क्षेत्र में स्थित रहस्यमयी नागकूप मंदिर नागपंचमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना रहा। इस अवसर पर देशभर से आए भक्तों की भीड़ ने नागलोक से जुड़े इस ऐतिहासिक स्थल पर दर्शन-पूजन कर पुण्य अर्जित किया। मान्यता है कि यह नागकूप लगभग हजारों साल पुराना है, जिसमें सात कुएं हैं जो सीधे पाताल लोक से जुड़े हैं।
 

- नाग पंचमी पर नाग कूप के दर्शन-पूजन को उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़
 

- हजारों साल पुराने नागकूप में दर्शन-पूजन से दूर होता है कुंडली का काल सर्प दोष
 

- महर्षि याज्ञवल्क्य की रही है तपोस्थली, यहीं हुई योग सूत्र की रचना
 
वाराणसी।
काशी के जैतपुरा क्षेत्र में स्थित रहस्यमयी नागकूप मंदिर नागपंचमी के अवसर पर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र बना रहा। इस अवसर पर देशभर से आए भक्तों की भीड़ ने नागलोक से जुड़े इस ऐतिहासिक स्थल पर दर्शन-पूजन कर पुण्य अर्जित किया। मान्यता है कि यह नागकूप लगभग हजारों साल पुराना है, जिसमें सात कुएं हैं जो सीधे पाताल लोक से जुड़े हैं।

महर्षि पतंजलि की तपोभूमि माने जाने वाले इस तीर्थ पर नागपंचमी की सुबह मंगला आरती के बाद से ही मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए। मंदिर के महंत राजीव पांडेय के अनुसार, यह स्थान सर्पदंश से मुक्ति और कालसर्प दोष के निवारण के लिए विश्व के तीन प्रमुख स्थलों में से एक है। यहां नागेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थित है, जहां श्रद्धालु दूध, लावा और तुलसी की माला अर्पित कर नाग देवता को प्रसन्न करते हैं।

श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस कूप के दर्शन मात्र से जीवन में आने वाले सर्प दोष, सर्पदंश के भय और नकारात्मक स्वप्नों से मुक्ति मिलती है। यहां के जल को घर में छिड़कने से भी सर्प दोष दूर होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा परीक्षित के सर्पदंश से मृत्यु के बाद उनके पुत्र जन्मेजय द्वारा सभी नागों को नष्ट करने के लिए एक यज्ञ कराया गया था। नागराज कार्कोटक इस संकट से बचने के लिए इंद्र के शरण में गए और शिव की कठोर तपस्या कर वरदान प्राप्त किया। शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने तेज में समाहित कर नागकूप के रास्ते पाताल लोक भेज दिया।

मंदिर के पुजारी शास्त्री कुंदन पांडेय के अनुसार, कूप के भीतर लगभग 80 फीट नीचे नागेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है, जिसे महर्षि पतंजलि ने अपने तपोबल से प्रकट किया था। स्कंद पुराण के अनुसार, यह स्थान "कार्कोटक वापी" के नाम से वर्णित है। इतिहास और धर्म से जुड़ा यह स्थल सतयुग की घटनाओं से भी जुड़ा है। कहा जाता है कि राजा हरिश्चंद्र के पुत्र को इसी स्थान पर सर्प ने काटा था। नागकूप के संदर्भ में अनेक ग्रंथों, विशेषकर स्कंद पुराण और काशी खंड में विस्तृत उल्लेख मिलता है।

                                                                                                                                              
आज भी यह स्थान कालसर्प दोष की शांति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जहां तुलसी की माला, दूध और लावा अर्पित कर विशेष पूजा की जाती है। नासिक, उज्जैन और काशी में स्थित तीन प्रमुख स्थलों में से यह नागकूप सर्वोपरि माना गया है।


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