पद्मनाभ मंदिर की तर्ज पर काशी में भोगसेन के रूप में स्थापित हैं भगवान विष्णु, स्कंदपुराण में मिलता है जिक्र

 
-    देवशयनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु के मंदिर का कपाट हो जाता है बंद 

-    सभी मांगलिक कार्यों पर लग जाती है रोक

वाराणसी। मंदिरों का शहर कहे जाने वाले काशी में एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में जानकर आपको काशी की प्राचीनता की जानकारी होगी। यह मंदिर काशी के पुराने मोहल्लों में शुमार अस्सी क्षेत्र में है। यह मंदिर भोगसेन भगवान (विष्णु मंदिर) का है। भोगसेन भगवान की मूर्ति देखने में बिल्कुल त्रिवेंद्रम के पद्मनाभ मूर्ति की तरह लगती है। 

वाराणसी में दक्षिण भारत की शैली में बना हुआ यह मंदिर आपको अपनी ओर आकर्षित करेगा। महादेव की नगरी काशी में उनके आराध्य भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्ति बेहद ही खूबसूरत कही जाती है। मूर्ति का वजन 21 टन है। इस मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी मिलता है। काशीवासियों के साथ ही दक्षिण भारत से भी लोग इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर की बनावट बिल्कुल दक्षिण भारत के मंदिर से मिलता-जुलती है। मंदिर की दीवारों पर दक्षिण भारत के मंदिरों की तरह शंख व चक्र बनाए गए हैं।

देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु 4 माह चले जाएंगे चिर निद्रा में

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु का शयनकाल प्रारंभ होता है। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि से चार माह के लिए विष्णु जी विश्राम करते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। 

इस एकादशी के बाद 22 जुलाई से शिव जी का प्रिय महीना सावन शुरू हो रहा है। अस्सी घाट के तीर्थ पुरोहित बलराम मिश्रा के अनुसार, जब विष्णु जी विश्राम करते हैं, तब शिव जी इस सृष्टि का संचालन करते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद सावन महीना शुरू होता है। इस पूरे महीने में शिव जी के लिए विशेष पूजा-पाठ की जाती है। इन दिनों में शिव जी के 12 ज्योतिर्लिंगों में दर्शन करने की परंपरा है।