काशी की गलियों में निकलेंगे भगवान जगन्नाथ, काशीराज परिवार के सदस्य खीचेंगे चांदी के ध्वज वाला रथ 

स्वस्थ होने के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन के लिए श्रीयंत्राकार रथ पर सवार होकर कल काशी की गलियों में निकलेंगे। काशीराज परिवार के सदस्य प्रभु का रथ खीचेंगे। छह जुलाई को भगवान जगन्नाथ दर्शन देने के लिए निकलेंगे। वहीं सात जुलाई से तीन दिवसीय रथयात्रा मेला शुरू होगा। 
 

वाराणसी। स्वस्थ होने के बाद भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन के लिए श्रीयंत्राकार रथ पर सवार होकर कल काशी की गलियों में निकलेंगे। काशीराज परिवार के सदस्य प्रभु का रथ खीचेंगे। छह जुलाई को भगवान जगन्नाथ दर्शन देने के लिए निकलेंगे। वहीं सात जुलाई से तीन दिवसीय रथयात्रा मेला शुरू होगा। 

भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का रथ शीशम की लकड़ी से श्रीयंत्र के आकार का बना हुआ है। रथ की चौड़ाई 21 फीट और ऊंचाई 18 फीट है। प्रथम तल पर चारों तरफ पहियों के ऊपर 14 खंभे और द्वितीय तल पर अष्टकोणीय गर्भगृह में छह खंभे लगे हैं। सामने लाल रंग के दो आधे खंभे हैं जो बाहर से तीन तरफ से आच्छादित हैं। रथ की छतरी अष्टकोणीय कमानीदार है। कुल मिलाकर रथ का स्वरूप काफी भव्य है। 

रथ के शिखर पर चांदी का ध्वज और चक्र लगाया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होते हैं तब चांदी के डंडे से चांदी का ध्वज लगाया जाता है। इसमें दोनों और हनुमान जी विराजमान रहते हैं। त्रिकोणीय ध्वज की ऊंचाई पांच फीट और लंबाई डंडे से नोक तक तीन फीट है। अष्टकोणीय गर्भगृह के मुख्य द्वार के ऊपर सामने रजत पत्र पर केंद्र में श्रीगणेश जी एंव ऋद्धि-सिद्धि विराजमना हैं। 

1802 ईस्वी में निर्मित इस रथ में लोहे के 14 पहिए लगाए गए हैं। हर पहिए में 12 तीलियां हैं। आगे के दो पहियों के जरिये रथ को घुमाने के लिए स्टीयरिंग लगाई गई है। रथ के अग्रभाग के केंद्र में सारथी विराजमान होते हैं, जो कांस्य धातु के हैं। इस पर चांदी के पानी की पालीश है। रथ के आगे दो कांस्य के अश्व लगाए जाते हैं। इनके ऊपर चांदी के पानी की पालिश होती है।