काशी में 1790 में विराजे थे नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ, 14 दिनों तक प्रसाद में बंटता है काढ़ा, ग्रहण करने वाला वर्ष भर रहता है रोगमुक्त

 

वाराणसी। काशी के केदारखंड के अस्सी मोहल्ले में भगवान जगन्नाथ का प्राचीन मंदिर है। जहां अब मंदिर का कपाट आम भक्तों के दर्शन पूजन के लिए बंद हो गया है। भक्तों के प्रेम में भगवान इतना नहाए कि वह बीमार पड़ गए। गुरुवार शाम 4 बजे मंदिर के पुजारी द्वारा भगवान को काढ़ा दिया गया। खास बात यह है कि अब 14 दिन भगवान जगन्नाथ को काढ़े का भोग लगाया जाता है और काढ़े को भक्तों में प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाता है। गुरुवार को चौथे दिन भी भगवान को काढ़े का भोग लगाया गया। 

भगवान के इस खास प्रसाद को लेकर मान्यता ये है कि जो भी भक्त काढ़े के इस प्रसाद को ग्रहण करता है, वह पूरे साल रोगों से दूर रहता हैं। मंदिर के पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि प्राचीन परंपरा के अनुसार हर वर्ष ज्येष्ठ मास की जेष्ठ पूर्णिमा से रथदोज तक भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार हो जाते हैं। इस दौरान वह न तो किसी भक्त को दर्शन देते हैं और न ही विशेष पूजा पाठ की जाती है। भगवान जगन्नाथ स्वामी को रविवार की सुबह से तेज ज्वर होने से वह शयन में लीन हो गए हैं। अब भगवान को 14 दिनों आराम करेंगे। उन्हे हल्का भोजन दिया जाएगा। जिसमें मूंग की दाल, दलिया, खिचड़ी का भोग लगाया जाएगा। इसके साथ ही दवा के रूप में जड़ी-बूटी और काढ़ा बनाकर दिया जाएगा। 

मंदिर के पुजारी राधेश्याम पांडेय ने बताया कि भगवान के काढ़े को लेने के लिए शाम को भक्तों की भीड़ प्रतिदिन मंदिर पहुंचती हैं। इस काढ़े को काली मिर्च, लौंग, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, कच्ची चीनी, जायफल, तुलसी, गुलाब जल, मुलेटी और अदरक को उबाल कर तैयार किया जाता है। भगवान जगन्नाथ को शाम 4 बजे मंदिर के पुजारी द्वारा काढ़े का भोग लगाया गया और पुनः कपाट बंद कर दिया गया। इस चमत्कारी काढ़े को प्रसाद स्वरूप लेने के लिए लोग मंदिर पहुंच रहे हैं। 

पुजारी ने बताया कि 4 से 6 बजे तक प्रतिदिन यह काढ़ा भोग लगाने के बाद भक्तों को वितरित किया जाता है। काढ़े को लेने मंदिर पहुंची सुमन ने बताया कि यह भगवान को दिया जाता है जिससे भगवान ठीक हो जाते हैं तो इसके सेवन से हम अवश्य ठीक हो जायेंगे यही विश्वास है कि हम इसे 30 वर्षों से यहां लेने आते हैं। उन्होंने बताया कि इससे बुखार, खांसी में सेवन करने से काफी लाभ मिलता है। 

पुरी के तर्ज पर होती है भगवान जगन्नाथ की पूजा

वाराणसी में जगन्नाथ मंदिर की स्थापना वर्ष 1790 में जगन्नाथ पुरी धाम के मुख्य पुजारी पं. नित्यानंद पुजारी ने गंगा के किनारे अस्सी घाट पर की थी। पुरी मंदिर जैसी ही वास्तुकला को अपनाया गया और गर्भगृह के अंदर भगवान जगन्नाथ भाई-बहनों के साथ लकड़ी की मूर्तियां रखी गईं। तब से रथयात्रा का त्योहार पुरी के समान ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। पुजारी ने बताया कि 15 दिन के बाद 5 जुलाई को भगवान स्वस्थ्य होकर भक्तों को दर्शन देंगे। 6 जुलाई की शाम को भव्य रूप पालकी निकलेगी। यह पालकी क्षेत्र का भ्रमण करते हुए रथयात्रा चौराहे पहुंचेगी। यहां 7 जुलाई से 9 जुलाई तक भव्य मेले का आयोजन होगा। भगवान सभी भक्तों को दर्शन देंगे। अब 10 जुलाई को भोर में भगवान को मंदिर में स्थापित कर दिया जाएगा।