Loksabha Election 2024: राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया बना ‘वरदान’, मोबाइल कंपनियों की चांदी, बूथ स्तर पर टीमें बनाकर देंगे ‘शह’ और ‘मात’
एक दौर था जब चुनाव की घोषणा होते ही बैनर, पोस्टर से शहर पट जाते थे, लेकिन अब वह गुजरे ज़माने की बात हो गई, अब बैनर पोस्टर के बजाय लोग ‘डिजिटल’ हो गये हैं। अब चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार अब डिजिटल प्रचार करने में जुटे हुए हैं। निर्वाचन आयोग की बंदिशों के चलते ‘डिजिटल दंगल’ पर एक से बढ़कर एक दांव चले जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव की अधिकतर लड़ाई वर्चुअल मंच पर लड़ी जा रही है।
छ: चरण के मतदान के बाद तो सभी दलों ने रैलियों और सभाओं के बीच वर्चुअल बिसात पर प्रतिद्वंद्वी को मात देने के लिए अपने मोहरे बिछाने शुरू कर दिए हैं। जी हां, निर्वाचन आयोग की बंदिशों के चलते सोशल मीडिया पर खूब धमाल दिख रहा है। भाजपा का जहां ‘वार पर वार’ कर रही है तो वहीं इंडिया गठबंधन भी मजबूती से जवाब दे रही है। इसके चलते कार्यकर्ताओं के ही नहीं गैरों के भी स्मार्ट फोन पर खूब नेट डाटा भरे जा रहे हैं। सोशल मीडिया के प्रोग्रामों से इंटरनेट डेटा की मांग में कई गुना का इजाफा हुआ है। इससे तमाम दूरसंचार कंपनियों की भी चांदी कट रही है।
राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि भाजपा सोशल मीडिया पर मजबूती से सक्रिय है और कांग्रेस, सपा, बसपा समेत अन्य दल भी सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति को और मजबूत कर चुके हैं। भाजपा तो सोशल मीडिया के इस्तेमाल के मामले में बाकी दलों से काफी आगे हैं। पार्टी ने व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम समेत तमाम सोशल मीडिया माध्यमों के जरिए मतदाताओं को पार्टी के कार्यक्रमों से जोड़ने के लिए बूथ स्तर तक के पदाधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारी दी है। पार्टी हर संदेश और प्रसारण पर दी जाने वाली प्रतिक्रिया पर ध्यान केंद्रित करके अपनी रणनीति में बराबर जरूरी सुधार भी कर रही है।
‘डिजिटल मंच’ से मतदाताओं तक पहुंच रही बात
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और सपा भी चुनाव की इस वर्चुअल लड़ाई में विरोधियों को मात देने के लिए हाड़तोड़ मेहनत कर रही है। वैसे डिजिटल मंच से ग्रामीण उपभोक्ताओं तक अपनी बात पहुंचाना अब भी मुश्किल काम है, लेकिन पार्टी बदले हुए परिदृश्य में इसका रास्ता तलाश रही है। डिजिटल युग में सभी दलों का सबसे ज्यादा रुझान युवा मतदाताओं की ओर है। क्योंकि ग्रामीण इलाकों में भी ज्यादातर नौजवानों के पास स्मार्टफोन मौजूद है। हर दल प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में हजारों व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर युवाओं को उनसे जोड़ चुकी है। स्मार्टफोन इस्तेमाल नहीं करने वाले मतदाताओं तक, पहले से रिकॉर्ड किए हुए संदेश पहुंचाने का सिलसिला तेज हो गया है।
सोशल मीडिया के जरिए हर एक व्यक्ति तक पहुंच रहे उम्मीदवार
राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि चुनाव आयोग की बंदिश के बावजूद राजनीतिक दलों के यह सोशल मीडिया एक ‘वरदान’ साबित हो रहा है। वजह, हरेक लोगों के पास पहुंचने का जहां यह सशक्त माध्यम है, वहीं व्यक्तिगत रूप से भी पहुंच बन जा रही है। अपनी बात को भी आसानी से लोगों तक पहुंचाया जा रहा है। एक पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहना है कि पिछले दिनों हुई रैलियों में यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर क्रमश: डेढ़ लाख से पौने तीन लाख लोग जुड़े। पार्टियों का कहना है कि वर्चुअल चुनावी जंग अब लाभप्रद साबित हो रही है। हर दल प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों को सोशल मीडिया के जरिए जनता के बीच रखने की हरसंभव कोशिश कर रहा है और कामयाब भी है। वर्चुअल माध्यम से चुनाव प्रचार में काफी मदद भी जो मिल रही है।
बढ़ गई डाटा की खपत
राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर चुनावी जंग के चलते मोबाइल कंपनियों की चांदी हो गई है। वजह, प्रचार के लिए सभी दल इंटरनेट मीडिया का सहारा जो ले रहे हैं। इससे अचानक से डेटा की खपत भी बढ़ गई है। विभिन्न टेलीकाम कंपनियों की डेटा खपत का आंकड़ा भी काफी बढ़ गया है। लगता है कि वर्चुअल प्रचार उनके लिए अच्छे मौके लेकर आया है। हालात यह है कि टेलीकाम कंपनियों को अलग-अलग शहरों में अलग-अलग समय पर स्पेक्ट्रम की बैंडविथ बढ़ानी पड़ रही है, ताकि नेटवर्क में जाम की स्थिति न हो। प्रचार के लिए विभिन्न दलों में इंटरनेट मीडिया का सहारा लेने की होड़ मची है तो डेटा की खपत स्वाभाविक रूप से आसमान छूने ही लगी है। प्रचार में तमाम तरह के प्रतिबंधों के कारण इंटरनेट मीडिया पर लोड बढ़ गया हैं।
राजनैतिक दलों के आइटी सेल सक्रिय
राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि पार्टियां अपनी रीति-नीति इसी के जरिये लोगों तक पहुंचा रही हैं। राजनैतिक दलों के आइटी सेल सक्रिय हो गये हैं। लोग वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर सहित अन्य इंटरनेट मीडिया पर अपने राजनैतिक दल के विषय में बता रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे आचार संहिता का पालन भी हो जा रहा है। ऐसे में मोबाइल कंपनियों के इंटरनेट डेटा की खपत बढ़ गई है। हरेक मतदाता से अपनी पहुंच बनाने के लिए हरेक दल गांव, मोहल्ले ही नहीं, गली-गली के नेताओं-पदाधिकारियों के स्मार्ट फोन में इंटरनेट डेटा भरवा रहे हैं। इससे स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वाले भी बेहद खुश है, क्योंकि इस चुनावी दंगल में नेट भरवाने का पैसा जो बच जा रहा है।