काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर: संत रविदास जन्मस्थली के मुख्य द्वार भी हुआ स्वर्णमंडित, आस्था की अनूठी मिसाल 

अध्यात्म और संत परंपरा की नगरी काशी को साधु-संतों और महात्माओं की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। इसी पावन धरती पर जन्मे महान संत शिरोमणि रविदास का नाम भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में शामिल है। वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर स्थित संत रविदास मंदिर न केवल उनकी जन्मस्थली है, बल्कि आज यह देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र भी बन चुका है। भक्तों की अटूट श्रद्धा और दान के कारण यह मंदिर “काशी के दूसरे स्वर्ण मंदिर” के रूप में विख्यात हो गया है।
 

रिपोर्ट : ओमकार नाथ

वाराणसी। अध्यात्म और संत परंपरा की नगरी काशी को साधु-संतों और महात्माओं की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है। इसी पावन धरती पर जन्मे महान संत शिरोमणि रविदास का नाम भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभों में शामिल है। वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर स्थित संत रविदास मंदिर न केवल उनकी जन्मस्थली है, बल्कि आज यह देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र भी बन चुका है। भक्तों की अटूट श्रद्धा और दान के कारण यह मंदिर “काशी के दूसरे स्वर्ण मंदिर” के रूप में विख्यात हो गया है।

संत रविदास मंदिर की पहचान उसकी भव्यता और स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित संरचना के कारण दूर-दूर तक है। मंदिर का शिखर पहले से ही सोने से मंडित है, जो दूर से ही भक्तों को आकर्षित करता है। अब मंदिर की भव्यता में एक और अध्याय जुड़ गया है। हाल ही में मंदिर के मुख्य द्वार और चौखट को भी स्वर्णमंडित कर दिया गया है, जिससे इसकी सुंदरता और दिव्यता और बढ़ गई है। स्वर्ण द्वार की एक झलक पाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंच रहे हैं।

मंदिर प्रबंधन के अनुसार, मुख्य द्वार को स्वर्णमंडित कराने का कार्य संत निरंजन दास महाराज के मार्गदर्शन में कराया गया है। रविदास मंदिर के ट्रस्टी निरंजन दास चीमा ने बताया कि इस स्वर्ण द्वार को तैयार करने और स्थापित करने में लगभग ढाई महीने का समय लगा। इसे आंध्र प्रदेश के कुशल कारीगरों द्वारा विशेष तकनीक से तैयार किया गया है। हालांकि, इस द्वार में कुल कितना सोना प्रयोग हुआ है, इसकी आधिकारिक जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।

 रविदास मंदिर के ट्रस्टी निरंतर दास चीमा ने बताया कि संत रविदास मंदिर में पहले से ही बड़ी मात्रा में स्वर्ण संपत्ति मौजूद है। मंदिर में दान स्वरूप प्राप्त 130 किलोग्राम वजनी सोने की पालकी है, जिसमें संत रविदास की प्रतिमा को विशेष अवसरों पर विराजमान कराया जाता है। इसके अलावा लगभग 35 किलोग्राम की सोने की छतरी, 3.5 किलोग्राम का विशाल सोने का दीपक और 32 स्वर्ण कलश मंदिर की शोभा बढ़ा रहे हैं। मंदिर के शिखर, पालकी, छत्र, दीपक और अब मुख्य द्वार पर जड़ा सोना इसे एक भव्य स्वरूप प्रदान करता है।

आंकड़ों के अनुसार, सीर गोवर्धनपुर स्थित संत रविदास मंदिर में कुल स्वर्ण संपत्ति लगभग 200 से 300 किलोग्राम के बीच आंकी जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद यह वाराणसी का दूसरा ऐसा धार्मिक स्थल है, जहां सबसे अधिक मात्रा में सोना स्थापित है। यही कारण है कि श्रद्धालु इसे “काशी का दूसरा गोल्डन टेंपल” भी कहते हैं।

इस स्वर्ण संपदा का सबसे बड़ा स्रोत भक्तों का दान है। पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड समेत देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले श्रद्धालु वर्षों से यहां सोना दान करते आ रहे हैं। इसके साथ ही विदेशों में बसे एनआरआई भक्त, विशेष रूप से कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका से आने वाले रैदासी समाज के लोग भी बड़ी श्रद्धा के साथ दान देते हैं। यह दान संत रविदास के प्रति उनकी गहरी आस्था और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।

हर वर्ष संत रविदास जयंती के अवसर पर मंदिर में 15 दिवसीय भव्य जन्म उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु गोवर्धनपुर पहुंचते हैं। भजन-कीर्तन, शोभायात्रा और धार्मिक अनुष्ठानों के साथ पूरा क्षेत्र भक्तिमय माहौल में डूब जाता है। मंदिर की स्वर्ण आभा और आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं को विशेष अनुभव प्रदान करता है।

संत रविदास का संदेश सामाजिक समरसता, समानता और मानवता पर आधारित रहा है। उन्होंने जाति-पाति और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाई और प्रेम व करुणा का मार्ग दिखाया। आज उनकी जन्मस्थली पर स्थापित यह भव्य स्वर्ण मंदिर उसी श्रद्धा, सम्मान और विश्वास का प्रतीक है, जो उनके अनुयायी सदियों से अपने हृदय में संजोए हुए हैं। 

कहा जाए तो, संत रविदास मंदिर में लगा यह सोना केवल धातु नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की आस्था, विश्वास और समर्पण का प्रतीक है। मुख्य द्वार के स्वर्णमंडित होने के साथ ही मंदिर की भव्यता एक नई ऊंचाई पर पहुंच गई है और काशी की धार्मिक पहचान में यह स्थल और भी अधिक गौरवशाली बन गया है।