काशी तमिल संगमम 4.0 : सांस्कृतिक संध्या में बही भक्ति की अविरल धारा, डॉ. मधुमिता भट्टाचार्या के भजन सुन भावविभोर हुए श्रोता
वाराणसी। काशी की सांस्कृतिक परंपरा उस समय और अधिक दिव्य स्वरूप में प्रकट हुई, जब काशी की एक विशेष सांगीतिक संध्या में बीएचयू की प्रतिष्ठित विदुषी डॉ. मधुमिता भट्टाचार्या ने अपनी भावपूर्ण भजन प्रस्तुति से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। उनके स्वर से निकला भजन “कैसा जादू डाला निर्मोहीनी पिया” श्रोताओं के मन और आत्मा तक सीधे पहुंच गया।
डॉ. मधुमिता भट्टाचार्या की प्रस्तुति में स्वर की सादगी, राग की शुद्धता और भावों की गहराई का अद्भुत संगम देखने को मिला। प्रत्येक पंक्ति में भक्ति, प्रेम और समर्पण का ऐसा भाव झलक रहा था, जिसने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। उनकी आवाज़ की स्थिरता और सूक्ष्म अलंकारों ने भजन को केवल सुनने योग्य नहीं, बल्कि अनुभूत करने योग्य बना दिया।
इस भावपूर्ण प्रस्तुति को और अधिक प्रभावशाली बनाया ज्ञान स्वरूप मुखर्जी के सधे हुए तबला वादन ने। उनकी लयात्मक संगति ने भजन की गति को संतुलित रखते हुए भावों को गहराई प्रदान की। वहीं हर्षित पाल ने हारमोनियम पर मधुर और संयमित संगत कर पूरी प्रस्तुति को पूर्णता के साथ सजाया। तीनों कलाकारों की सुसंगत प्रस्तुति ने भक्ति संगीत का ऐसा सुंदर समन्वय रचा, जिसने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
भजन के दौरान सभागार में एक अलौकिक शांति का अनुभव हुआ। दर्शकगण पूरी तन्मयता से प्रस्तुति में डूबे रहे और समाप्ति के बाद देर तक गूंजती तालियों से कलाकारों का अभिनंदन किया। यह प्रस्तुति केवल एक संगीत कार्यक्रम नहीं रही, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक अनुभूति बन गई। काशी की इस सांस्कृतिक संध्या ने यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति और संगीत का संगम आज भी आत्मा को छू लेने की क्षमता रखता है। डॉ. मधुमिता भट्टाचार्या की यह प्रस्तुति श्रोताओं के स्मृति पटल पर लंबे समय तक अंकित रहने वाली रही।