काशी का कण-कण शंकर, बनारस के प्रसिद्ध मंदिर, जिनमें वास करते हैं स्वयं महादेव, वेद व पुराण भी करते हैं बखान

 
वाराणसी। काशी के कण-कण में महादेव बसे हैं। यहां का कण-कण शंकर है। काशी के गलियों, मकानों और दुकानों के अंदर भी महादेव के छोटे से छोटे से मंदिर  मिल जाएंगे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Shri Kashi Vishwanath Temple) के निर्माण के समय मौर्यकालीन शिवलिंग का मिलना है। वहीँ कुछ ऐसे भी शिवलिंग हैं, जिन्हें माना जाता है कि वे काशी के प्राकट्य के समय से ही मौजूद हैं।

प्राचीन नगरी काशी में कई स्वयंभू, द्वादश शिवलिंग और उनके प्रतिरूप हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास विभाग और पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर अशोक सिंह बताते हैं कि काशीखंड में 524 शिवलिंगों (Shiva Temple) का उल्लेख है, जिसमें से अभी तक केवल 324 शिवलिंग ही मिल सके हैं। शेष का पता अब तक नहीं चल सका है। आज हम उनमें से कुछ काशी के मंदिरों के बारे में जानेंगे:-

काशी विश्वनाथ मंदिर (Shri Kashi Vishwanath Temple)

सन् 1779 में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस मंदिर को द्वादश शिवलिंग (Shiva Temple) के रूप में पूजा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर का नया स्वरुप देखने लायक हो गया है। वर्तमान में यह मंदिर पूरब के ओर से ललिता घाट से भी जुड़ गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 13 दिसंबर 2021 को भव्य काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Shiva Temple) का उद्घाटन किया था।

मृत्युंजय महादेव मंदिर (Mrityunjay Mahadev Temple)

स्वयंभू शिवलिंग के रूप में शिव साक्षात् इस मंदिर (Shiva Temple) में विराजमान हैं। सावन में यहां भक्तों की जबरदस्त भीड़ लगती है। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन करने मात्र से बड़े से बड़ी बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। इस मंदिर के अंदर एक कूप (कुंआ) भी है। आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरी ने मंदिर के प्राकट्य के समय ही इसमें औषधियां डाल दी थी। जिसके बाद इस कूप का पानी पीने से कई बीमारियाँ नष्ट हो जाती हैं। आज भी मंदिर में पानी पीने वालों की लाइन लगी होती है।

नया विश्वनाथ मंदिर (New Vishwanath Temple BHU)

वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ ही इस नए मंदिर (Shiva Temple) की भी नींव रखी गई थी। जीडी बिरला की मदद से महामना मदन मोहन मालवीय ने इसकी स्थापना 1931 में की थी। यह वाराणसी का सबसे ऊंचा शिखर वाला मन्दिर है। जिसकी ऊंचाई 252 फीट है। यह मंदिर पूरी तरह से सफेद संगमरमर से निर्मिंत है।

शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर (Shooltankeshwar Mahadev Temple)

वाराणसी के दक्षिणी सिरे पर स्थित इस मंदिर (Shiva Temple) को काशी का दक्षिणी द्वार कहा जाता है। गंगा यहां पर पूरी तरह से उत्तरवाहिनी हो गईं हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा के अवतरण पर भगवान शिव ने इसी स्थान पर अपना त्रिशूल गाड़कर गंगा को रोकने का वचन लिया कि गंगा काशी से ही प्रवाहित होंगी। वहीं, यहां पर स्नान करने वालों को जलीय जीवों से कोई खतरा नहीं होना चाहिए। गंगा ने दोनों वचन स्वीकार किया जब जाकर शिव ने अपना त्रिशूल वापस खींच लिया। इसी वजह से इस जगह का नाम शूलटंकेश्वर महादेव पड़ गया।

मार्कंडेय महादेव मंदिर (Markandey Mahadev Temple)

वाराणसी में चौबेपुर के पास कैथी स्थित गंगा-गोमती संगम पर स्थित इस मंदिर के बारे कहा जाता है कि यहां से यमराज को भी पराजित होकर लौटना पड़ा था। शैव-वैष्णव मत दोनों को मानने वाले यहां पर आते हैं। यह मंदिर वाराणसी को पूर्वांचल के दूसरे जिलों से जोड़ता भी है।

श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर (Shri Tilbhandeshwar Mahadev Temple Kashi)

काशी का तिल भांडेश्वर मंदिर (Shiva Temple) अत्यंत ही प्राचीन है। इस मंदिर का नाम इसके आकार के वजह से पड़ा है। मान्यता है कि यह मंदिर प्रतिदिन तिल भर बढ़ जाता है। महाशिवरात्रि और सावन के दिनों में यहां पैर रखने तक की जगह नहीं होती। महादेव का यह मंदिर काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में पड़ता है। इस मंदिर का जिक्र शिवपुराण में भी है। स्थानीय निवासी बताते हैं कि पहले इस क्षेत्र में तिल की खेती होती थी। अचानक से मिट्टी के अंदर शिवलिंग मिल गया। लोगों ने सबसे पहले तिल चढ़ाकर पूजा की और तब से यही नाम रखा गया। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि इस मंदिर को मुस्लिम शासकों ने तीन बार तोड़ा था।

रत्नेश्वर महादेव मंदिर (Ratneshwar Mahadev Temple)

मणिकर्णिका घाट के बगल में सिंधिया घाट पर स्थित काशी का यह मंदिर (Shiva Temple) अपने आप में अनोखा है। अपने अक्ष पर 9 डिग्री तक झुका यह मंदिर ज्यादातर समय पानी में डूबा रहता है या तो काफी गाद जमी रहती है। पूरे साल यहां पर एक बार ही पूजा होती है। यह मंदिर कई शताब्दियों से पीसा की मीनार से भी ज्यादा झुका है। बता दें कि इस मंदिर ने कई बार बिजली और भूकम्प जैसे प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा भी की थी।

कृति वाश्वेश्वर मंदिर (Kriti Vasheshwar Temple)

मृत्युंजय महादेव मंदिर मार्ग पर हरतीरथ तालाब के पश्चिम में अवस्थित इस मंदिर में भक्त सावन व महाशिवरात्रि पर अनिवार्य रूप से आते हैं। इस दिन काशी में चतुर्दिक लिंग पूजा का विधान है। इसमें से एक इनका भी नाम है।

कर्दमेश्वर महादेव (Kardmeshwar Mahadev Temple)

यह शिव मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। पंचक्रोशी मार्ग स्थित कंदवा गांव में यह मंदिर स्थित है। मंदिर की स्थापत्य कला अद्भुत लगती है। पंचक्रोशी यात्रा यहां दर्शन के बाद ही आगे की ओर बढ़ते हैं।

मध्यमेश्वर महादेव मंदिर (Madhyameshwar Mahadev Temple)

हिमालय पर स्थित स्वयंभू शिवलिंग मध्यमेश्वर महादेव का एक रूप काशी में है। जिसे काशी के नाभि केंद्र के तौर पर जाना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार मध्यमेश्वर वह केंद्र है जिसके पांच कोश लगभग 17,600 किलोमीटर वृत्त बनता है। वह क्षेत्र काशी है।

मणिकर्णेश्वर महादेव मंदिर (Manikarneshwar Mahadev Temple)

मणिकर्णिका घाट के पास स्थित यह मंदिर शिव के नृत्य और भगवान विष्णु को आशीष देने के रूप में स्थापित है। काशी की तीर्थ यात्राओं में इस शिवलिंग का उल्लेख मिलता है।

व्यासेश्वर महादेव मंदिर (Vyaseshwar Mahadev Temple)

गंगा पार रामनगर किले परिसर में स्थित शिवालय को व्यासेश्वर कहा जाता है। इसकी स्थापना स्वयं वेदों के रचियता वेदव्यास ने की थी। माघ महीने के हर सोमवार को इस शिवलिंग के दर्शन-पूजन किए जाते हैं। कुछ लोग इसे वेद व्यास मंदिर के नाम से भी जानते हैं।

केदारेश्वर महादेव (Kedareshwar Mahadev Temple)

गंगा किनारे केदार घाट के पास स्थित इसे काशी का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। भगवान विष्णु ने यहां पर ध्यान लगाया था। यहीं पर गौर कुंड भी है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से किया था।

ओमकारेश्वर महादेव (Omkareshwar Mahadev Temple)

पठानी टोला, मछोदरी में स्थित इस मंदिर में वैशाख शुक्ल चतुर्दशी की वार्षिक पूजा और श्रृंगार किया जाता है। काशी खंड में इसका नाम नादेश्वर और कपिलेश्वर भी है।

काशी में स्थित अन्य प्रमुख शिव मंदिर (Shiva Temple) :

नेपाल मंदिर पशुपतिनाथ
अप्पा स्तंबेश्वर महादेव
आत्म वीरेश्वर महादेव
धर्मेश्वर महादेव
गभाटेश्वर महादेव
जागेश्वर महादेव
तारकेश्वर महादेव।