इस्कान टेंपल में खास तरीके से मनाई जाएगी जन्माष्टमी, जानिये मंदिर की परंपरा और इतिहास   

दुर्गाकुंड स्थित इस्कान टेंपल में हर वर्ष की भांति इस साल भी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव खास तरीके से मनाया जाएगा। इसके लिए तैयारी चल रही है। जन्माष्टमी का पूरा दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित रहेगा। वहीं भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ का दौर चलता रहेगा। प्रभु के दर्शन को भक्तों की भीड़ उमड़ती है। 
 

वाराणसी। दुर्गाकुंड स्थित इस्कान टेंपल में हर वर्ष की भांति इस साल भी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव खास तरीके से मनाया जाएगा। इसके लिए तैयारी चल रही है। जन्माष्टमी का पूरा दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित रहेगा। वहीं भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ का दौर चलता रहेगा। प्रभु के दर्शन को भक्तों की भीड़ उमड़ती है। 

दुर्गाकुंड में भी है इस्कॉन मंदिर
सबसे पहले इस्कॉन मंदिर की स्थापना अभय चरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने की थी। ISKCON का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है, जिसे हिंदी में अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन कहा जाता है। इस मंदिर का पावन भजन "हरे रामा हरे रामा कृष्णा" है। रसिक गोविंद दास ने बताया कि दुर्गाकुंड में इस्कान मंदिर का निर्माण 1986 में हुआ था। यहां पर इस्कान इंटरनेशनल सोसायटी के अनुसार सभी प्रोग्राम फिक्स होता है। भोग आरती सभी चीज का समय प्रतिदिन के समान होता है। भोर से ही मंगला आरती के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है। रात 9:00 बजे तक प्रोग्राम चलता है। दिन में पांच बार आरती पांच बार भोग भगवान को लगता है।

कोच्चि के श्रद्धालु ने राधा कृष्ण की मूर्ति दिया था दान 
काशी नगरी एक धाम है और यहां पर देश-विदेश से भी श्रद्धालु लोग पहुंचते हैं। यहां पर ज्यादातर इंडिया से ज्यादा लोग आते हैं जैसे साउथ इंडियन, बॉम्बे कोलकाता, दिल्ली काशी का भरवाड़ दर्शन के साथ ही इस्कॉन मंदिर में भी आते रहते हैं। साल भर में कई बड़े प्रोग्राम इस मंदिर में होते हैं जैसे कृष्ण जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, गौर पूजा, नर्सिंह चतुर्दशी सहित अन्य कई प्रोग्राम किया जाता है। मंदिर में चैतन्य महाप्रभु जो 5200 वर्ष पूर्व नदिया जिला में अवतरण हुआ था। चैतन्य महाप्रभु स्वयं राधा और कृष्ण के रूप में विराजमान हैं। यहां पर राधा रानी और कृष्णा जी का भी मूर्ति विराजमान है। कोच्चि के एक श्रद्धालु ने यह बड़ी कृष्ण राधा और बलदाऊ की मूर्ति यहां पर लाकर स्थापित किया था। इससे पहले यहां पर छोटी मूर्तियां थीं। यह विग्रह 2010 में आया है। 

जन-जन में भगवान के प्रति प्रेम उत्पन्न करना ही है उद्देश्य
मंदिर की विशेषता यह है कि जन-जन में भगवान के बारे में बताना, उनके स्वरूप के बारे में बताना, भगवान से प्रेम करना, भगवान के नाम का जाप करना, भगवान का कीर्तन करना, भगवान के बारे में श्रवण करना और ज्यादा ज्यादा लोगों में प्रचार करते हैं। 

पुस्तकों की भी की जाती है बिक्री
उन्होंने बताया कि यहां पर पुस्तकें जैसे भागवत गीता चैतन्य शाहिद भगवान प्रभुपाद के जितने भी पुस्तक हैं यहीं से बिक्री की जाती है इसके साथ ही भगवान के वस्त्र, चित्र बिक्री किस जाति है। लोग यहां दूर-दूर से आते हैं और पुस्तक ले जाकर पढ़ते हैं अपने जीवन में उतरते हैं। इस्कॉन का हेड ऑफिस मुंबई में है। वहीं से पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। 

इस साल कब मनाई जाएगी श्री कृष्ण जन्माष्टमी
इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार जयंती योग और कृत्तिका नक्षत्र के साथ मनाई जाएगी। इस योग में लड्डू गोपाल की पूजा करने से वह प्रसन्न होते हैं। हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पूरे देश में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल 26 अगस्त 2024 को जन्माष्टमी है। इस दिन मथुरा, वृन्दावन और बरसाने में इसकी अलग धूम देखने को मिलती हैं। वहीं जन्माष्टमी के अवसर पर इस्कॉन मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है।

भगवान श्री कृष्ण को माखन और मिश्री का लगता है भोग
हिन्दू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु जी का आठवां अवतार माना जाता है। इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान विष्णु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन कृष्ण जी के बाल रूप को पूजा जाता है। 12 बजे के बाद पूरे देश में उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दौरान उन्हें प्रसन्न करने के लिए माखन-मिश्री और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। वहीं उनकी विशेष कृपा प्राप्ति के लिए आरती की जाती हैं। आरती करने से पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए इस आरती के बारे में जान लेते हैं।

भारत रंग-बिरंगे त्योहारों और जीवंत समारोहों का देश है। यहां पर हर अवसर को बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। वैसा ही कुछ रंग कृष्ण जन्माष्टमी पर भी देखने को मिलता है। वास्तव में, यह भारत में सबसे अधिक मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है क्योंकि यह सबसे प्रिय हिंदू भगवान श्री कृष्ण के जन्म का प्रतीक है। वाराणसी में पर्यटन यह सुनिश्चित करता है कि शहर में कृष्ण जन्माष्टमी समारोह भव्य से भव्य रूप में आयोजित किया जाए।

कैसे मनाते हैं जन्माष्टमी
भगवान शिव की भूमि काशी में धार्मिक उत्साह के साथ श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। जन्माष्टमी के दिन, पूरा समय भगवान कृष्ण को समर्पित किया जाता है, पूरे दिन भजन (भक्ति गीत) और कीर्तन (धार्मिक मंत्र) की मधुर धुनों से शहर का हर एक कोना गूंजता सुनाई पड़ता है। लोग अपने घर में जन्माष्टमी की पूजा तो करते ही है साथ ही कई बड़े मंदिर जैसे, इस्कॉन मंदिर, स्वामी नारायण मंदिर, पुलिस लाइन, पुलिस स्टेशनों, बीएचयू और जिले के अन्य शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों सहित विभिन्न स्थानों पर भी जन्माष्टमी के अवसर पर भव्य समारोह आयोजित किए जाते है।

दुर्गाकुंड क्षेत्र स्थित इस्कॉन मंदिर में भव्य उत्सव मनाया जाता है। जहां पर झांकियां सजाई जाती है, नए थीम और रंग रूप के साथ हर बार तैयारी की जाती है। जिससे यह बहुत आकर्षण हो जाता है। भजन कीर्तन में भी बड़ी संख्या में लोग यहां इकठ्ठा होते है। यहां पर सभी श्रद्धालुओं का स्वागत किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था, इसलिए शैव्य लोग इसे आधी रात के बाद दूसरे दिन मनाते हैं जब वासुदेवजी उन्हें गोकुल ले गए थे, जबकि वैष्णव लोग पहले दिन ही त्योहार मनाना पसंद करते हैं। इस्कॉन भी दूसरे दिन यानी भगवान कृष्ण के जन्म के अगले दिन जन्माष्टमी मनाता है।