बीएचयू के विवादित कोवैक्सीन शोध पत्र को इंटरनेशनल जर्नल ने वापस लिया, भारत बायोटेक ने किया मानहानि का दावा
वाराणसी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के विवादित शोध पत्र को इंटरनेशनल जर्नल "ड्रग सेफ्टी" ने वापस ले लिया है। यह शोध पत्र भारत बायोटेक द्वारा निर्मित कोवैक्सीन के कथित दुष्प्रभावों पर आधारित था, जिसे प्रकाशित होने के बाद समीक्षा कर पब्लिक प्लेटफॉर्म से हटा दिया गया। जर्नल के संपादक ने स्पष्ट किया कि शोध में वैक्सीन के नुकसान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था।
इस शोध के प्रकाशन के बाद, 13 सितंबर को कोवैक्सीन निर्माता कंपनी भारत बायोटेक ने बीएचयू के प्रो. शंख शुभ्रा चक्रवर्ती सहित 11 वैज्ञानिकों और जर्नल के खिलाफ 5 करोड़ रुपये की मानहानि का दावा दायर किया। यह शोध 1024 लोगों पर किया गया था, जिसमें 635 किशोर और 291 वयस्क शामिल थे। इनसे फोन पर बातचीत कर डेटा एकत्र किया गया था। शोध के अनुसार, 304 लोगों को सांस संबंधी दिक्कतें थीं, और किशोरियों में मासिक धर्म में अनियमितता की समस्या पाई गई थी।
शोध पत्र, जिसका शीर्षक "कोवैक्सीन सुरक्षा विश्लेषण (बीबीवी152)" था, 13 मई को प्रकाशित हुआ था। इसमें उत्तर भारत में कोवैक्सीन लेने वाले लोगों पर एक साल तक अध्ययन किया गया था। शोध में पाया गया कि एक-तिहाई लोगों में सांस संबंधी संक्रमण, खून के थक्के जमने, नर्वस सिस्टम से जुड़ी समस्याएं और त्वचा रोग पाए गए। एलर्जी से जूझ रहे लोगों को वैक्सीन से विशेष खतरा बताया गया था।
इस शोध पत्र ने लोकसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक माहौल में गर्मी ला दी थी, जिससे विपक्ष ने सरकार पर तीखे हमले किए थे। आईसीएमआर का नाम भी इस शोध से जुड़ा था, जिसके बाद 28 मई को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस शोध पत्र पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। साथ ही, वैज्ञानिकों को आईसीएमआर का नाम हटाने का निर्देश दिया गया था।
बीएचयू ने भी इस शोध पत्र को अधूरा बताते हुए इसका बचाव किया था। आईसीएमआर द्वारा बीएचयू के आईएमएस निदेशक प्रो. एसएन संखवार को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया था। इसके बाद, बीएचयू ने जांच समिति गठित की, जिसने शोध को अधूरा और अपूर्ण बताया। यह शोध बीएचयू के फार्माकोलॉजी और जीरियाट्रिक विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।