सर्वपितृ अमावस्या पर होगा पितरों का विसर्जन, पितृ ऋण से मिलेगी मुक्ति, जानिए तिथि व मुहूर्त

 
वाराणसी। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मिक शांति के लिए श्रद्धा पूर्वक सर्व पितृ विसर्जन करने की परंपरा का उल्लेख किया गया है। इस वर्ष यह अमावस्या तिथि 1 अक्टूबर, मंगलवार की रात 9:40 बजे शुरू होगी और 2 अक्टूबर, बुधवार को रात 12:19 बजे तक चलेगी। ज्योतिषाचार्य पंडित विमल जैन के अनुसार, उदया तिथि के आधार पर सर्वपितृ विसर्जन बुधवार, 2 अक्टूबर को किया जाएगा। इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। साथ ही, इसी दिन महालय समाप्त हो जाएगा। 

जिनके परिजनों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, उनके लिए श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। अगर पितृ पक्ष में किसी कारणवश माता-पिता, दादा-दादी या अन्य पूर्वजों का श्राद्ध नहीं कर पाए हों, तो अमावस्या तिथि पर श्राद्ध करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिनकी जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है, उन्हें भी इस दिन विधि-विधान से श्राद्ध करना चाहिए। इस तिथि पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने का भी विशेष महत्व है, जिसमें तीन पीढ़ियों के पूर्वज—पिता, दादा, और परदादा—को क्रमशः वसु, रुद्र और आदित्य देवता के रूप में माना जाता है। श्राद्ध के समय इन्हीं को सभी पूर्वजों का प्रतिनिधि माना जाता है।

अमावस्या पर श्राद्ध के दौरान एक, तीन, पांच या 16 योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है। इससे पहले पंचबलि कर्म करना होता है, जिसमें देवता, गाय, कुत्ता, कौआ और चींटी के लिए भोजन के अंश निकालकर पत्ते पर रखे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध अपने घर या किसी नदी, गंगा तट, या सरोवर के किनारे ही करना चाहिए। किसी और के घर में किया गया श्राद्ध निष्फल माना जाता है। श्राद्ध के भोजन में विशेष रूप से दूध और चावल से बनी खीर का होना अनिवार्य बताया गया है, जिसे पितरों की प्रसन्नता के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।