प्लास्टिक से बनेगा स्वच्छ ईंधन, IIT BHU की अनूठी तकनीक से पर्यावरण को मिलेगी संजीवनी
वाराणसी। प्लास्टिक प्रदूषण से जूझ रहे शहरी क्षेत्रों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है आईआईटी-बीएचयू। संस्थान के रासायनिक अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी विभाग के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी उन्नत तकनीक विकसित की है, जो कम लागत में प्लास्टिक को उच्च गुणवत्ता वाले ईंधन में बदल सकती है। यह तकनीक खास तौर पर पॉलीथीन, पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीस्टाइरीन जैसे आम प्लास्टिक कचरे को डीजल और केरोसीन श्रेणी के ईंधनों में परिवर्तित करती है।
इस अभिनव शोध का नेतृत्व प्रोफेसर हीरालाल प्रमाणिक द्वारा किया गया है। उन्होंने एक बहु-चरणीय उत्प्रेरक पायरोलिसिस रिएक्टर विकसित किया है, जिसमें नदी की मिट्टी से तैयार किया गया प्राकृतिक उत्प्रेरक इस्तेमाल होता है। यह तकनीक न केवल कम लागत वाली है, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है और प्लास्टिक निस्तारण की समस्या का टिकाऊ समाधान प्रदान करती है।
यह शोध वाराणसी की विशिष्ट समस्याओं से प्रेरित है। शहर में प्लास्टिक कचरे के अनुचित निस्तारण के कारण नालियों में रुकावट, जलभराव, और पशुओं की मौत जैसी समस्याएं आम हैं। प्लास्टिक युक्त अपशिष्ट खाने से विशेषकर गायों की मृत्यु की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके अतिरिक्त, मिट्टी और जल स्रोत भी प्लास्टिक के कारण लंबे समय तक प्रदूषित होते हैं। ऐसे में यह तकनीक एक बहुआयामी समाधान प्रस्तुत करती है जो न केवल ऊर्जा पुनः उपयोग की दिशा में सहायक है, बल्कि शहरी स्वच्छता, पशु-सुरक्षा और पर्यावरण स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाने में योगदान देती है।
शोध कार्य प्रारंभ करने से पहले आईआईटी (बीएचयू) की टीम ने वाराणसी के विभिन्न निस्तारण स्थलों का गहन सर्वेक्षण किया। उनकी सफलता से यह स्पष्ट हुआ कि यह तकनीक अन्य शहरों में भी प्रभावी ढंग से लागू की जा सकती है। इस तकनीक को भारत सरकार से पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है (पेटेंट संख्या 564780; आवेदन संख्या 202411045430)। इसके अतिरिक्त, इसे Waste Management और International Journal of Energy Research जैसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है।
अब शोध टीम इस तकनीक को औद्योगिक स्तर पर लागू करने की दिशा में कार्यरत है, ताकि देश भर में प्लास्टिक से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया जा सके। आईआईटी (बीएचयू) के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने प्रो. प्रमाणिक और उनकी टीम के प्रयासों की प्रशंसा करते हुए इसे सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है। यह तकनीक न केवल प्लास्टिक कचरे के संकट से निपटने में मदद करेगी, बल्कि एक हरित और ऊर्जा-सक्षम भविष्य की ओर भी मार्ग प्रशस्त करेगी।