सैकड़ों वर्ष पुराना है ज्ञानवापी विवाद, अब ASI सर्वे से सामने आएगा सच

 
वाराणसी। ज्ञानवापी मामले में हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की कई याचिकाएं खारिज कर दी हैं। वहीं इस मामले में हाईकोर्ट ने वर्ष 1991 में दायर मुकदमे के निस्तारण के लिए छह महीने का समय दिया है। इस बाबत कोर्ट ने आदेश दिया है कि छह महीने में इस मुकदमे का निस्तारण किया जाय। पिछले दिनों वाराणसी जिला न्यायालय के आदेश पर लगभग 100 दिनों तक ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) हुआ था। कोर्ट में इस सर्वे की रिपोर्ट पेश की जा चुकी है। बंद लिफाफे में सर्वे का रिपोर्ट कोर्ट में पेश किया गया। जिस पर हिंदू पक्ष ने आपत्ति जताई है। अब इस मामले में 21 दिसंबर को वाराणसी न्यायालय में सुनवाई होगी। हिंदू पक्ष के ओर से इसके मंदिर होने के दावे वर्षों से किए जाते रहे हैं। वहीं मुस्लिम पक्ष ने भी इसे मस्जिद बताया है।

मई 2022 में कोर्ट कमीशन के सर्वे के दौरान वजूखाने मिले कथित शिवलिंग को जहां हिंदू पक्ष ने भगवान आदि विश्वेश्वर का शिवलिंग बताया, वहीं मुस्लिम पक्ष ने इसे मात्र एक फव्वारा बताया। इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस एरिया को सील कर दिया। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अब जबकि विवादित वजूखाने को छोड़कर बाकी परिसर का ASI सर्वे करा लिया गया है, तो अब कोर्ट में सुनवाई के बाद ज्ञानवापी का सच सामने आने की उम्मीद है। आइए जानते हैं कि ज्ञानवापी का इतिहास क्या है और इससे जुड़े विवाद कितने पुराने हैं?

ज्ञानवापी शब्द दो शब्दों के मेल से बना है – ज्ञान+वापी। जिसका अर्थ है ज्ञान का कुआं। यानी शब्द और इसके अर्थ पर गौर करें तो सामने आता है कि कथित मस्जिद के भीतर एक कुंआ है जिसे ज्ञानवापी कहते हैं। अब इसे ज्ञानवापी क्यों कहते हैं? इसकी भी एक अलग कहानी है।

कथित मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुंआ है। जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने स्वयं अपने त्रिशूल से इस कुंए का निर्माण किया था। मान्यता है कि इस कुंए का जल अत्यंत पवित्र है और इसे पीने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञानवापी के जल को काशी विश्वनाथ को चढ़ाया जाता था। परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी मंदिर में देवी की पूजा वर्ष में एक बार चैत्र नवरात्री की चतुर्थी को होती है। अब इसे लेकर प्रतिदिन पूजा की मांग की अर्जी न्यायालय में चल रही है। 

इतिहासकारों के मुताबिक, वर्ष 1194 में सर्वप्रथम इसे मुहम्मद गोरी ने लूटने के बाद ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद वर्ष 1669 में औरंगजेब ने एक बार फिर से काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया। हिंदू पक्ष इसे लेकर दावा करता रहा है कि इस मंदिर को औरंगजेब ने जब तोड़ा तो इसके शिखर पर गुंबद बनवा दिया, जिससे यह मंदिर दृश्य हो। बताया जाता है कि कथित मस्जिद का पिछला हिस्सा मंदिर जैसा ही है। इसके बाद वर्ष 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। 

बीबीसी की एक खबर के अनुसार, मंदिर और मस्जिद को लेकर पहला विवाद वर्ष 1809 में हुआ था। जो कि सांप्रदायिक दंगे में तब्दील हो गया था। अदालत में एक मुकदमा वर्ष 1936 में भी दायर हुआ, जिसका फैसला अगले वर्ष आया। इस फैसले में पहले निचले कोर्ट और फिर उच्च न्यायालय ने मस्जिद को वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी माना। हिंदू पक्ष की ओर से एक व्यक्ति सोहन लाल आर्य ने वर्ष 1996 में वाराणसी न्यायालय में याचिका दायर कर पुरातात्विक सर्वे की मांग की थी। हालांकि उस समय सर्वे नहीं हुआ। इस बार सर्वे की मांग करने वाली पांच प्रमुख महिलाओं में एक महिला लक्ष्मी देवी सोहन लाल आर्य की पत्नी हैं। 

देखा जाय तो, ज्ञानवापी परिसर का विवाद नया नहीं है। यह वर्षों पुराना है। हिंदू पक्ष का कहना है कि 400 वर्ष पहले मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। वर्ष 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरोहितों के वंशजों ने इसे लेकर वाराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में कहा गया कि मूल मंदिर को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। सन 1669 में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई गई। ज्ञानवापी को लेकर हिंदू पक्ष हमेशा से दावा करता रहा है कि विवादित ढांचे की जमीन के नीचे हिन्दुओं के आराध्य आदि विश्वेश्वर भगवान का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग मौजूद हैं। 

वर्ष 1991 के बाद से इस मामले में तारीख पर तारीख की कहानी चलती रही। लोअर कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई, बहस और फैसले के बाद वाराणसी जिला न्यायालय के आदेश पर अगस्त 2023 में इस परिसर का सर्वे शुरू किया गया। यानी ज्ञानवापी को लेकर कोर्ट में पहली अर्जी दायर करने से लेकर 32 वर्षों में अब तक कई मुकदमे दायर किए गए। हालांकि अब ASI सर्वे होने के बाद इस विवाद पर भी विराम लगने की उम्मीदें हैं।