काशी तमिल संगमम में डॉ. श्रुति उपाध्याय की प्रस्तुति ने मोहा मन

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, प्रयागराज तथा दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के संयुक्त सहयोग से नमो घाट पर आयोजित “काशी तमिल संगमम” के अंतर्गत शुक्रवार को एक भव्य सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की अध्यापिका डॉ. श्रुति सारस्वत उपाध्याय ने अपनी भावपूर्ण सांगीतिक प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
 

वाराणसी। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वावधान में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, प्रयागराज तथा दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के संयुक्त सहयोग से नमो घाट पर आयोजित “काशी तमिल संगमम” के अंतर्गत शुक्रवार को एक भव्य सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। इस अवसर पर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की अध्यापिका डॉ. श्रुति सारस्वत उपाध्याय ने अपनी भावपूर्ण सांगीतिक प्रस्तुति से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

डॉ. श्रुति उपाध्याय ने मां गंगा की स्तुति “हे गंगा मैया बसब एही नगरी” तथा सुप्रसिद्ध भजन “तीर्थों में विख्यात काशी विश्वनाथ” का सस्वर गायन कर वातावरण को भक्तिमय बना दिया। उनकी प्रस्तुति में काशी की आध्यात्मिक चेतना और संगीत साधना का अद्भुत समन्वय देखने को मिला, जिसे उपस्थित दर्शकों ने खूब सराहा।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि काशी केवल सर्व-विद्या की नगरी ही नहीं, बल्कि संगीत साधना का भी प्रमुख केन्द्र रही है। यहां अनेक ऐसे उपासक हुए हैं, जिन्होंने संगीत के माध्यम से महादेव की आराधना की। इस परंपरा को नादोपासना कहा जाता है। उन्होंने कहा कि महादेव की इस उपासना में उत्तर और दक्षिण भारत दोनों के विद्वानों का योगदान रहा है, जिन्होंने हिन्दुस्तानी और कर्नाटक संगीत को एक-दूसरे से जोड़ा।

कुलपति ने आगे कहा कि काशी तमिल संगमम् उत्तर और दक्षिण भारत की संस्कृतियों के संगम का सशक्त माध्यम है। संगीत के क्षेत्र में भी यह आयोजन दोनों परंपराओं को जोड़ने का कार्य कर रहा है। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में नाद को ब्रह्म स्वरूप माना गया है ‘नादमयम् जगत’। काशी की गलियों, मंदिरों और घाटों पर गूंजती शंख-ध्वनि, घंटियां और वेद-पाठ नादोपासना की जीवंत अभिव्यक्ति हैं। संगीत न केवल एक कला, बल्कि जीवन दर्शन भी है।

डॉ. श्रुति उपाध्याय ने अपनी प्रस्तुति पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में आयोजित काशी तमिल संगमम् जैसे आयोजन में प्रस्तुति देना उनके लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने काशी को साधना और संगीत का केन्द्र बताया। कार्यक्रम में तबले पर डॉ. संतोष सिंह तथा हारमोनियम पर आलोक मिश्र ने संगत कर प्रस्तुति को और प्रभावशाली बनाया।