काशी में छठ पूजा: धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक सौहार्द का संगम, गंगा घाट पर उमड़ता है आस्था का सैलाब, जानिए इसका महत्व

 
वाराणसी। धर्म एवं आध्यात्म की नगरी काशी में सात वार में नौ त्योहार मनाए जाते हैं। उन्हीं में से एक है 'छठ पूजा'। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में अन्य त्योहारों की भांति छठ पूजा का भी विशेष महत्व है, हालांकि यह पर्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश का मुख्य त्योहार माना जाता है। 

वाराणसी में भी छठ का आयोजन भव्यता और श्रद्धा के साथ होता है। गंगा के घाटों पर छठ व्रतियों की भीड़, भक्तों का उत्साह, और भक्ति का वातावरण इस पर्व को अनोखा बना देता है। वाराणसी में छठ पर्व का अपना एक अलग ही इतिहास और सांस्कृतिक महत्व है, जो समय के साथ प्राचीन परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ता गया है।

काशी में कब हुई छठ की शुरुआत

काशी में छठ पूजा की शुरुआत का कोई निश्चित इतिहास नहीं है, परन्तु ऐसा माना जाता है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्सों से आए लोगों ने इस परंपरा को काशी में जीवित रखा। काशी, जो गंगा किनारे बसी है, छठ पूजा के लिए एक आदर्श स्थान माना जाता है। समय के साथ यह परंपरा स्थानीय लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो गई। जैसे-जैसे बिहार और पूर्वांचल के लोग वाराणसी में आकर बसे, वैसे-वैसे छठ का महत्त्व और प्रचलन बढ़ता गया। अब यह पर्व यहाँ इतनी श्रद्धा से मनाया जाता है कि काशी की धार्मिक धारा में यह पूरी तरह समाहित हो गया है।

छठ पूजा की धार्मिक महत्ता

छठ पूजा सूर्य देवता की उपासना का पर्व है, जिसमें उन्हें ऊर्जा, स्वास्थ्य, और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा जाता है। काशी में गंगा नदी के किनारे होने के कारण यह पूजा विशेष रूप से महत्व रखती है। हिंदू धर्म में गंगा को माँ का दर्जा प्राप्त है और सूर्य देवता को जीवन का स्रोत माना जाता है। काशी में सूर्योपासना का एक प्राचीन इतिहास है, और यहां के घाटों पर सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस प्रकार, गंगा और सूर्य का संगम छठ पूजा को अत्यंत पवित्र बनाता है। 

वाराणसी के घाटों पर उमड़ता है आस्था का सैलाब

काशी के दशाश्वमेध, अस्सी, राजेंद्र प्रसाद और पंचगंगा समेत कई घाटों पर छठ पर्व का भव्य आयोजन होता है। छठ पर काशी के घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ता है। यहाँ व्रतधारी महिलाएँ और पुरुष अपनी मनोकामनाओं के लिए सूर्य देवता की पूजा करते हैं। व्रती श्रद्धालु सूर्योदय और सूर्यास्त के समय गंगा के जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इन घाटों पर विशेष रूप से सजावट की जाती है और प्रशासन द्वारा व्रतधारियों के लिए स्वच्छता, सुरक्षा और व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। भक्तजन यहाँ संध्या अर्घ्य और सुबह के अर्घ्य के लिए एकत्रित होते हैं, जिससे घाटों पर एक भव्य दृश्य देखने को मिलता है।

वाराणसी में छठ की सांस्कृतिक छटा

काशी में छठ पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव बन चुका है। इस दौरान गंगा के घाटों पर लोक गीत, पूजा सामग्रियों की दुकानें और लोगों की भीड़ देखते ही बनती है। यहाँ परंपरागत भोजपुरी और मैथिली गीत गाए जाते हैं जो इस पर्व को और भी आनंदमय बना देते हैं। महिलाएँ विशेष रूप से अपने पारंपरिक परिधान में सजधज कर पूजा करती हैं और पूरा माहौल एक अलग ही रौनक से भर जाता है। यह त्योहार वाराणसी की सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाता है, जहाँ विभिन्न प्रांतों और समुदायों के लोग एकत्रित होकर इस पर्व को मनाते हैं।

अत्यंत कठोर है छठ व्रत

छठ पूजा में चार दिनों की कठिन व्रत प्रक्रिया होती है, जिसमें व्रती विशेष नियमों का पालन करते हैं। पहले दिन को नहाय-खाय कहते हैं, जिसमें व्रती गंगा स्नान करके पवित्रता से भोजन करते हैं। दूसरे दिन को खरना कहा जाता है, जिसमें व्रतधारी दिनभर उपवास रखने के बाद शाम को खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। तीसरे दिन संध्या के समय गंगा किनारे सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सूर्यास्त के समय अर्घ्य अर्पित करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। चौथे दिन प्रातःकालीन अर्घ्य के साथ व्रत का समापन होता है। वाराणसी में गंगा किनारे व्रतधारी अपने परिवार के साथ इस पूजा को सम्पन्न करते हैं, जो उनकी आस्था और अनुशासन का प्रतीक है।

छठ पर्व के दौरान आस्था का केंद्र बन जाती हैं गंगा

काशी में गंगा नदी को विशेष स्थान प्राप्त है। गंगा की पवित्रता और उसका धार्मिक महत्व छठ पूजा के दौरान और भी बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है और उसके सारे पाप धुल जाते हैं। छठ पूजा के दौरान गंगा में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देना अत्यंत पुण्य का कार्य माना गया है। इस प्रकार गंगा का पानी, जो पूरे भारत में एक धार्मिक स्थल माना जाता है, छठ पर्व को एक विशेष महत्ता प्रदान करता है।

काशी में छठ पूजा का समाज पर प्रभाव

वाराणसी में छठ पूजा का आयोजन न केवल धार्मिकता बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। इस पर्व के दौरान लोग अपने भेदभावों को भुलाकर एक साथ पूजा करते हैं। इस अवसर पर विभिन्न समाजों और जातियों के लोग एकत्रित होकर पर्व मनाते हैं। साथ ही, इस समय वाराणसी में पर्यटकों का आगमन भी बढ़ जाता है, जिससे स्थानीय व्यापार और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है। छठ पूजा के दौरान वाराणसी में एक सकारात्मक और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण देखने को मिलता है, जो इस पर्व की महत्ता को और बढ़ा देता है।


समय के साथ बदलाव

समय के साथ काशी में छठ पूजा की परंपराओं में कुछ बदलाव भी आए हैं। पहले यह पूजा अधिकतर पारिवारिक स्तर पर की जाती थी, लेकिन अब यह सामुदायिक स्तर पर भी आयोजित होने लगी है। घाटों पर स्थानीय प्रशासन द्वारा सुरक्षा और साफ-सफाई की व्यापक व्यवस्था की जाती है। साथ ही, इस पर्व का प्रचार-प्रसार मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से भी होता है, जिससे दूर-दूर के लोग भी इसके महत्व को जान पाते हैं और सम्मिलित होते हैं।

काशी में छठ पूजा का आयोजन एक अद्भुत धार्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है। गंगा के तट पर छठ व्रतियों का समर्पण और आस्था देखते ही बनती है। यह पर्व काशी की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न अंग बन चुका है। काशी में छठ पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक ऐसा अवसर है जहाँ लोग प्रकृति, सूर्य, और गंगा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह पर्व स्थानीय और बाहरी श्रद्धालुओं के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है, और काशी की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है।