जयंती विशेष: काशी में ही अटल जी ने अपनी पत्रकारिता को दी धार, आजादी के बाद बनारस के पक्के महाल को बनाया अपना ठिकाना

 
वाराणसी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को काशी से गहरा लगाव था। वे हरदम काशी आने को उत्सुक रहते थे। कहा जाता है कि एक कवि के तौर पर अटल जी ने काशी में ही अपनी लेखनी को धार दी थी। आज उनकी 99वीं जयंती पर हम काशी के उनके संस्मरणों को याद करेंगे। 

1947 का वह दौर, जब देश की आजादी के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबन्ध लग गया था। एक-एक करके आरएसएस के सदस्यों की गिरफ़्तारी होने लगी। उस समय अटलजी बनारस आ गए थे। उन्होंने बनारस के पक्के महाल की गलियों में दूधविनायक मोहल्ले को अपना ठिकाना बनाया। यह कान तमिलनाडु के एक द्रविड़ परिवार का था। इसी दौरान अटलजी ने अपने पत्रकारिता की शुरुआत की। उन्होंने यहीं से संघ की पाक्षिक पत्रिका चेतना का प्रकाशन किया और संघ से जुडी गतिविधियों में जुट गए। 

यह वह दौर था, जब बनारस की जेल में संघ के दिग्गज नेता आचार्य गिरिराज किशोर, राजबली तिवारी, डॉ० भगवानदास अरोड़ा जैसे दिग्गज बंद थे। अटल बिहारी के प्रवास के बाद जब तक हालात सामान्य हुआ तब तक पक्के महाल का इलाका जनसंघ का गढ़ बना गया।  

वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर बनारस आए। उन्होंने गढ़वासी टोला की बादला धर्मशाला में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। उनको सुनने के लिए लोग अंदर से लेकर बाहर तक खड़े थे। बनारस के राजबली तिवारी, विश्वनाथ वशिष्ठ, शंकर प्रसाद जायसवाल, श्रीगोपाल साबू, विश्वनाथ डिडवानिया, बरमेश्वर पांडेय, चकिया के श्यामदेव, पालजी पाठक, गणेश चौरसिया, पन्नालाल गुप्ता, कुंदन सिंह भंडारी, राजनाथ सिंह, हरिश्चंद्र श्रीवास्तव हरीश जी आदि जनसंघ के नेता भी मौजूद थे। संबोधन की विशेष शैली के कारण अटल बिहारी वाजपेयी बनारस के लोगों में काफी लोकप्रिय हो गए थे। इस चुनाव के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी बनारस के कई प्रबुद्धजनों से भी मुलाकात की थी। 

एम्फीथिएटर ग्राउंड में सर्दी में भी गर्मी का हुआ एहसास

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 70 के दशक में पहला परमाणु परीक्षण 70 के दशक में हो चुका था। बावजूद इसके भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देशों में शामिल करने की इच्छा अटल बिहारी वाजपेयी के मन में थी। संयोग बना और वर्ष 1996 में बीएचयू छात्रसंघ का उद्घाटन करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी बनारस आए। तब तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। बीएचयू के एम्फीथिएटर मैदान में शाम छह बजे कार्यक्रम था। फरवरी माह की सर्द हवा बह रही थी। इसके बाद भी मैदान में तिल रखने भर की जगह नहीं थी। अटल बिहारी वाजपेयी तय समय शाम छह बजे की बजाए तीन घंटे विलंब से पहुंचे। इसी मंच से अटल जी ने भारत को परमाणु संपन्न बनाने की इच्छा भी जाहिर की। 

परमाणु बम ड्राइंग रूम में सजाने के लिए नहीं रखा : वाजपेयी

बीएचयू का एम्फीथिएटर खचाखच भरा था। युवाओं का जोश देखने लायक था। उस वक्त पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो थीं। वह अक्सर भारत के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन की बात करती थीं। अपने चिरपरिचित अंदाज में अटल बिहारी वाजपेयी ने मंच से उनको जवाब दिया। बेनजीर के नाम का जिक्र करते कहा कि पड़ोसन को बता दो, हमने परमाणु हथियार ड्राइंग रूम में सजाने के लिए नहीं बना रखा है। इसके बाद तो कार्यक्रम स्थल तालियों से गूंज उठा। रात साढ़े 11 बजे तक अटल बिहारी वाजपेयी का संबोधन होता रहा और लोग सर्द मौसम में भी वहां से हटे नहीं। इस दौरान एम्फीथिएटर ग्राउंड में उपस्थित छात्रों ने जोश में तालियां बजाना शुरू कर दिया। जोशीले तालियों के आवाज़ से एम्फीथिएटर ग्राउंड गुंजायमान हो उठा।