अगस्त्यकुंडा का अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर : महर्षि अगस्त्य की तपोस्थली, शिवकृपा से मिली सिद्धि और तमिल भाषा की उत्पत्ति
रिपोर्टर – ओमकारनाथ
वाराणसी। काशी की पावन भूमि पर स्थित अगस्त्यकुंडा केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान, तपस्या और सनातन परंपरा की जीवंत धरोहर है। मान्यता है कि यही अगस्त्यकुंडा महर्षि अगस्त्य की प्रमुख तपोस्थली रही है, जहां उन्होंने भगवान महादेव की कठोर साधना कर अद्भुत सिद्धियां प्राप्त की थीं। इसी तपोबल और शिवकृपा के प्रभाव से महर्षि अगस्त्य भारतीय संस्कृति के महानतम ऋषियों में स्थान प्राप्त करते हैं। अगस्त्यकुंडा स्थित अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर काशीवासियों के लिए आस्था का केंद्र है।
मान्यता है कि महर्षि अगस्त्य को तमिल भाषा का जनक कहा जाता है। तमिल परंपरा में उन्हें विशेष श्रद्धा और सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है। यह विश्वास प्रचलित है कि तमिल भाषा का ज्ञान स्वयं भगवान शिव ने अगस्त्य ऋषि को प्रदान किया था। शिवकृपा से प्राप्त इस ज्ञान को अगस्त्य मुनि ने दक्षिण भारत में प्रचारित किया और उसे व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया। महर्षि अगस्त्य का उल्लेख ऋग्वेद में एक महान ऋषि के रूप में मिलता है, जिनकी कई ऋचाएं आज भी वैदिक साहित्य का हिस्सा हैं। वे केवल भाषा के प्रवर्तक ही नहीं थे, बल्कि भारतीय ज्ञान परंपरा के सशक्त स्तंभ भी थे। आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा में उनके ग्रंथ आज भी मार्गदर्शक माने जाते हैं। योग और खगोलशास्त्र में भी उनके योगदान को असाधारण माना जाता है।
महर्षि अगस्त्य की उत्पत्ति और दक्षिण यात्रा पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि कार्य में सहयोग के लिए महर्षि अगस्त्य की रचना की थी। वे जन्म से ही ब्रह्मज्ञान, योग और तपोबल से परिपूर्ण थे। तमिल ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि जब भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के अवसर पर सभी देवता और ऋषि हिमालय में एकत्र हो गए, तो पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान शिव ने अगस्त्य ऋषि को दक्षिण दिशा में जाने का आदेश दिया, ताकि पृथ्वी का संतुलन बना रहे। शिव की आज्ञा का पालन करते हुए अगस्त्य मुनि दक्षिण भारत की ओर चले गए और वहीं ज्ञान, संस्कृति और साधना का व्यापक प्रचार किया।
तमिल भाषा के आद्य प्रवर्तक अगस्त्य कुंडा स्थित अगस्तेश्वर महादेव के पुजारी श्रीकांत पाठक के अनुसार, महर्षि अगस्त्य को तमिल भाषा का जनक माना जाता है। दक्षिण भारत में उनके आगमन से पूर्व भाषा का कोई व्यवस्थित स्वरूप नहीं था। भगवान शिव ने स्वयं अगस्त्य मुनि को तमिल भाषा का दिव्य ज्ञान प्रदान किया और उन्हें इसे जनसामान्य तक पहुंचाने का दायित्व सौंपा। तमिल संगम साहित्य में भी ऋषि अगस्त्य का उल्लेख प्रमुखता से मिलता है। कहा जाता है कि उन्होंने तमिल संगम, यानी कवियों की सभा, की अध्यक्षता की और तमिल व्याकरण तथा साहित्य को संरक्षित किया। संगम परंपरा के अनुसार, महर्षि अगस्त्य ने तमिल व्याकरण का प्रथम ग्रंथ ‘अगत्तियम’ की रचना की, जिसमें तमिल भाषा की संरचना, शब्द-विन्यास और व्याकरणिक नियमों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसी कारण उन्हें तमिल साहित्य और व्याकरण का आद्य आचार्य माना जाता है। महर्षि अगस्त्य के अद्भुत चमत्कार महर्षि अगस्त्य का जीवन अनेक अलौकिक घटनाओं से भरा हुआ है।
महर्षि अगस्त्य के तपोबल और योग शक्ति के कई चमत्कार पुराणों में वर्णित हैं। विंध्य पर्वत को झुकाना पुराणों के अनुसार, विंध्य पर्वत अपने अहंकार में इतना बढ़ गया कि उसने सूर्य के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया। देवताओं और ऋषियों ने इस संकट से मुक्ति के लिए अगस्त्य मुनि की शरण ली। अगस्त्य मुनि ने विंध्य पर्वत को आदेश दिया कि वह झुक जाए। ऋषि की आज्ञा का पालन करते हुए पर्वत झुक गया और आज तक वैसा ही माना जाता है।
वातापि और इल्वल का वध
वातापि और इल्वल नामक राक्षस ब्राह्मणों को धोखे से मारते थे। वातापि मांस का रूप धारण कर भोजन में परोसा जाता और इल्वल उसे पुनर्जीवित कर देता था। अगस्त्य मुनि ने अपने योग बल से वातापि को पचा लिया और इल्वल को भी अपने तपोबल से समाप्त कर दिया, जिससे ऋषियों की रक्षा हुई। समुद्र पान की कथा महाभारत में वर्णन है कि असुर समुद्र में छिपकर देवताओं को परेशान करते थे। देवताओं की प्रार्थना पर अगस्त्य मुनि ने अपना योग बल प्रयोग कर संपूर्ण समुद्र पी लिया, जिससे असुर प्रकट हो गए और देवताओं को विजय मिली।
रामायण में अगस्त्य ऋषि की भूमिका रामायण में भी महर्षि अगस्त्य की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। लंका युद्ध से पूर्व उन्होंने भगवान राम को आदित्य हृदय स्तोत्र का उपदेश दिया, जिससे राम को अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई और वे रावण का वध कर सके। शिव उपासना और शिवलिंग स्थापना महर्षि अगस्त्य शिवभक्त थे। उन्होंने कांचीपुरम, रामेश्वरम, तिरुवनंतपुरम, मदुरै और तिरुपति जैसे अनेक पवित्र स्थलों पर शिवलिंग की स्थापना की। शिव उपासना को जन-जन तक पहुंचाने में उनका योगदान अमूल्य है। आज भी काशी का अगस्त्य कुंडा और अगस्तेश्वर महादेव मंदिर महर्षि अगस्त्य की तपस्या, साधना और दिव्य ज्ञान की जीवंत स्मृति के रूप में श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान करता है।