तिरुपति बालाजी मंदिर की घटना के बाद देश भर के मंदिरों में लागू होगी नई प्रसाद व्यवस्था, पंचमेवा, फल, बताशा और रामदाना का लगेगा भोग
इस नई व्यवस्था के तहत मंदिरों में पंचमेवा, फल, बताशा और रामदाना को प्रसाद के रूप में चढ़ाने की परंपरा को पुनर्जीवित किया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि भगवान को चढ़ाया जाने वाला प्रसाद शुद्ध और सात्विक हो, और किसी प्रकार की मिलावट या गड़बड़ी से मुक्त हो। काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने कहा कि तिरुपति बालाजी में हुई घटना से 30 करोड़ से अधिक हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं, जिससे प्रसाद व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता उत्पन्न हुई।
प्रो. द्विवेदी ने यह भी बताया कि देश के द्वादश ज्योर्तिलिंगों, देवी मंदिरों और सभी छोटे-बड़े देवालयों में प्रसाद अर्पण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव किया जाएगा। काशी विद्वत परिषद ने पुराणों और सनातनी परंपराओं के अनुसार भगवान को अर्पित किए जाने वाले सात्विक भोग का खाका तैयार किया है। इससे न केवल भक्तों का विश्वास बढ़ेगा, बल्कि प्रसाद की गुणवत्ता भी सुनिश्चित होगी।
प्रसाद को शुद्ध और पवित्र मानकर ग्रहण किया जाता है, और इसे परमात्मा का आशीर्वाद समझा जाता है। इसके अनुसार, संत, साधक और सात्विक व्यक्ति अपने आहार के साथ-साथ भगवान को भी पवित्र प्रसाद अर्पित करते हैं। यह परंपरा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें भोजन से पहले परमात्मा को प्रसाद अर्पित करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इसके अलावा, गोमाता और श्वान को भी भोजन देने की परंपरा है, जो कि समाज में दया और करुणा का प्रतीक है।
प्रो. द्विवेदी ने यह भी कहा कि प्रसाद की शुचिता की जिम्मेदारी केवल मंदिर प्रशासन की नहीं, बल्कि नागरिकों की भी है। भगवान का प्रसाद ग्रहण करने से मन में आनंद और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है, जो व्यक्ति की बुद्धि को भी विकसित करता है। भारत के मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र हैं, और यहां पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि भोग और प्रसाद की शुचिता बनाए रखी जाए।
वर्तमान में, काशी विद्वत परिषद सभी धर्माचार्यों से संपर्क कर इस प्रक्रिया को तेजी से लागू करने की दिशा में काम कर रही है। जल्द ही, देशभर के संतों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की जाएगी, ताकि इस कार्य योजना पर सरकार के साथ समन्वय स्थापित किया जा सके और इसे देश के सभी देवालयों में लागू किया जा सके। इस प्रकार, मंदिरों की प्रसाद व्यवस्था में सुधार करने से न केवल भक्तों की आस्था में वृद्धि होगी, बल्कि धार्मिक परंपराओं की रक्षा भी सुनिश्चित होगी।