महिला सशक्तीकरण के लिये समर्पित था सावित्री बाई फुले का जीवन - कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी।

 

वाराणसी। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में मंगलवार को नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता व देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले की 192 वीं जयंती मनायी गयी। इस मौके पर कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने उनके चित्र पर माल्यार्पण किया।

संगोष्ठी में कुलपति कहा कि भारत की पहली महिला शिक्षिका और महाराष्ट्र में महिलाओं की शिक्षा के प्रति अपना जीवन समर्पित करने वाली सावित्रीबाई फुले का जन्म सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ था। वह दलित परिवार में जन्मी थीं। उनके पिता का नाम खंदोजी नैवेसे और मां लक्ष्मीबाई थीं। सावित्री बाई फुले ने भारत की पहली शिक्षिका होने का श्रेय तब हासिल किया जब महिलाओं का शिक्षा ग्रहण करना तो दूर की बात थी, उनका घर से निकलना भी दूभर था। 

आजादी से पहले भारत में महिलाओं के साथ काफी भेदभाव था। समाज में दलितों की स्थिति अच्छी नहीं थी। जब सावित्री बाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कड़ा संघर्ष करते हुए शिक्षा हासिल की। सावित्रीबाई फुले का जीवन महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित था। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उठाई आवाज। जब वह महज 9 वर्ष की थीं तो उनका विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था। पढ़ाई में उनकी लगन देखकर ज्योतिराव फुले प्रभावित हुए और उन्होंने सावित्रीबाई को आगे पढ़ाने का मन बनाया। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं।

इसके बाद सावित्रीबाई फुले ने पति के साथ मिलकर 1848 में पुणे में लड़कियों का स्कूल खोला। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फिर फुले दंपति ने देश में 18 स्कूल खोले। तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। सावित्री बाई सामाजिक बुराईयों से लड़ती रहीं। उन्होंने अपने घर का कुआं दलितों के लिए खोल दिया। उस दौर में यह बहुत बड़ी बात थी। विधवाओं के लिए आश्रम खोला। जब पुणे में प्लेग फैला तो सावित्रीबाई फुले मरीजों की सेवा में जुट गईं। इसी दौरान उन्हें प्लेग हो गया और 1897 में उनकी मृत्य हो गई। उनके पति ज्योतिराव का निधन उनसे पहले 1890 में हो गया था। पति के निधन के बाद सावित्रीबाई फूले ने ही उनका दाह संस्कार किया था।

मुस्तफाबाद में मनी सावित्री बाई की जयंती
चिरईगांव विकास खंड के मुस्तफाबाद (नयी कोट) में मंगलवार को सावित्रीबाई फुले की जयंती के अवसर पर साबित्रीबाई फूले एवं जीवन दर्शन विषयक गोष्ठी का आयोजन किया गया।

गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि सावित्रीबाई फूले ने विपरीत परिस्थितियों में भी महिलाओं के बीच शिक्षा की अलख जगाया। देश में सबसे पहले महिला शिक्षक होने के साथ समाज सुधारक, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता और कवियित्री भी थीं। 18वीं सदी में जब महिलाओं का स्कूल जाना पाप समझा जाता था। तब इन्‍होंने महिलाओं के लिए देश में पहला स्‍कूल खोलकर उनको शिक्षित करने के लिए बड़ा कदम उठाया। हालांकि इसके लिए इन्‍हें समाज के ठेकेदारों के कड़े विरोध का सामना भी करना पड़ा। लेकिन वह अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं हुईं। लड़कियों व महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलवाया। गोष्ठी के बाद जागरूकता रैली मुस्तफाबाद से नई कोट बस्ती तक निकाली गई। कार्यक्रम में डा.बबिता, ग्राम प्रधान पति पारस, अशोक कुमार, कंचन कुमारी, नगेन्द्र भारती आदि रहे।