वाराणसी : शास्त्री घाट, रामेश्वर घाट पर छठ पूजन के लिए हुजूम उमड़ा, कोई पैदल तो कोई सांष्टांग दंडवत करते पहुंचा
वाराणसी। खरना का महाप्रसाद ग्रहण करने के बाद रात से 36 घंटों तक निराजल रहकर कठिन व्रत की शुरुआत के साथ ही वरूणा तट स्थित शास्त्री घाट पर रविवार की शाम अस्ताचलगामी सूर्य का अर्घ्य देने के लिए लोग बेसब्री से प्रतीक्षा करते दिखे। पूजन और अर्घ्य देने के बाद सभी अपने-अपने घरों की ओर चल दिये। इसके साथ ही लोक आस्था का महापर्व छठ पर ग्रामीण क्षेत्र में रामेश्वर घाट पर जगापट्टी, रामेश्वर, रसूलपुर, तेन्दुई, बरेमा, पेङूका समेत आसपास के गांवों के लोगों ने धूमधाम से मनाया। लोगों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। पण्डित अथर्व त्रिपाठी ने बताया कि चढ़ते सूरज से जुड़ी संभावनाओं पर मुग्ध रहने वाली इस दुनिया में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां ढलते सूर्य को भी पूरी कृतज्ञता के साथ अपनी श्रद्धा निवेदित करने की परंपरा है।प्रकृति को समर्पित चार दिवसीय महापर्व छठ के दौरान आज सूर्य की सांध्य आराधना का दिवस है।
गंगा के घाट हों या वरूणा के छठ पूजन का अलग माहौल दिखा। भक्ति और श्रद्धा से सराबोर को व्रती पैदल पहुंचा तो कोई साष्टांग दंडवत करते पूजन स्थल पर पहुंचा। व्रती महिलाओं के अलावा उनके परिवार, रिश्तेदार और परिचिति भी इस पूजन समारोह में शामिल हुए। रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद दूसरे दिन सोमवार को सूर्य की लालिमा के साथ यानी सूर्याेदय होते ही सूर्य को अर्घ्य देने के उपरांत व्रत का समापन होगा।
सनातन धर्म में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष देव स्वरूप में इनका पूजन प्रारंभ हुआ। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत अनुष्ठान किया था जिससे उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। प्रकृति के छठवें अंश से षष्ठी माता की उत्पत्ति हुई माना जाता है कि डाला छठ पर्व सर्वप्रथम द्वापर में कुंती ने किया था। वहीं त्रेता में भगवान राम के लंका विजय के बाद दीपावली पर अयोध्या लौटने के बाद दीपावली से छठे दिन माता सीता ने यह व्रत किया था।