अब 'श्रीनिवास देशपांडे लाइब्रेरी' के नाम से जाना जाएगा IIT-BHU का मुख्य पुस्तकालय 

वाराणसी। IIT-BHU की मुख्‍य लाइब्रेरी अब 'श्रीनिवास देशपांडे पुस्तकालय' के नाम से जानी जाएगी।  मुख्य पुस्तकालय का नामकरण समारोह बीते शुक्रवार को संस्थान में ऑनलाइन माध्‍यम से आयोजित किया गया।  इस समारोह में अमेरिका और भारत के अतिथि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए थे। संस्थान के पुस्तकालय का नया नामकरण बोस्टन स्थित प्रसिद्ध उद्यमी और दानी देश देशपांडे और उनकी पत्नी जयश्री देशपांडे द्वारा आईआईटी (बीएचयू) फाउंडेशन को 1 मिलियन अमरीकी डालर (रुपये 7.5 करोड़) के दान के माध्यम से संभव हुआ है, जो श्रीनिवास देशपांडे के पुत्र और पुत्रवधू हैं। 

 

वाराणसी। IIT-BHU की मुख्‍य लाइब्रेरी अब 'श्रीनिवास देशपांडे पुस्तकालय' के नाम से जानी जाएगी।  मुख्य पुस्तकालय का नामकरण समारोह बीते शुक्रवार को संस्थान में ऑनलाइन माध्‍यम से आयोजित किया गया।  इस समारोह में अमेरिका और भारत के अतिथि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए थे। संस्थान के पुस्तकालय का नया नामकरण बोस्टन स्थित प्रसिद्ध उद्यमी और दानी देश देशपांडे और उनकी पत्नी जयश्री देशपांडे द्वारा आईआईटी (बीएचयू) फाउंडेशन को 1 मिलियन अमरीकी डालर (रुपये 7.5 करोड़) के दान के माध्यम से संभव हुआ है, जो श्रीनिवास देशपांडे के पुत्र और पुत्रवधू हैं। 

देशपांडे औद्योगिक रसायन विज्ञान में 1948 में स्नातक हैं जो पूर्व में कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी बीएचयू था और अब आईआईटी बीएचयू है। इस अवसर पर संस्‍थान के निदेशक प्रोफेसर प्रमोद कुमार जैन ने बताया कि संस्थान के लिए यह अमूल्य योगदान हमें विभिन्न क्षमताओं में आगे बढ़ने में मदद करेगा। हम इस योगदान के माध्यम से आगे बढ़ने और और छात्रों के विकास के लिए एक गुणवत्तापूर्ण वातावरण सुनिश्चित करेंगे।

श्रीनिवास देशपांडे ने कहा कि संस्थान से स्नातक हुए 74 वर्ष से अधिक समय हो चुके हैं, यह शिक्षा ही थी जिसने उन्हें सात दशकों से अधिक समय तक सार्वजनिक और निजी सेवा के लिए तैयार किया। इतिहास में ऐसे समय में संस्थान में अपने समय को याद किया जब भारत ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। उन्होंने मेस के भोजन को भी याद किया और आशा व्यक्त की कि वर्तमान छात्रों को उतना ही अच्छा भोजन मिल रहा है, जितना कि उन्हें तब मिला करता था। 

कुलपति प्रो. सुधीर जैन ने एक छोटी सी ज्ञात तथ्य साझा किया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय को इसके संस्थापक स्वर्गीय पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा 51 लाख रुपये दिया गया, जिसे लगभग 100 साल पहले दिया गया था। उन्होंने स्वीकार किया कि पूर्व छात्रों के माध्यम से इतिहास आज भी जिंदा है।