महाश्मशान नाथ के दरबार में सजी नगर वधुओं की महफिल, हुआ बाबा का भव्य शृंगार
वाराणसी। नवरात्र के सपत्मी तिथि पर महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर 350 साल से अधिक समय से चली आ रही नगर वधुओं के नृत्य का आयोजन इस साल भी हुआ। नगर वधुओं ने बाबा मसाननाथ के सामने गणिकाएँ मुक्ति की कामना लिए अपनी कला का प्रदर्शन किया। काशी के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आई नगर वधुओं ने अपनी रसभीनी प्रस्तुतियों के साथ महाश्मशान नाथ के दरबार में उपस्थिति दर्ज कराई।
रिपोर्ट- नितिन शर्मा
वाराणसी। नवरात्र के सपत्मी तिथि पर महाश्मशान मणिकर्णिकाघाट पर 350 साल से अधिक समय से चली आ रही नगर वधुओं के नृत्य का आयोजन इस साल भी हुआ। नगर वधुओं ने बाबा मसाननाथ के सामने गणिकाएँ मुक्ति की कामना लिए अपनी कला का प्रदर्शन किया। काशी के अलावा देश के विभिन्न हिस्सों से आई नगर वधुओं ने अपनी रसभीनी प्रस्तुतियों के साथ महाश्मशान नाथ के दरबार में उपस्थिति दर्ज कराई।
नगर वधुओं की मान्यता है कि बाबा श्मशान नाथ के दरबार में हाजिरी से उनके इस अधम जीवन का अभिशाप कट जाएगा। महाश्मशान नाथ के तीन दिवसीय वार्षिक श्रृंगार महोत्सव की अंतिम रात प्राचीन परम्परा को निभाते हुए नगर वधुओं ने अपनी हाजिरी लगाई। धधकती चिताओं के बीच नगरवधुओं के पांव में घुंघरू रातभर इस महफिल में बजते रहेंगे।
महोत्सव के अंतिम दिन बाबा महाश्मशान नाथ का विधि-विधान से पूजन किया गया। बेला, गुलाब, गेंदा के पुष्पों से बाबा का भव्य शृंगार किया गया। भांग एवं खोए की बर्फी सहित ठंडई का भोग लगाया गया। फिर महाआरती की गई। आरती बाद प्रसाद भक्तों में वितरित किया गया फिर, नगर वधुओं का नृत्य शुरू हुआ।
मणिकर्णिका घाट पर महाश्मशान नाथ के श्रृंगार उत्सव में 350 वर्ष से भी परंपरा के अनुसार गणिकाओं ने नृत्य-संगीत का नजराना पेश किया। बाबा महाश्मशान को साक्षी मानकर नगरवधुएं इसलिए नृत्य करती है कि उन्हें भरोसा है कि अगले जन्म में इन नरकीय जीवन को उन्हें भोगना नहीं पड़ेगा। नृत्य कार्यक्रम रात्रि से प्रारम्भ होकर सुबह मंगल आरती तक चलता रहेगा।