खेती-किसानी : किसान 20 जून तक हर हाल में डाल दें धान की नर्सरी, समय-समय पर बदलते रहें खेत का पानी, बीएचयू के कृषि वैज्ञानिक ने दी सलाह 

किसान (Farmer) इस समय खरीफ (Kharif) की मुख्य फसल धान की खेती (Paddy farming) की तैयारी में जुटे हुए हैं। इसके लिए  नर्सरी डालने की प्रक्रिया चल रही है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) कृषि विज्ञान संस्थान (Institute of Agricultural Sciences) के प्रधान कृषि वैज्ञानिक (chief agricultural scientist) प्रोफेसर पीके सिंह (Professor PK Singh) ने नर्सरी डालने व धान की खेती की बारीकियां बताईं। उन्होंने किसानों को नर्सरी के खेत का पानी समय-समय पर बदलते रहने का सुझाव (suggestion) दिया। वहीं कम पानी वाले क्षेत्रों में कम दिन व अधिक समय तक पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में एमटीयू 7029 समेत अधिक दिनों की प्रजातियों की खेती की सलाह दी है। इससे किसानों को अच्छा लाभ होगा। 
 

रिपोर्ट : ओमकारनाथ 

वाराणसी। किसान (Farmer) इस समय खरीफ (Kharif) की मुख्य फसल धान की खेती (Paddy farming) की तैयारी में जुटे हुए हैं। इसके लिए  नर्सरी डालने की प्रक्रिया चल रही है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) कृषि विज्ञान संस्थान (Institute of Agricultural Sciences) के प्रधान कृषि वैज्ञानिक (chief agricultural scientist) प्रोफेसर पीके सिंह (Professor PK Singh) ने नर्सरी डालने व धान की खेती की बारीकियां बताईं। उन्होंने किसानों को नर्सरी के खेत का पानी समय-समय पर बदलते रहने का सुझाव (suggestion) दिया। वहीं कम पानी वाले क्षेत्रों में कम दिन व अधिक समय तक पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में एमटीयू 7029 समेत अधिक दिनों की प्रजातियों की खेती की सलाह दी है। इससे किसानों को अच्छा लाभ होगा। 

धान की नर्सरी के लिए उपयुक्त समय 25 मई से 20 जून 
उन्होंने कहा कि किसान खुद एक कृषि वैज्ञानिक है, इसलिए सोच-समझकर मौसम, मिट्टी व पानी की उपलब्धता के अनुकूल खेती करें। पानी की व्यवस्था करके ही धान की नर्सरी डालें। नर्सरी के लिए उपयुक्त समय 25 मई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी स्थिति बनी है कि किसान यदि 20 जून तक नर्सरी डालें तो भी उसकी गुणवत्ता में कमी नहीं आएगी। लंबी अवधि की प्रजाति की नर्सरी पांच जून तक हर हाल में डाल देनी चाहिए। तापमान को देखते हुए धान की नर्सरी का पानी समय-समय पर बदलते रहें। मिट्टी को गर्म पानी नहीं मिलना चाहिए। ठंडा पानी मिलेगा तो पौधे का विकास बेहतर ढंग से होगा। 

अक्टूबर में पक कर होगा तैयार 
बताया कि लंबी अवधि की प्रजाति की नर्सरी 25 मई से सात जून के मध्य, मध्यम अवधि की प्रजातियों की नर्सरी सात से 10 जून और कम दिन की प्रजातियों की नर्सरी एक से 15 जून के बीच डाल देना चाहिए। इन प्रजातियों का धान अक्टूबर माह की शुरूआत में पककर तैयार हो जाता है। इसके बाद किसान इसकी कटाई कर खेत में सब्जी की बुआई कर सकते हैं। 


एमटीयू 7029 व सवर्णा सब-वन लंबी अवधि की सबसे बेहतर प्रजाति 
प्रोफेसर पीके सिंह ने बताया कि चंदौली, गाजीपुर व बिहार के कुछ इलाके, जहां खेत में पानी की उपलब्धता लंबे समय तक बनी रहती है, उन स्थानों के लिए एमटीयू 7029 (नाटी मंसूरी) व सवर्णा सब वन सबसे अच्छी प्रजाति मानी जाती है। इसकी खेती कर किसान 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन करते हैं। कुछ किसानों का उत्पादन 70 क्विंटल से भी अधिक रहता है। अक्टूबर तक पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में बीपीटी 5204 के नए वर्जन सांभा की खेती कर सकते हैं। इस प्रजाति की गुणवत्ता में सुधार किया गया है। इससे यह रोगरहित है। इसका चावल खाने में काफी स्वादिष्ट व मुलायम होता है। 

कम पानी वाले क्षेत्रों में 130 दिन की प्रजातियां सफल 
उन्होंने बताया कि मिर्जापुर, सोनभद्र व जौनपुर जैसे कम पानी की उपलब्धता वाले जिलों में 130 दिनों में पककर तैयार होने वाली बीना-11, सहभागी धान, डीआरआर 44, डीआऱआर 50 आदि प्रजाति सफल है। इसके अलावा सुगंधित चावल के लिए मशहूर मालवीय सुगंधा 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसका औसतन उपज 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाता है। किसान नरेंद्र 97, एचयूआर 22 प्रजाति की भी खेती कर सकते हैं।  पहले कम क्षेत्रफल में करें खेती उन्होंने किसानों को नई प्रजातियों की खेती पहले कम क्षेत्रफल में करने की सलाह दी। कहा कि पहली दफा कम क्षेत्रफल में खेती कर देखें कि उक्त प्रजाति उनके लिए उपयुक्त है अथवा नहीं। इस समय बहुत सारी प्रजातियां मार्केट में उपलब्ध हैं। किसानों को इनमें से अपने लिए सबसे उपयुक्त प्रजाति चुनना होगा। 

मिट्टी की सेहत का भी रखें ध्यान 
प्रोफेसर पीके सिंह ने किसानों को मिट्टी की सेहत का भी ध्यान रखने की सलाह दी। कहा कि किसान धान की नर्सरी के लिए खेत में गोबर की खाद डालें। यदि व्यापक पैमाने पर खेती करनी हो तो हरी खाद का इस्तेमाल करें। इससे मिट्टी की सेहत खराब नहीं होगी। वहीं किसानों को अच्छा उत्पादन भी मिलेगा।

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