विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर काशी में गूंजेंगे 96 नासिक ढोल, चिंतामणी गणेश मंदिर से निकलेगी भव्य शोभा यात्रा

वाराणसी। काशी में धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक वैभव का एक भव्य दृश्य 28 दिसंबर 2025 को देखने को मिलेगा। विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर इस वर्ष चिंतामणी गणेश मंदिर से विशाल शोभा यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह शोभा यात्रा अपराह्न 3 बजे मंदिर प्रांगण से आरंभ होगी और हनुमान घाट, शिवाला होते हुए पुनः चिंतामणी गणेश मंदिर पर आकर संपन्न होगी।
 

वाराणसी। काशी में धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक वैभव का एक भव्य दृश्य 28 दिसंबर 2025 को देखने को मिलेगा। विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर इस वर्ष चिंतामणी गणेश मंदिर से विशाल शोभा यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह शोभा यात्रा अपराह्न 3 बजे मंदिर प्रांगण से आरंभ होगी और हनुमान घाट, शिवाला होते हुए पुनः चिंतामणी गणेश मंदिर पर आकर संपन्न होगी।

काशी की गलियों में बजेगा नासिक का पारंपरिक ढोल
इस शोभा यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि इसमें नासिक से आई वही ढोल वादन संस्था शामिल होगी, जो काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष अवसरों पर ढोल वादन करती रही है। यात्रा में संस्था के 96 ढोल कर्ता पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होकर अपने सधे हुए वादन से काशी की गलियों को भक्तिरस से सराबोर करेंगे। ढोल की गूंज के साथ गणपति बप्पा की जयकारों से पूरा क्षेत्र उत्सवमय हो जाएगा।

हनुमान घाट और शिवाला से होकर निकलेगी यात्रा
शोभा यात्रा चिंतामणी गणेश मंदिर से निकलकर केदारघाट क्षेत्र के प्रमुख मार्गों से होते हुए हनुमान घाट और शिवाला तक जाएगी। इसके बाद यात्रा पुनः मंदिर परिसर में लौटेगी। मार्ग में श्रद्धालु पुष्पवर्षा और आरती के माध्यम से भगवान गणेश का स्वागत करेंगे।

आयोजक ने दी श्रद्धालुओं को आमंत्रण
इस भव्य आयोजन के आयोजक चल्ला सुब्बाराव शास्त्री, महंत चिंतामणी गणेश मंदिर केदारघाट सोनारपुर वाराणसी हैं। उन्होंने बताया कि इस शोभा यात्रा का उद्देश्य काशी की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाना और गणपति उपासना के माध्यम से समाज में एकता व सकारात्मक ऊर्जा का संदेश देना है। उन्होंने अधिक से अधिक श्रद्धालुओं से शोभा यात्रा में शामिल होकर पुण्य लाभ अर्जित करने की अपील की है।

भक्तिभाव और सांस्कृतिक वैभव का संगम
चिंतामणी गणेश मंदिर से निकलने वाली यह शोभा यात्रा काशी की धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत और लोक परंपराओं का जीवंत उदाहरण बनेगी। नाशिक के ढोल, गणेश भक्ति और काशी की पावन गलियों का यह संगम श्रद्धालुओं के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव साबित होने की उम्मीद है।