ज्ञानवापी के मुख्य गुंबद के नीचे 100 फीट लंबा शिवलिंग, कोर्ट में सम्पूर्ण परिसर के ASI सर्वे की मांग, 18 सितम्बर को मुस्लिम पक्ष देगा अपना तर्क
वर्ष 1991 के मूल वाद के वादमित्र ने ज्ञानवापी परिसर के सेंट्रल डोम के नीचे शिवलिंग होने का दावा किया है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया है। वादमित्र ने कहा कि ASI का सर्वे अधूरा है क्योंकि इसमें मशीनों का सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया और स्थल की खुदाई कर अवशेषों की खोज नहीं की गई। इसके अलावा, परिसर का बड़ा हिस्सा सर्वे से अछूता रह गया है, जहां महत्वपूर्ण साक्ष्य मिलने की संभावना है।
अदालत में बहस के बाद मुस्लिम पक्ष को अपनी बात रखने के लिए 18 सितंबर की तारीख तय की गई है, जिसमें केस से जुड़े सभी पक्षकारों को तलब किया गया है। मुस्लिम पक्ष इस तारीख पर पिछले सर्वे की समीक्षा और आगामी सर्वेक्षण की दलीलों का विरोध करेगा।
वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में दावा किया कि ज्ञानवापी परिसर के मुख्य गुंबद के नीचे एक 100 फीट लंबा शिवलिंग और एक गहरा अरघा मौजूद है, जिसे उन्होंने स्वयंभू अति प्राचीन आदि विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग बताया है। उनके अनुसार, शिवलिंग के पास एक विशाल कुआं भी है, जो ठोस मलबे से भरा हुआ है, और जिससे अभी भी जल रिसाव हो रहा है। ASI की सर्वे रिपोर्ट में भी इस कुएं का जिक्र किया गया है, जिसमें मलबे के कारण पूरी जानकारी सामने नहीं आ पाई।
मंदिर तोड़े जाने से पहले गंगा में मिलने वाली नाली का अब अस्तित्व नहीं
रस्तोगी ने ASI से पूरे परिसर का व्यापक सर्वे कराने की अर्जी का समर्थन करते हुए कहा कि पुराने इतिहासकारों के लेखों के अनुसार, मंदिर के तोड़े जाने से पहले अरघा में जमा पानी को निकालने के लिए ब्रह्मनाल और मणिकर्णिका होते हुए गंगा में मिलने वाली नाली बनी थी, जिसका अब अस्तित्व नहीं है।
1991 में पंडित सोमनाथ व्यास ने दायर किया था मामला
यह मामला 1991 में पंडित सोमनाथ व्यास द्वारा दायर किया गया था, जिसमें ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा-पाठ का अधिकार देने की मांग की गई थी। वर्तमान में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस वाद को छह महीने के भीतर निस्तारित करने का आदेश दिया है। इसके तहत, वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक) कोर्ट में पूरे परिसर का ASI से विस्तृत सर्वे कराने की अर्जी दी है, जिसमें गुंबद से हटकर, बिना किसी नुकसान के, रडार तकनीक का उपयोग कर तहखाने का सर्वेक्षण किया जाए ताकि वास्तविकता सामने आ सके।