जिनके बुजुर्ग रहते हैं पेड़ों पर, उस जनजाति समूह के तीरंदाज दिखा रहे कमाल
अयोध्या, 27 नवम्बर (हि.स.)। कभी पेड़ों पर रहने और वस्त्र धारण न करने वाले आधुनिकता से अछूती जरवा जनजाति के भी दो धनुर्धर इस तीरंदाजी प्रतियोगिता में आये हैं, जिनके घर के बुजुर्ग आज भी पेड़ों पर रहते हैं और वस्त्र धारण नहीं करते, उस खानदान के दो युवाओं का इस प्रतियोगिता में तीरंदाजी का अंदाज ही निराला था।
अंडमान निकोबार की आधुनिक सभ्यता से अछूती जरवा जनजाति के दो धनुर्धर बुलबा और डेच भी राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए यहां पहुंचे हैं। उनके साथ वेंकेटेश राव कोच भी हैं। दोनों धनुर्धर बताते हैं कि परंपरागत धनुष और आधुनिक धनुष दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। हम बहुत ताकत लगाकर और अनुमान से ही तीर चलाते रहे हैं। हम लोग तो भागते हुए लक्ष्य भेदने का ही अभ्यास रखते हैं। जबकि आधुनिक धनुष लक्ष्य को देखने और कम प्रयास से भेदने की सुविधा होती है। आधुनिक धनुष के साथ तालमेल बैठाने में समय लगेगा।
अयोध्या के राजकीय इंटर कालेज के मैदान पर चल रही राष्ट्रीय सीनियर तीरंदाजी प्रतियोगिता में अंडमान निकोबार द्वीप समूह से भाग लेने आए जरवा जनजाति समुदाय के बुलाबा और डेच ने श्री राम जन्मभूमि का भी भ्रमण किया। न्यास की ओर से तीरंदाजी संघ के महासचिव अजय गुप्ता ने श्री राम मंदिर का माडल, प्रसाद और रामनामी इन खिलाड़ियों को दिया। बताते चलें यह जनजाति 15 साल पहले ही आधुनिक सभ्यता के संपर्क में आई है। तीरंदाजी इनकी परंपरा है। इनके बुजुर्ग अब भी पेड़ों पर रहते हैं और वस्त्र नहीं धारण करते।
हिन्दुस्थान समाचार/उपेन्द्र/मोहित